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जिला पंचायत की कुर्सी ने किया हाथरस की राजनीति में धमाका, सीमा उपाध्याय ने थामा कमल
जिला पंचायत की राजनीति ने प्रदेश में विरोधी धुरी पर खड़े राजनेताओं को भी दोस्त बनाना शुरू कर दिया है।
लखनऊ। जिला पंचायत की राजनीति ने प्रदेश में विरोधी धुरी पर खड़े राजनेताओं को भी दोस्त बनाना शुरू कर दिया है। एक महीने पहले पूर्व कैबिनेट मंत्री रामवीर उपाध्याय के बेटे को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने वाली भारतीय जनता पार्टी ने शनिवार को फूलमाला पहनाकर उनकी पत्नी को भाजपाई बना लिया। अब वह हाथरस में जिला पंचायत अध्यक्ष की मजबूत दावेदार होंगी। राजनीति के बदलाव में भाजपा ने रामवीर उपाध्याय के भाई मुकुल उपाध्याय और उनकी पत्नी रितु उपाध्याय को भी हाशिए पर ढकेल दिया है। सीमा उपाध्याय के भाजपा में शामिल होने के बाद अब रामवीर उपाध्याय का पार्टी ज्वाइन करना महज औपचारिकता भर रह गया है।
राजनीति में रिश्ते—नाते कितने अस्थायी और स्वार्थ के होते हैं। इसका नजारा शनिवार को हाथरस के भाजपा जिला कार्यालय में देखने को मिला। भारतीय जनता पार्टी के जिन नेताओं ने पंचायत चुनाव में पूर्व मंत्री व बसपा नेता रहे रामवीर उपाध्याय के भाई मुकुल उपाध्याय को हाथों—हाथ लिया था। उनकी पत्नी रितु उपाध्याय को जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी सौंपने का एलान किया था, उन्हीं मुकुल उपाध्याय से पार्टी ने अब किनारा कर लिया है। रितु उपाध्याय चुनाव हार गईं और उन्हें चुनावी समर में पराजित करने वाली उनकी जेठानी व पूर्व सांसद सीमा उपाध्याय को शनिवार को उनके समर्थकों के साथ भाजपा नेताओं ने पार्टी में शामिल कर लिया।
जिला भाजपा कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम के दौरान भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष बृज बहादुर, सांसद राजवीर दिलेर, जिला अध्यक्ष गौरव आर्य और हाथरस से बीजेपी के दोनों विधायक उपस्थिति रहे। रामवीर उपाध्याय हालांकि इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए, लेकिन भाजपा ने जिला पंचायत चुनाव की शुरुआत में उनके जिस बेटे चिराग उपाध्याय को पार्टी से निष्कासित किया था। शनिवार को उसकी भी समर्थकों समेत वापसी हो गई है। इस तरह हाथरस में भाजपा की राजनीति अब पूरी तरह उपाध्याय परिवार के इर्द—गिर्द सिमट गई है। रामवीर उपाध्याय के छोटे भाई रामेश्वर उपाध्याय को भी भाजपा में शामिल किया गया है। रामेश्वर उपाध्याय 10 साल ब्लॉक प्रमुख रहे है और इस बार भी मुरसान ब्लॉक से निर्विरोध बीडीसी हैं। बताया जा रहा है कि उनके समर्थन में 80 में 65 ग्राम प्रधान व ग्राम पंचायत सदस्य आ चुके हैं। उन सभी को हाथरस जिले से अलग किसी अज्ञात स्थान पर रखा गया है।
जिला पंचायत की कुर्सी बनी कारण
बसपा से निष्कासित पूर्व मंत्री रामवीर उपाध्याय ने हालांकि अब तक किसी भी अन्य राजनीतिक दल से अपनी निकटता का प्रदर्शन नहीं किया है, लेकिन जिस तरह से पहले उनके भाई मुकुल उपाध्याय और बाद में बेटे चिराग वीर उपाध्याय ने भाजपा का दामन थामा था उससे हाथरस की राजनीति में कयास लगाए जा रहे हैं कि देर—सबेर वह भी भाजपा का हिस्सा होंगे। रामवीर उपाध्याय की पत्नी सीमा उपाध्याय ने वर्ष 2009 में फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट पर बसपा से चुनाव लड़ा था और सांसद बनने में कामयाब हुई थीं। तब रामवीर उपाध्याय प्रदेश सरकार में उर्जा मंत्री थे।
सीमा उपाध्याय को इस बार रामवीर ने जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ाया था। उनके छोटे भाई मुकुल उपाध्याय की पत्नी रितु उपाध्याय को भाजपा ने जिला पंचायत सदस्य का टिकट दिया था। बताया जा रहा है कि इस टिकट की वजह से ही उपाध्याय परिवार में आपसी तनाव बढ़ गया है। हाल यह हुआ कि मुकुल उपाध्याय की पत्नी जिस सीट से चुनाव लड़ रही थी उसी पर रामवीर उपाध्याय की पत्नी सीमा उपाध्याय ने पर्चा दाखिल कर दिया और चुनाव भी जीत गई हैं। भाजपा के समर्थन के बावजूद रितु उपाध्याय चुनाव मैदान में पांचवें स्थान पर ही आ सकीं।
ऐसी स्थिति में अब भाजपा के सामने एक ही रास्ता था कि वह सीमा उपाध्याय को अपने साथ लाए और मुकुल को किनारे कर दे। सीमा उपाध्याय हाथरस जिला पंचायत की दो बार अध्यक्ष रह चुकी हैं। रामवीर उपाध्याय ने अपनी पत्नी सीमा उपाध्याय समेत कई निर्दलीयों को भी जीत दिलाई है। जिले के कुल 24 पंचायत सदस्य में बीजेपी के 5 सदस्य जीत सके हैं। इनमें से कोई भी जिला पंचायत अध्यक्ष का मजबूत प्रत्याशी नहीं है। इसके विपरीत राष्ट्रीय लोक दल— सपा गठबंधन के 8 प्रत्याशी जीते हैं।
गठबंधन को उम्मीद थी कि भाजपा विरोध के दम पर जीत हासिल करने वाले रामवीर उपाध्याय अपने समर्थकों के साथ गठबंधन का साथ देंगे लेकिन रामवीर ने उनको समर्थन ना देकर बीजेपी में अपनी पत्नी को भेजना उचित समझा। इस तरह भाजपा और रामवीर दोनों को फायदा होता दिखाई दे रहा है, जहां भाजपा को जिला पंचायत अध्यक्ष अपना मिल जाएगा वहीं उपाध्याय परिवार में ही जिला पंचायत की कुर्सी रह जाएगी। यही वजह है कि भाजपा नेताओं ने रामवीर उपाध्याय के बेटे को भी पार्टी में वापस लेने में देर नहीं लगाई। ऐसे में माना जा रहा है कि मुकुल उपाध्याय का अब भाजपा से रिश्ता लंबा नहीं चल पाएगा।