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UP Politics: सपा को लगा एक और झटका, प्रदेश सचिव कमलाकांत गौतम ने दिया इस्तीफा, पार्टी मुखिया अखिलेश यादव की चुनौतियां बढ़ीं
UP Politics: कमलाकांत गौतम ने प्रदेश सचिव पद से इस्तीफा जरूर दे दिया है मगर उन्होंने पार्टी के लिए आगे भी काम करते रहने का ऐलान किया है।
UP Politics: लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी के भीतर खींचतान लगातार बढ़ती जा रही है। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे और पीडीए की अनदेखी के मुद्दे पर पल्लवी पटेल के तीखे तेवर के बाद अब पार्टी को एक और बड़ा झटका लगा है। समाजवादी पार्टी के प्रदेश सचिव कमलाकांत गौतम ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है।
उनका कहना है कि पार्टी में सचिन के पद को पूरी तरह निष्क्रिय और निष्प्रभावी बना दिया गया है और ऐसे में इस पद पर बने रहने का कोई मतलब नहीं है। सपा में बढ़ रही नाराजगी से लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अखिलेश यादव की चुनौतियां और बढ़ गई हैं।
महत्वहीन पद पर बने रहने का मतलब नहीं
कमलाकांत गौतम ने प्रदेश सचिव पद से इस्तीफा जरूर दे दिया है मगर उन्होंने पार्टी के लिए आगे भी काम करते रहने का ऐलान किया है। उनका कहना है कि पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ भेदभाव और पक्षपात पूर्ण व्यवहार किए जाने के कारण बहुजन समाज काफी आहत है। इसके साथ ही प्रदेश सचिव के पद को पूरी तरह महत्वहीन बना दिया गया है। ऐसे महत्वहीन पद पर बने रहने का कोई मतलब नहीं है।
कमलाकांत गौतम के इस्तीफे से साफ हो गया है कि समाजवादी पार्टी के भीतर का गतिरोध खुलकर सामने आने लगा है। इससे समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की पीडीए ( पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक) मुहिम को भी करारा झटका लगा है।
स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार
समाजवादी पार्टी में शामिल होने से पूर्व कमलाकांत गौतम बसपा में सक्रिय थे। बाद में उन्होंने बसपा से इस्तीफा दे दिया था और बहुजन उत्थान पार्टी का गठन किया था। 2019 में 8 जनवरी को उन्होंने अपनी पार्टी का समाजवादी पार्टी में विलय कर दिया था। अपने इस्तीफे में कमलाकांत गौतम ने अपने दिल का दर्द भी उजागर किया है।
उन्होंने कहा कि पार्टी में आज तक मुझे कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं सौंपी गई। पार्टी में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिले बिना पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए कोई ठोस पहल नहीं की जा सकती। मैं हमेशा वंचितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी है। उन्होंने स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ पार्टी में भेदभावपूर्ण व्यवहार किए जाने का बड़ा आरोप भी लगाया है। गौतम ने कहा कि मौर्य के इस्तीफे से बहुजन समाज को काफी आघात लगा है।
सपा में किसी प्रकार की नाराजगी नहीं
दूसरी ओर समाजवादी पार्टी का मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि उन्हें कमलाकांत गौतम के इस्तीफे की जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि पार्टी में नाराजगी की बातें पूरी तरह निराधार हैं क्योंकि सपा में सभी नेताओं को पूरा सम्मान दिया जाता है। उन्होंने दावा किया के प्रदेश में भाजपा को हराने के लिए सपा ही एकमात्र विकल्प है और यही कारण है कि भाजपा सपा से घबराई हुई है।
पल्लवी पटेल ने भी दिया था झटका
इससे पूर्व सिराथू की सपा विधायक पल्लवी पटेल ने भी पीडीए के मुद्दे पर अपनी नाराजगी खुलकर दिखाई थी। उनका कहना था कि पीडीए के नाम पर जया बच्चन और आलोक रंजन को राज्यसभा भेजा जा रहा है। सपा मुखिया अखिलेश यादव के फैसले पर सवाल खड़ा करते हुए उन्होंने कहा कि अगर बात पिछड़ा,दलित और अल्पसंख्यक वर्ग की जाती है तो राज्यसभा चुनाव के दौरान इन वर्गों से जुड़े नेताओं को उम्मीदवार क्यों नहीं बनाया गया।
सपा विधायक ने कहा कि राज्यसभा प्रत्याशियों के चयन के बारे में सपा ने उनसे कोई सलाह मशविरा नहीं किया। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पीडीए की भावना के विपरीत तीनों उम्मीदवार तय किए हैं। ऐसे में वे सपा प्रत्याशियों के पक्ष में वोट नहीं डालेंगी।
स्वामी प्रसाद भी दे चुके हैं इस्तीफा
दूसरी ओर स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया था। सपा मुखिया अखिलेश यादव को लिखे गए लंबे-चौड़े पत्र में उन्होंने अपने इस्तीफे का ऐलान किया। हालांकि उन्होंने अभी समाजवादी पार्टी से इस्तीफा नहीं दिया है और वे सपा के एमएलसी बने रहेंगे। विवादित बयानों को लेकर स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ पिछले कुछ दिनों से सपा में ही आवाज मुखर हो रही थी जिसके बाद उन्होंने अपने इस्तीफे का ऐलान किया है। अपने पत्र में उन्होंने कुछ नेताओं को छुटभैया बताने के साथ कुछ वरिष्ठ नेताओं पर भी निशाना साधा है।
सहयोगी दल भी दे रहे सपा को झटका
लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी में नाराजगी के अलावा सहयोगी दल भी पार्टी को करारा झटका दे रहे हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले सपा ने बीजेपी के खिलाफ एक महागठबंधन बनाया था। तब इस गठबंधन में सपा के साथ आरएलडी, महान दल, सुभासपा, प्रसपा और अपना दल कमेरावादी शामिल थे। चुनाव परिणाम में सपा ने तो अपनी स्थिति सुधारी, लेकिन महान दल, सुभासपा ने सपा का साथ छोड़ दिया। प्रसपा का सपा में विलय हो गया और अपना दल कमेरावादी फिलहाल सपा के साथ है। वैसे अब महान दल के भी सुर बदले हुए नजर आ रहे हैं और पार्टी एक बार फिर अखिलेश यादव के सुर में और बता रही है।
हालांकि अखिलेश यादव को हाल में राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया जयंत चौधरी ने करारा झटका दिया है। जयंत चौधरी के भाजपा से हाथ मिलाने के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एनडीए की सियासी जमीन मजबूत हो गई है जबकि सपा मुखिया अखिलेश यादव के लिए लोकसभा चुनाव में चुनौतियां और बढ़ गई हैं।