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40 साल-अधूरा काम, 222 करोड़ से बढ़ कर लागत हो गयी 9802 करोड़

raghvendra
Published on: 5 Jan 2018 8:07 AM GMT
40 साल-अधूरा काम, 222 करोड़ से बढ़ कर लागत हो गयी 9802 करोड़
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राजकुमार उपाध्याय

लखनऊ। सरयू नहर परियोजना पिछले 40 वर्षों से निर्माण पूरा होने का इंतजार कर रही है। इस दरम्यान इसकी लागत 222 करोड़ से बढक़र 9802 करोड़ रुपये हो गई। यह तो सिर्फ बानगी भर है। मध्य गंगा नहर परियोजना-द्वितीय चरण और अर्जुन सहायक परियोजना का भी यही हाल है।

साल-दर-साल इनकी भी लागत में बेतहाशा बढोत्तरी हुई है पर नतीजा अफसोसनाक है। पूरे मामले में सिंचाई विभाग के आला अफसरों का लापरवाह रवैया साफ झलकता है। यदि इस प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए तो टेक्नोक्रेट कहे जाने वाले इंजीनियर लागत बढ़ाने के इस खेल में किस तरह ब्यूरोक्रेट के साथ मिलकर मलाई काट रहे हैं, इसका सच बेनकाब हो सकता है।

बेतहाशा बढ़ती रही लागत

खेतों को आसानी से पानी मिल सके, इस मकसद के साथ 40 साल पहले सन 1977-78 में सरयू नहर परियोजना शुरू हुई। अगले दस साल - 1988-89 में इसका काम पूरा करने का लक्ष्य था। काम पूरा करने के लिए 222 करोड़ का प्रावधान भी किया गया। पर धन की कमी की वजह से यह अपने समय पर पूरी नहीं हो सकी।

सन 1985-86 में इसकी लागत बढक़र 696 करोड़ हो गई और तय किया गया कि यह योजना 1992-93 में पूरी कर ली जाएगी। पर फिर धन की कमी आड़े आई। जिससे पहले कागजों पर बनी योजनाएं पूरी नहीं हो सकी।

तब सन 1992 में इसकी लागत 1256 करोड़ आंकी गई। पर परियोजना को फिर पर्याप्त धन नहीं मिल सका। नतीजतन मार्च 1998 तक योजना की लागत 2810 करोड़ तक पहुंच गई। लेकिन धन की कमी का यह सिलसिला थमा नहीं और परियोजना की लागत लगातार बढ़ती रही। मौजूदा समय में इसकी लागत बढकर 9802.68 करोड़ हो गई है। अब इसे दिसम्बर 2019 तक पूरा करने का लक्ष्य नियत किया गया है।

नौ जिलों के खेतों को नहीं मिला पानी

सरयू नहर परियोजना के जरिए पूर्वांचल के नौ जिलों के किसानों को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराना था। इसमें बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोण्डा, संतकबीरनगर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, महराजगंज और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गृह जनपद गोरखपुर शामिल है।

इस परियोजना का उददेश्य उन जिलों में घाघरा, सरयू और राप्ती नदियों से उपलब्ध जल द्वारा 9205 किमी लम्बी नहरों से सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराना था। इसके तहत डुमरियागंज, उतरौला, अयोध्या और गोला पम्प नहरों का निर्माण भी किया जाना है। चूंकि इस इलाके में दिसम्बर के बाद नदियों में पानी अपर्याप्त होता है। इसके लिए परियोजना में भू-जल का भी प्रयोग प्रस्तावित है।

सिर्फ 38 फीसदी काम पूरा

मध्य गंगा नहर परियोजना-द्वितीय चरण की लागत सन 2007 में 1060 करोड़ आंकी गई। मार्च 2012 तक इस पर 737.52 करोड़ खर्च भी हुए। पर काम अब भी अधूरा है। अब तक योजना का सिर्फ 38 फीसदी काम पूरा हो सका है। अब इस योजना की लागत बढक़र 4417.21 करोड़ हो चुकी है। सरकार ने परियोजना को दिसम्बर 2020 तक पूरा करने का लक्ष्य तय किया है।

