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इसका ​कोई नहीं है, डॉक्टर समाजसेवी भी देखते ही मुंह फेर लेते हैं इससे

जिला अस्पताल में रेंग रेंगकर इधर से उधर जाती इस बुजुर्ग महिला को अपना नाम  नहीं पता है। ये भी नहीं पता कि वह कहां से आई है। तन पर फटे पुराने गंदे कपड़े पहने बुजुर्ग विक्षिप्त महिला को कोई देखने वाला नहीं है। ठंड से बचने के लिए कभी इमर्जेंसी वार्ड में  एक कोने पर लेट जाती तो कभी एक गंदे कंबल को आधा जमीन पर बिछाती और आधे कंबल को ठंड से बचने के लिए ओढ़ लेती है।

Anoop Ojha
Published on: 15 Feb 2019 9:18 AM GMT
इसका ​कोई नहीं है, डॉक्टर समाजसेवी भी देखते ही मुंह फेर लेते हैं इससे
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आसिफ अली

शाहजहांपुर: जिला अस्पताल में रेंग रेंगकर इधर से उधर जाती इस बुजुर्ग महिला को अपना नाम नहीं पता है। ये भी नहीं पता कि वह कहां से आई है। तन पर फटे पुराने गंदे कपड़े पहने बुजुर्ग विक्षिप्त महिला को कोई देखने वाला नहीं है। ठंड से बचने के लिए कभी इमर्जेंसी वार्ड में एक कोने पर लेट जाती तो कभी एक गंदे कंबल को आधा जमीन पर बिछाती और आधे कंबल को ठंड से बचने के लिए ओढ़ लेती है।

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जिला अस्पताल के बाहर लेटी इस बुजुर्ग विक्षिप्त महिला को रोज डाक्टर से लेकर कर्मचारी और आमजन से लेकर समाजसेवी देखतें जरूर है। लेकिन उसका हाल जानने वाला कोई नहीं है। पिछले करीब 15 दिन से इस महिला को अस्पताल के अंदर तो कभी बाहर देखा जाता है। महिला अपने बारे में कुछ भी बता पाने में असमर्थ है।क्या उसकी शादी हुई है या नहीं। अगर शादी हुई है तो उसके बच्चे भी है या नहीं है। ये ऐसे सवाल है जिसके जवाब इस महिला के पास है। लेकिन जवाब सुनने और समझने के लिए उसके पास कोई भी शख्स जाने को राजी नहीं है।

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बुजुर्ग महिला कंपकपाती ठंड मे फटे पुराने कपड़े पहने हुए है। दिन में धूप निकलती है तो अस्पताल परिसर में रेंग रेगकर आ जाती है और रात होते होते ठंड बढ़ जाती है। तो ठंड से बचने के लिए महिला इमर्जेंसी वार्ड में जाकर एक कोने में बैठ जाती है। महिला के पास जमीन पर बिछाने के लिए कुछ भी नहीं है। लेकिन ठंड से बचने के लिए महिला आधे कंबल को जमीन पर बिछाती और आधे कंबल को ओढ़कर सो जाती है। महिला को खाना कहां से मिलता है। ये किसी को कुछ नहीं पता। पता भी कैसे हो लोग उसके पास जाने से भी कतराते है। बस ऐसे ही इस बुजुर्ग विक्षिप्त महिला की जिंदगी कट रही है।

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अब बात करते है अस्पताल के जिम्मेदार डॉक्टर, सीएमएस, समाजसेवी और उन नेताओं को जो गरीबों मजलूमों और बेसहारा लोगों की हक की बात करते है। जिस जगह पर महिला रात मे लेटती है उस जगह पर डॉक्टर से लेकर कर्मचारी और सीएमएस के अनगिनत चक्कर लगते है। लेकिन कोई भी जिम्मेदार इस महिला के पास जाकर उससे बात करने की जहमत नहीं उठाता है। जबकि महिला को देखकर लगता है कि वहाँ काफी बीमार भी है। लेकिन कोई भी जिम्मेदार डॉक्टर कर्मचारी या सीएमएस उसे अस्पताल में भर्ती कर इलाज करने के लिए आगे नहीं आते हैं।

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अब बात करते है समाजसेवियों और नेताओं की। जिला अस्पताल में तमाम ऐसे समाजसेवी और नेता है जो अपने मरीज को सही इलाज न मिलने पर पूरा अस्पताल सिर पर उठा लेते हैं। इतना ही नहीं अगर उनके मरीज को दवा सही वक्त पर नहीं मिलती है तो वह जमकर हंगामा काटते है। लेकिन वही समाजसेवी और नेता इस महिला को देखकर भी आंख मूंदकर आगे बढ़ जाते हैं। उस वक्त उनकी भी इंसानियत मर जाती है। आखिर कब तक महिला इसी तरह से अस्पताल को अपना आशियाना बनाए रहेगी। कोई अधिकारी कर्मचारी समाजसेवी या फिर नेता इस महिला की कब सुध लेता है। ये देखने वाली बात होगी।

Anoop Ojha

Anoop Ojha

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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