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जल निगम में बड़ा घोटाला, मूल काम छोड़ पैसे की हेराफेरी में लगे अधिकारी

Newstrack
Published on: 5 Jan 2018 7:48 AM GMT
जल निगम में बड़ा घोटाला, मूल काम छोड़ पैसे की हेराफेरी में लगे अधिकारी
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मनोज द्विवेदी

लखनऊ: जल निगम पर प्रदेश भर के शहरवासियों को शुद्ध पानी पिलाने का जिम्मा है मगर महकमे के अधिकारी अपना मूल काम छोडक़र सिर्फ पैसे की हेराफेरी में लगे हैं। हाल ही में जल निगम के अधिकारियों के 300 करोड़ की राशि की बंदरबांट करने का मामला सामने आया है। इन अफसरों ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के अभियान को पलीता लगा दिया। इस मामले की जांच के आदेश दे दिए गए हैं। इसके लिए न तो किसी तरह का शासनादेश जारी किया गया और न ही किसी राजाज्ञा की परवाह की गई। जानकारी के अनुसार करीब 300 करोड़ की धनराशि जो प्रदेश सरकार के खजाने में जानी चाहिए थी, उसे अन्य मदों में खर्च दिखाकर पैसे का दुरपयोग किया गया है।

कैसे हुआ यह पूरा खेल : जल निगम के सूत्रों के मुताबिक 300 करोड़ की यह रकम जल निगम के खातों पर विभिन्न बैंकों से ब्याज के रूप में मिली थी। नियमानुसार ब्याज की यह रकम वापस उन खातों में जानी चाहिए जहां से विकास कार्यों के लिए इसे जारी किया गया था। जो रकम केन्द्र सरकार की एजेंसियों से मिली उसका ब्याज केन्द्र सरकार को और जो रकम राज्य सरकार की ओर से मिली उसका ब्याज राज्य सरकार के खाते में जाना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस राशि को वरिष्ठ अधिकारियों ने वेतन भत्ते व अन्य मदों में खर्च दिखा दिया। अब इस मामले की जांच होगी कि जिन मदों में यह राशि खर्च दिखाई गई है, कहीं उसमें भी तो खेल नहीं हुआ है। इसे लेकर भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं कि इस राशि को वेतन मद में खर्च करने के लिए शासकीय मंजूरी ली गई या नहीं।

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भाजपा विधायक की शिकायत पर जांच : बलिया के बैरिया विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक सुरेंद्र नाथ सिंह ने अपना भारत से बातचीत में बताया कि जिन अधिकारियों पर आरोप है, उसे वाराणसी के ही कुछ स्थानीय भाजपा नेताओं का संरक्षण प्राप्त है। उन्होंने कहा कि जांच के दौरान भी एक अधिकारी को प्रमोशन दे दिया गया था जिसका वे लगातार विरोध कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनकी शिकायत के बाद ही नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना ने इस मामले में जांच बिठाई और उस अधिकारी का प्रमोशन रद्द किया गया। भाजपा विधायक ने आरोप लगाया कि जल निगम के आला अधिकारी किसी की परवाह नहीं करते और बड़े भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। पिछली अखिलेश सरकार में मंत्री रहे आजम खान व अधिकारियों के बीच अनबन से जल निगम की आमदनी न केवल शून्य हो गई बल्कि कई विकास कार्य भी ठप पड़ गए। भाजपा विधायक ने कहा कि ये अधिकारी अभी भी नींद से नहीं जाग रहे और मनमानी करने से बाज नहीं आ रहे।

अफसर बातचीत को तैयार नहीं : इस विषय पर जब अधिकारियों से बात करने की कोशिश की गई तो वे बातचीत को तैयार नहीं हुए। जल निगम के सूत्रों ने बताया कि ऐसे मामलों में कोई अधिकारी अपना मुंह नहीं खोलता क्योंकि वे सभी तरह के भ्रष्टाचार पर अपनी आंखें बंद कर लेते हैं, जिसकी वजह से जल निगम में पानी की अवैध बिक्री से लेकर कई तरह की धांधलियां की जाती हैं। सूत्रों के मुताबिक इस मामले में गहराई से जांच की जा रही है और जल्द ही दोषी अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

