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Sambhal Jama Masjid Ka Itihas: क्या है संभल जामा मस्जिद का पूरा विवाद, जाने इसका इतिहास
Sambhal Jama Masjid Ka Itihas: क्या आप जानते हैं कि जामा मस्जिद का इतिहास क्या था और क्या था इससे जुड़ा विवाद...
Sambhal Jama Masjid Ka Itihas (Image Credit-Social Media)
Sambhal Jama Masjid History in Hindi: संभल, उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद मंडल में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है, जिसका धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व अद्वितीय है। संभल जामा मस्जिद इस नगर की पहचान है, जिसका निर्माण मुगलकाल में हुआ था। इस मस्जिद का इतिहास, स्थापत्य और सांस्कृतिक महत्ता पर एक गहन दृष्टि डालते हैं।
संभल का नाम इतिहास में तब प्रमुखता से उभरा जब बाबर के पौत्र और हुमायूं के पुत्र, अकबर ने इस क्षेत्र को अपने साम्राज्य में शामिल किया। हालांकि, संभल जामा मस्जिद का निर्माण इससे पहले का है। मस्जिद का निर्माण लोदी वंश (1451-1526) के काल में हुआ माना जाता है। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि इस मस्जिद का निर्माण सिकंदर लोदी (1489-1517) के शासनकाल में हुआ था।
Sambhal Jama Masjid (Image Credit-Social Media)
मस्जिद का निर्माण मुख्यतः दिल्ली सल्तनत की स्थापत्य शैली में हुआ, जिसमें मुगल वास्तुकला की छाप भी देखने को मिलती है। कहा जाता है कि इस मस्जिद का निर्माण एक प्राचीन हिन्दू मंदिर के अवशेषों पर हुआ था, जिसका उल्लेख कुछ ऐतिहासिक दस्तावेजों और पुरातात्विक साक्ष्यों में मिलता है।
स्थापत्य कला
संभल जामा मस्जिद का स्थापत्य एक विशिष्ट इस्लामी वास्तुकला का उदाहरण है, जिसमें विशाल गुंबद, मीनारें और मेहराबों का प्रयोग किया गया है।
- प्रवेश द्वार: मस्जिद का मुख्य द्वार विशाल और अलंकृत है, जिसमें इस्लामी ज्यामितीय डिज़ाइन और कुरान की आयतों की नक्काशी देखने को मिलती है।
- प्रार्थना कक्ष: मस्जिद के प्रार्थना कक्ष में एक विशाल मेहराब (मिहराब) है, जो मक्का की दिशा को इंगित करता है।
- गुंबद और मीनारें: मस्जिद के तीन गुंबद हैं, जिनमें से मुख्य गुंबद सबसे बड़ा है। मीनारों का प्रयोग न केवल मस्जिद की शोभा बढ़ाने के लिए किया गया बल्कि यह अज़ान देने के लिए भी उपयोगी थीं।
- आंगन (सहन): मस्जिद का आंगन बहुत विस्तृत है, जहां नमाजियों के लिए पर्याप्त स्थान है।
Sambhal Jama Masjid (Image Credit-Social Media)
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व
संभल जामा मस्जिद सिर्फ एक उपासना स्थल नहीं है, बल्कि यह धार्मिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है।
- धार्मिक केंद्र: मस्जिद में जुमे की नमाज, ईद, बकरीद और अन्य इस्लामी त्योहारों पर हजारों लोग एकत्रित होते हैं।
- सांस्कृतिक मेलजोल: मस्जिद के आसपास आयोजित होने वाले मेलों और बाज़ारों में विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोग शामिल होते हैं।
वर्तमान स्थिति और संरक्षण
वर्तमान में संभल जामा मस्जिद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में है। समय-समय पर इसकी मरम्मत और पुनर्निर्माण कार्य किए जाते हैं। मस्जिद के आसपास का क्षेत्र अब एक व्यस्त बाजार बन चुका है, लेकिन मस्जिद का प्रांगण और उसकी पवित्रता आज भी बरकरार है।
संभल जामा मस्जिद न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह भारत की मिश्रित संस्कृति, सहिष्णुता और स्थापत्य की एक अनमोल धरोहर भी है। इसका इतिहास हमें भारत के मध्यकालीन इतिहास की गहराई में ले जाता है और यह बताता है कि किस प्रकार हमारे देश में विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों का मिलन हुआ।
