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Sonbhadra: बगैर पर्यावरण NOC जारी किए गए थे रेत खनन पट्टे, NGT पहुंचा मामला तो सच आया सामने, उठे कई सवाल

हालत ये है कि पट्टाधारकों पर उठाए गए सवाल सही हैं या गलत? इस पर खनन विभाग और प्रदूषण नियंत्रण विभाग की तरफ से चुप्पी साधते हुए कन्नी काट ली जा रही है।

Kaushlendra Pandey
Published on: 22 Oct 2022 5:48 PM IST
sand mining leases were issued without environmental noc in sonbhadra
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Sonbhadra News (Social Media)

Sonbhadra News: सोनभद्र जिले में बारिश से पूर्व फसल बोई जमीन पर रेत खनन पट्टा दिए जाने को लेकर सुर्खियों में रहने वाले खनन विभाग एक बार फिर सुर्खियों में है। दिलचस्प मसला ये है कि बगैर पर्यावरण NOC के ही कई पट्टाधारकों को खनन की अनुमति जारी कर दी गई। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (State Pollution Control Board) के भी किसी जिम्मेदार ने इसकी सुध लेने की जरूरत नहीं समझी।

अवैध खनन और पर्यावरण क्षति को लेकर जब एनजीटी में याचिका दाखिल की गई, तो एनओसी न लेने की बात कहते हुए पट्टाधारकों पर लाखों की पेनाल्टी ठोक दी गई। अब जब पट्टाधारकों की तरफ से खनन अनुमति जारी करते वक्त, इस पर ध्यान न दिए जाने को लेकर सवाल उठाए गए, तो मामले से एनजीटी चेयरमैन को पत्र भेज अवगत कराने के साथ ही, इसको लेकर शपथपत्र भी दाखिल कर दिया है। जिससे हड़कंप की स्थिति बनने लगी है। हालत ये है कि पट्टाधारकों पर उठाए गए सवाल सही हैं या गलत? इस पर खनन विभाग और प्रदूषण नियंत्रण विभाग की तरफ से चुप्पी साधते हुए कन्नी काट ली जा रही है।

जानें क्या है माजरा?

ऑल इंडिया कैमूर पीपुल्स फ्रंट (All India Kaimur People's Front) की तरफ से साल की शुरुआत में NGT में एक याचिका दाखिल की गई। रेत-खेत खनन पट्टा की आड़ में कई जगहों पर अवैध खनन पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति का आरोप लगाया गया। गत 13 जुलाई को दिए गए आदेश के क्रम में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से पांच पट्टाधारकों पर पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के लिए 2.12 करोड़ की क्षतिपूर्ति अधिरोपित की गई।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड NGT में दे चुका है रिपोर्ट

इसी कड़ी में मुख्य पर्यावरण अधिकारी वृत्त- 2 की तरफ से गत सितंबर माह में पट्टाधारकों को एक नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया। कहा गया कि, आपके द्वारा राज्य बोर्ड से नियमानुसार जलवायु सहमति पत्र प्राप्त न करने एवं निर्धारित मात्रा से अधिक खनन के लिए पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति अधिरोपित करने की संस्तुति की गई है। बता दें कि, इस मामले में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एनजीटी में अपनी रिपोर्ट भी दाखिल कर चुका है, जिस पर अंतिम निर्णय आना बाकी है।


पट्टाधारक का ये है पक्ष

उधर, इस मामले में पट्टाधारक की तरफ से एनजीटी चेयरमैन सहित अन्य को भेजे पत्र में दावा किया गया है कि जब संशोधित नियमावली का हवाला देते हुए 3 माह के खनन के लिए अनुज्ञा जारी की गई, तब न तो खनन विभाग न ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जुड़े किसी व्यक्ति ने जल/वायु सहमति प्राप्त करने के लिए कोई निर्देश देने या अवगत कराने की जरूरत समझी, न ही इसकी कोई आवश्यकता जताई गई। न ही किसी पट्टाधारक काश्तकार पर पर्यावरण प्रदूषण बोर्ड की तरफ से खनन अनुज्ञा पत्र में इस तरह की सहमति को प्राप्त करने की अनिवार्यता या दायित्व ही अधिरोपित किया गया। पट्टाधारक की तरफ से ऐसा कोई प्रावधान होने का भी दावा किया गया है।

अफसरों ने साधी चुप्पी

इस मामले में जानकारी के लिए ज्येष्ठ खान अधिकारी आशीष कुमार, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी टीएन सिंह और मुख्य पर्यावरण अधिकारी से कॉल-मैसेज के जरिए संपर्क साधा गया लेकिन तीनों अफसरों ने चुप्पी साधे रखी।



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Content Writer

अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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