जल निगम को भ्रष्टाचार का अड्डा बताया : जल निगम में बिना स्वीकृति व बिना सरकारी आदेश के सरकारी फंड के दुरुपयोग का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले वाराणसी, ललितपुर, गोंडा, झांसी, इलाहाबाद सहित कई प्रमुख शहरों में इस तरह के आरोप लग चुके हैं। प्रदेश भर में जल निगम द्वारा हैंड पंपों के रीबोर, सीवर लाइन बिछाने, मरम्मत का कार्य करने में भारी घोटाले होते हैं। साल 2011 में तो हद हो गई थी जब आगरा के लोगों ने जल निगम के भारी भ्रष्टाचार से तंग आकर वहां जल निगम के कार्यालय की दीवार पर ही लिख दिया था- जल निगम भ्रष्टाचार का अड्डा। जल निगम के इंजीनियर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जल निगम में अधिकारी पानी की आपूर्ति करने से ज्यादा समय विभिन्न एजेंसियों से मिलने वाली राशि के हेरफेर में लगाते हैं।

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पानी की अवैध बिक्री से करोड़ों की अवैध कमाई

जल निगम ऐसी संस्था है, जिस पर शहरों में शुद्ध पानी पहुंचाने की पूरी जिम्मेदारी है, लेकिन उच्चाधिकारियों की मिलीभगत से बड़े शहरों में पानी की अवैध बिक्री से हर साल करोड़ों की काली कमाई की जाती है। गाजियाबाद के प्रताप विहार में 100 एमएलडी का गंगाजल शोधन संयंत्र है जहां से नोएडा और गाजियाबाद के वसुंधरा, वैशाली और इंदिरापुरम जैसे पॉश इलाकों में पानी की आपूर्ति की जाती है। लेकिन यहां पर पानी लोगों के घरों में कम फैक्ट्रियों व बहुमंजिली इमारतों के निर्माण कार्य के लिए अवैध तरीके से बेचा जाता है। ट्रांस हिंडन आरडब्ल्यूए फेडरेशन के उपाध्यक्ष कैलाशचंद्र शर्मा बताते हैं कि यहां की दस लाख से ज्यादा आबादी बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रही है, लेकिन जल निगम की ओर पानी की अवैध बिक्री धड़ल्ले से जारी है, स्थानीय लोग जब इसकी शिकायत करते हैं तो उन्हें पानी माफिया डरा धमकाकर चुप करा देते हैं।

एसटीपी के संचालन में भी हेराफेरी

गाजियाबाद के इंदिरापुरम में जल निगम द्वारा 74 एमएलडी का एक एसटीपी यानी सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाया गया है, जिसके संचालन पर हर महीने जल निगम को लाखों रुपये खर्च करने पड़ते हैं, जबकि इस प्लांट से निकलने वाले शोधित पानी की सही बिक्री की जाए तो यह खर्च आसानी से निकाला जा सकता है मगर ऐसा नहीं होता। इस एसटीपी को निजी कंपनी के हाथों में सौंप दिया गया है जो इससे हर करोड़ों की कमाई करता है और यह रकम अधिकारियों तक तो पहुंच जाती है,लेकिन प्रदेश सरकार के खजाने में नहीं पहुंचती। इतना ही नहीं जल निगम व जलकल विभाग के बीच पानी के पैसे को लेकर बार-बार तकरार होती है और लोगों के लिए आपूर्ति होने वाला पानी बीच-बीच में बंद कर दिया जाता है। स्थानीय लोगों की मानें तो अधिकारियों की मनमानी की वजह से आम लोगों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है।

जल निगम में दो-तीन बड़े अधिकारी कई साल से घोटाला कर रहे हैं। मैं नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना का शुक्रगुजार हूं जिन्होंने मेरी शिकायत पर तुरंत कार्रवाई की है और मामले की गहराई से जांच की जा रही है।

सुरेंद्रनाथ सिंह, भाजपा विधायक

जल निगम व जल कल के आला अधिकारी पानी की अवैध बिक्री करके हर साल लाखों करोड़ों की रकम डकार रहे हैं। इस पर तत्काल रोक लगाकर जांच कराई जानी चाहिए।

कैलाशचंद्र शर्मा, उपाध्यक्ष, ट्रांस हिंडन आरडब्ल्यूए फेडरेशन

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