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बीमारी से ज्यादा तकलीफ दे रहा इलाज, पीजीआई में बढ़ीं जांच और बेड की कीमतें

Dharmendra kumar
Published on: 24 Nov 2018 4:59 PM IST
बीमारी से ज्यादा तकलीफ दे रहा इलाज, पीजीआई में बढ़ीं जांच और बेड की कीमतें
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लखनऊ: पीजीआई में मरीजों की जांच और जनरल वार्ड के बेड की बढ़ी कीमतों ने मरीजों की परेशानियों को और बढ़ा दी हैं। पिछले 4 वर्षों से इन बढ़ी कीमतों के कारण गरीब मरीजों को इलाज करवाने के लिए दूसरे अस्पतालों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। जनरल वार्ड में जिस बेड का शुल्क 450 रुपए था, 2018 में उसी बेड की कीमत अब 650 रुपए हो गई है। वहीं प्राइवेट वार्ड के एक बेड का शुल्क 1250 से बढ़कर 1950 रुपए हो गया है। केवल बेड ही नहीं, मरीजों को जांच के लिए भी अब पहले से अधिक कीमत अदा करनी पड़ रही है। एक्स-रे से लेकर अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन, एम.आर.आई, खून की जांच और डायलिसिस भी पहले से महंगी हो गई है।

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इतना बढ़ा है शुल्क

जांच- 2014 - 2018

एक्स रे- 125 -150

डायलिसिस- 850 - 870

अल्ट्रासाउंड- 300 -360

जांच - 2015- 2018

यूरिन टेस्ट- 100-150

एमआरआई- 3000-4000

सीटी स्कैन- 1500-2000

गौरतलब है कि 4 साल से बढ़े हुए इन शुल्कों को कम करने के लिए कई बार मरीजों ने शिकायत की, लेकिन अस्पताल प्रशासन की तरफ से कोई कार्यवाही नहीं हुई।

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जेनेरिक दवाईयां भी बाजार से खरीदनी पड़ रही हैं

पीजीआई में अब जेनेरिक दवाईयां भी मरीज़ों को बाहर से खरीदनी पड़ रही हैं। सरकारी अस्पतालों में मुफ्त में मिलने वाली दवाईयों के लिए पीजीआई के मरीजों को पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं। बुखार, उल्टी, दस्त, एंटीबायोटिक और मल्टीविटामिन की गोलियां भी अब अस्पताल में नहीं दी जा रहीं। मजबूरन यह सभी दवाईयां मरीजों को बाजार से लेनी पड़ रही हैं।

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वार्ड में है स्टाफ की कमी

पीजीआई के सभी वार्डों में स्टाफ की भारी कमी है। हर वार्ड में कुल 30 बेड हैं। इंडियन नर्सिंग काउंसिल के निर्देशों के अनुसार 30 बेड पर 40 स्टाफ की ज़रूरत होती है। लेकिन पीजीआई के किसी भी वार्ड में 18 से ऊपर स्टाफ नहीं है। नेफ्रोलॉजी विभाग में केवल 16 लोगों का स्टाफ है। वहीं डायलिसिस के लिए 1 मरीज़ को 1 स्टाफ की ज़रूरत है, पर वहां 1 स्टाफ 3 मरीजों की देखभाल कर रहा है। इस कारण मरीजों की सही तरह से देखभाल नहीं हो पा रही है।

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आईसीयू में भी 1 मरीज पर 1 स्टाफ की जरूरत है, पर वहां भी 1 स्टाफ 4 मरीजों को देख रहा है। दूसरे वार्डों का भी कमोबेश यही हाल है। हर वार्ड में स्टाफ की संख्या जरूरत से आधी है। कर्मचारियों की भर्ती के लिए विज्ञापन तो दिए गए हैं, पर अभी तक परीक्षा की कोई व्यवस्था नहीं हुई है। नतीजतन सही उपचार की आस लगाए मरीज़ों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।



Dharmendra kumar

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