संभल जामा मस्जिद, उत्तर प्रदेश के संभल जिले में स्थित एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है। इसके धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व के साथ-साथ, यह मस्जिद वर्षों से कई विवादों का केंद्र भी रही है। इन विवादों में धार्मिक, सांस्कृतिक और कानूनी पहलू प्रमुख रहे हैं।
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संभल जामा मस्जिद विवाद: सर्वेक्षण और बढ़ता तनाव
19 नवंबर 2024 को अदालत ने संभल जामा मस्जिद का सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया। अधिवक्ता आयुक्त रमेश राघव ने जिला प्रशासन और पुलिस बल के साथ मिलकर उसी दिन मस्जिद का सर्वेक्षण किया। हालाँकि, इस त्वरित कार्रवाई को कई वर्गों से आलोचना का सामना करना पड़ा। आलोचकों ने इस प्रक्रिया में न्यायिक अधिकार के दुरुपयोग और प्रक्रियागत अनियमितताओं का आरोप लगाया।
मुस्लिम समुदाय, विशेष रूप से जामा मस्जिद प्रबंधन समिति, ने इस सर्वेक्षण का कड़ा विरोध किया। उन्होंने 1991 के पूजा स्थल अधिनियम (Places of Worship Act, 1991) का हवाला दिया, जो 15 अगस्त 1947 के बाद किसी भी धार्मिक स्थल की स्थिति में परिवर्तन पर प्रतिबंध लगाता है। समाजवादी पार्टी के संभल से सांसद जियाउर रहमान बरक ने इस कदम की निंदा करते हुए इसे सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का प्रयास बताया।
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24 नवंबर: तनाव और हिंसा
24 नवंबर 2024 को स्थिति और अधिक गंभीर हो गई, क्योंकि मस्जिद का दूसरा सर्वेक्षण निर्धारित था। मस्जिद के पास भारी संख्या में लोग इकट्ठा हो गए, जिन्हें बाबरी मस्जिद विध्वंस की पुनरावृत्ति का डर सता रहा था।
विरोध प्रदर्शन जल्द ही हिंसक हो गया। प्रदर्शनकारियों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी और कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया। प्रशासन ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सुरक्षाबलों की तैनाती बढ़ाई और कानून व्यवस्था बनाए रखने के प्रयास किए।
यह घटना न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बन गई, जिससे धार्मिक और राजनीतिक माहौल गर्म हो गया।
संभल जामा मस्जिद का सबसे बड़ा विवाद इसका धार्मिक इतिहास है। कुछ हिन्दू संगठनों का दावा है कि यह मस्जिद एक प्राचीन हिन्दू मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। उनका तर्क है कि मस्जिद के परिसर में हिन्दू मंदिर के अवशेष और स्थापत्य शैलियाँ मौजूद हैं, जो मुगल और सल्तनत काल में कई अन्य स्थलों पर देखी गई हैं, जैसे अयोध्या में राम जन्मभूमि और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि विवादों में।
हिन्दू पक्ष का दावा:
हिन्दू संगठनों का कहना है कि मस्जिद एक "शिव मंदिर" को तोड़कर बनाई गई थी। वे पुरातात्विक सर्वेक्षण की मांग कर चुके हैं, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि मस्जिद की नींव में हिन्दू मंदिर के अवशेष हैं या नहीं।संभल जामा मस्जिद विवाद में नया मोड़ तब आया जब हिंदू पक्ष के याचिकर्ता हरिशंकर जैन ने अदालत में बाबरनामा का हवाला दिया। अपनी याचिका में उन्होंने दावा किया कि बाबरनामा के अंग्रेजी अनुवाद में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि मीर हिंदू बेग, जो बाबर के दरबारी थे, ने भगवान विष्णु के एक प्राचीन हिंदू मंदिर को मस्जिद में परिवर्तित किया था।यह दावा इस तथ्य पर आधारित है कि बाबरनामा, जिसे स्वयं मुगल सम्राट बाबर ने लिखा था, और जिसका अंग्रेजी अनुवाद बेवरेज ने किया, उसके पृष्ठ संख्या 687 पर स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि बाबर के आदेश पर संभल के मंदिर को जामा मस्जिद में बदल दिया गया।
Sambhal Jama Masjid (Image Credit-Social Media)
मुस्लिम पक्ष का रुख:
मुस्लिम समुदाय और मस्जिद प्रबंधन समिति का कहना है कि यह मस्जिद एक वैध इस्लामी स्थल है और इसका निर्माण किसी हिन्दू मंदिर को नष्ट करके नहीं किया गया। उनका यह भी कहना है कि मस्जिद में नियमित रूप से नमाज़ अदा की जाती है और यह एक पवित्र स्थल है।संभल की जामा मस्जिद प्रबंधन समिति के अध्यक्ष मोहम्मद जफर ने हिंदू पक्ष के दावों को सिरे से खारिज कर दिया। उनका कहना है कि मस्जिद किसी भी मंदिर को नष्ट करके नहीं बनाई गई और मस्जिद परिसर में किसी भी हिंदू मंदिर के निशान मौजूद नहीं हैं।मोहम्मद जफर ने अदालत के सर्वेक्षण आदेश पर भी सवाल उठाए। उन्होंने आश्चर्य जताते हुए कहा कि यह पहली बार हुआ है कि एक ही दिन में याचिका दायर होती है, उसी दिन सुनवाई होती है, याचिका स्वीकार की जाती है और कोर्ट कमिश्नर सर्वेक्षण का आदेश जारी कर उसी रात सर्वेक्षण शुरू भी हो जाता है।
कानूनी विवाद और न्यायिक स्थिति
मुकदमेबाजी:
यह विवाद विभिन्न स्तरों पर न्यायालयों में पहुंचा है। हिन्दू संगठनों ने स्थानीय अदालतों से लेकर उच्च न्यायालय तक में याचिकाएं दाखिल की हैं, जिनमें मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण और खुदाई की मांग की गई है।
ASI सर्वेक्षण की मांग:
हिन्दू पक्ष द्वारा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से मस्जिद के ढांचे का सर्वेक्षण करने की मांग की गई, ताकि यह पता चल सके कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष हैं या नहीं।
वर्तमान स्थिति:
अभी तक किसी उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय ने मस्जिद को हटाने या मंदिर के निर्माण का आदेश नहीं दिया है। अदालतें दोनों पक्षों के दावों की जांच कर रही हैं और स्थानीय प्रशासन को शांति बनाए रखने के निर्देश दिए गए हैं।
राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
संभल जामा मस्जिद का विवाद केवल कानूनी नहीं, बल्कि एक बड़ा राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा भी बन चुका है।
राजनीतिक दलों की भूमिका:
विभिन्न राजनीतिक दलों ने इस विवाद का लाभ उठाने का प्रयास किया है। कुछ दल इसे धार्मिक भावना के मुद्दे के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जबकि अन्य इसे सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की साजिश मानते हैं।
Sambhal Jama Masjid (Image Credit-Social Media)
सामाजिक प्रभाव:
इस विवाद के कारण संभल और आसपास के क्षेत्रों में सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न हो चुका है। हालाँकि, प्रशासन की सतर्कता के कारण अब तक कोई बड़ा सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ है।
प्रशासन और शांति प्रयास
प्रशासनिक कदम:
स्थानीय प्रशासन ने विवादित स्थल पर धारा 144 लागू की है, ताकि किसी भी प्रकार की भीड़ जमा न हो सके। धार्मिक आयोजनों के समय विशेष पुलिस बल तैनात किया जाता है।
शांति समितियों का गठन:
हिन्दू और मुस्लिम समुदायों के बीच संवाद स्थापित करने के लिए शांति समितियों का गठन किया गया है, जो नियमित रूप से बैठकें करती हैं और शांति बनाए रखने का प्रयास करती हैं।
संभल जामा मस्जिद का विवाद एक जटिल मुद्दा है, जिसमें धार्मिक, ऐतिहासिक, कानूनी और सामाजिक पहलू शामिल हैं। यह स्पष्ट है कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में ऐसे मुद्दों को संवेदनशीलता और न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से हल करना आवश्यक है।
संतुलित दृष्टिकोण:
सभी पक्षों को न्यायपालिका के निर्णय का सम्मान करना चाहिए और किसी भी प्रकार की उग्र गतिविधि से बचना चाहिए।
कानूनी प्रक्रिया का पालन:
भारतीय न्यायपालिका ने पहले भी ऐसे कई विवादों का समाधान किया है, इसलिए इस मामले में भी निष्पक्ष और सटीक निर्णय की संभावना है।
यह विवाद न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर भी व्यापक चर्चा का विषय बन गया है। मस्जिद के सर्वेक्षण के नतीजे और न्यायालय का निर्णय इस मामले में महत्वपूर्ण साबित होंगे।