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SC/ST एक्ट की धारा 14-ए (3) परन्तुक दो असंवैधानिक करार
इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट की पूर्णपीठ ने एससी एसटी एक्ट में विशेष कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील दाखिल करने की 180 दिन की बाध्यता को शिथिल कर दिया और कहा है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 व 21 के विपरीत होने के कारण रद्द करने योग्य है। कोर्ट ने धारा 14 ए (3) परन्तुक 2 को असंवैधानिक घोषित करते हुए रद्द कर दिया है। और कहा है कि हाईकोर्ट यदि उचित कारण पाती है तो 180 दिन के बाद दाखिल अपील की देरी को माफ कर सुनवाई कर सकती है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि धारा 14 ए 26 जनवरी 2016 के बाद से लागू होगी। इससे पहले के आदेशों के मामले में पुरानी व्यवस्था जारी रहेगी। कोर्ट ने कहा है कि विशेष अदालत के आदेश के खिलाफ अपील दाखिल करने के उपबंध के चलते हाईकोर्ट को अनुच्छेद 226, 227 पुनरीक्षण व दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत सुनवाई का अधिकार नहीं होगा। कोर्ट ने राज्य सरकार को ऐक्ट के तहत विशेष अदालतें गठित न होने के मुद्दे पर कहा है कि राज्य सरकार 8 हफ्ते में विशेष अदालतों का गठन करे। विशेष अदालतों के गठन न होने से न्यायिक अधिकारियों का इसका दायित्व निभाना पड़ रहा है।
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डी.बी.भोसले, न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा तथा न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की पूर्णपीठ ने अधिवक्ता विष्णु बिहारी तिवारी की आपराधिक जनहित याचिका सहित अन्य याचिकाओं पर दिया है। धारा 14 ए (3) परन्तुक 2 के तहत 90 दिन में अपील दाखिल न होने के बाद कोर्ट को 90 दिन बाद तक अपील की सुनवाई का अधिकार था। 180 दिन के बाद विशेष अदालत के आदेश के खिलाफ अपील दाखिल नहीं की जा सकती थी। और न ही ऐसे आदेश को हाईकोर्ट की अन्तर्निहित शक्तियों का प्रयोग कर चुनौती नहीं दी जा सकती थी। अब कोर्ट 180 दिन बाद भी अपीलें सुन सकेगी।
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प्रवक्ताओं की भर्ती में विषयवार आरक्षण होगा लागू
इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट की पांच सदस्यीय वृहदपीठ ने राजकीय सहायता प्राप्त डिग्री कालेजों के प्रवक्ता पदों पर सीधी भर्ती में आरक्षण मुद्दे पर सुनवाई से इंकार कर दिया है और प्रकरण खण्डपीठ को वापस कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि विश्वजीत केस के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने सही माना है, ऐसे में हाईकोर्ट को इसी मुद्दे पर सुनवाई का अधिकार नहीं है। विश्वजीत केस में कोर्ट ने कालेज को इकाई मानते हुए विषयवार आरक्षण दिये जाने को सही करार दिया है। साथ ही कहा है कि यदि पद पहले विज्ञापित नहीं किया गया है तो ऐसी रिक्तियों को बैकलाॅग रिक्ति नहीं माना जायेगा। इन्हें क्लब कर आरक्षित कोटे में नहीं भरा जा सकेगा। ऐसी रिक्तियों पर सामान्य व आरक्षित वर्ग को समान अवसर मिलेगा। इसी प्रकरण को पांच जजों की पीठ के समक्ष वाद बिन्दु तय करते हुए निर्णीत करने का संदर्भ भेजा गया था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा विश्वजीत केस के फैसले की पुष्टि के बाद कोर्ट ने सुनवाई करने से इंकार कर दिया और कहा कि अनुच्छेद 141 के तहत सुप्रीम कोर्ट का फैसला हाईकोर्ट पर भी बाध्यकारी है। यह फैसला मुख्य न्यायाधीश डी.बी.भोसले, न्यायमूर्ति एम.के.गुप्ता, न्यायमूर्ति सुनीत कुमार, न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा तथा न्यायमूर्ति एस.डी.सिंह की वृहदपीठ ने डा.अर्चना मिश्रा व अन्य की याचिकाओं पर दिया है। याचिकाएं खण्डपीठ को वापस भेज दी गयी है।
प्रमुख सचिव गृह सहित मण्डल के पुलिस अधिकारी तलब, कंपनी भवन किया था ध्वस्त
इलाहाबाद: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रमुख सचिव गष्ह, एडीजी जोन, आई रेंज व एसएसपी इलाहाबाद को 11 अक्टूबर को तलब किया है। इलाहाबाद के मुठ्ठीगंज मुहल्ले में अखाड़े के भवन को ध्वस्त करने के मामले में कोर्ट ने इन अधिकारियों को तलब किया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्र ने माया पत्रिका प्रकाशित करने वाली मित्रा प्रकाशन कम्पनी के समापन कार्यवाही की सुनवाई करते हुए दिया है। मालूम हो कि अखाड़ा का भवन कम्पनी का होने के नाते हाईकोर्ट ने आफीशियल लिक्वीडेटर को कब्जा सौंप दिया है। इसी भवन को पुलिस फोर्स के बल पर ध्वस्त कर दिया गया। न्यू पंचायती अखाड़ा वालों का दावा है कि यह भवन उनका है। भवन जर्जर होने के कारण नगर निगम ने ढहाया है। जिस पर नया निर्माण किया जायेगा। कोर्ट ने जब निगम से पूछा तो कहा कि निर्माण अखाड़ा वालों ने ढहाया है। एक छात्र ने घटना की फोटो व वीडियोग्राफी की है। कोर्ट के निर्देश पर उसने पेन ड्राइव में फोटो व वीडियो क्लिप कोर्ट में पेश की। वीडियो देखने के बाद कोर्ट ने प्रमुख सचिव गष्ह सहित अन्य अधिकारियों को कोर्ट में हाजिर होने का आदेश दिया है। कोर्ट का कहना है कि विवादित भवन कोर्ट की अभिरक्षा में है। आफीशियल लिक्वीडेटर का कब्जा है। इसकी अनदेखी कर कैसे भवन का ध्वस्तीकरण कर दिया गया। इसकी सुनवाई 11 अक्टूबर को होगी।