806 करोड़ से, 2593 करोड़ हुई लागत

अर्जुन सहायक परियोजना का काम मार्च 2010 से शुरू किया गया था। तब इसकी लागत 806.50 करोड़ तय की गई थी। मार्च 2012 तक इस पर कुल 337 करोड़ खर्च भी हुए। इंजीनियरों के मुताबिक यहां भी धन की कमी आड़े आई और परियोजना समय से पूरी नहीं हो सकी। पर इसकी लागत लगातार बढती रही। मौजूदा समय में इसकी लागत बढक़र 2593.93 करोड़ हो गई है। अब यह परियोजना दिसम्बर 2019 तक पूरा किया जाना प्रस्तावित है।

क्या है अर्जुन सहायक परियोजना

बुन्देलखण्ड के महोबा व हमीरपुर में अर्जुन और कबरई बांध से सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। पर बीते लगभग 25 वर्षों में उन बांधों को सिर्फ करीबन चार बार ही पूरा भरा जा सका है। शेष वर्षों में कम पानी भरा जा सका। इससे इलाके सींच क्षमता प्रभावित हो रही थी।

धसान नदी में लहचूरा बांध के शीर्ष आधुनिकीकरण से हर साल अर्जुन बांध को पूरा भरा जाने लगा। पर कबरई बांध की भण्डारण क्षमता नहीं बढ़ पा रही थी। इसी बांध की भण्डारण क्षमता में बढ़ोतरी के लिए अर्जुन सहायक परियोजना तैयार की गई। इससे लगभग 27235 हेक्टेयर रबी और 22049 हेक्टेयर खरीफ फसलों की सींच क्षमता बढ़ेगी। इसका लाभ हमीरपुर और महोबा जिलों को मिलेगा।

धन उपलब्ध करा देना काम पूरा होने की गारंटी नहीं

राज्य मंत्रिपरिषद ने २ जनवरी को सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना, अर्जुन सहायक परियोजना और मध्य गंगा नहर परियोजना के लिए कुल 7241.3376 करोड़ का ऋण नाबार्ड से लेने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। ऋण लेने के लिए राज्य के प्रमुख सचिव वित्त, नाबार्ड, सचिव जल संसाधन नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय नई दिल्ली और राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण के बीच एमओयू किया जाना है।

विभागीय जानकार इस पर सवाल खड़े करते हुए कहते हैं कि इतने वर्षों में जब परियोजना के लिए बजट के सापेक्ष धन दिया जाता रहा, तब इसके सापेक्ष कार्य की भौतिक प्रगति की समीक्षा क्यों नही की गयी? ऐसे में महज धनराशि उपलब्ध करा देना ही काम पूरा होने की गारंटी नहीं मानी जा सकती। इसलिए लगातार काम के भौतिक प्रगति की समीक्षा निरन्तर जरूरी है।

क्या है मध्य गंगा नहर परियोजना-द्वितीय चरण

दरअसल यह परियोजना बरसात के मौसम में गंगा नदी के अतिरिक्त पानी के इस्तेमाल के मकसद से बनाई गई थी ताकि खरीफ फसलों की सिंचाई क्षमता में बढ़ोतरी हो। तय हुआ कि बिजनौर में गंगा नदी के रावलीघाट स्थित चौधरी चरण सिंह मध्य गंगा बैराज के बांये हिस्से पर बने हैड रेगुलेटर से मुख्य नहर का निर्माण किया जाए और गंगा नदी के पानी को डाइवर्ट कर इस नहर के जरिए पानी का उपयोग किया जाएगा। इस परियोजना के तहत मुख्य मध्य गंगा नहर और इससे 50 किमी लम्बाई की बहजोई और 60 किमी लम्बाई की चन्दौसी शाखा का निर्माण प्रस्तावित है। इसका लाभ अमरोहा, मुरादाबाद और संभल जिलों को मिलेगा।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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