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शाइस्ता अंबर बोलीं- हलाला जैसी जिल्लत से मुस्लिम औरतों को निजात दिलानी होगी

aman
By aman
Published on: 5 Nov 2016 4:15 PM IST
शाइस्ता अंबर बोलीं- हलाला जैसी जिल्लत से मुस्लिम औरतों को निजात दिलानी होगी
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लखनऊ: ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड की प्रेस कांफ्रेंस शनिवार को हुई। पत्रकारों से बातचीत में शाइस्ता अंबर ने कहा, 'हलाला जैसी जिल्लत से औरत को निजात दिलानी होगी।' शाइस्ता ने मांग की कि जो भी हलाला कराए उसे सजा हो। मर्दों की दूसरी-तीसरी शादी पर रोक लगे। शाइस्ता अंबर ने कहा, हिंदू विवाह अधिनियम की तरह ही मुस्लिम महिलाओं की काउंसलिंग की जाए।

ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड ने प्रेस कांफ्रेंस करते हुए कॉमन सिविल कोड का विरोध जताया और सुब्रमण्यम स्वामी के बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि 'हम पर कोई भी कानून ज़बरदस्ती थोप नहीं सकता। उन्होंने कहा, कि अगर सरकार कॉमन सिविल कोड लागू करना चाहती है तो क्या सरकार सिख महिलाओं की तरह हिन्दुस्तान की सभी महिलाओं को कटार रखने की अनुमति देगी?'

हिंदू महिलाएं बेहतर स्थिति में

शाइस्ता अंबर ने कहा, हिंदू बहनें मुस्लिम महिलाओं से ज्यादा बेहतर स्थिति में हैं। ऐसे कानून बनाए जाएं जिससे निकाह आसान हो जाये और तलाक मुश्किल हो जाए।

मुस्लिम महिलाएं नहीं दर्ज करवाती केस

शाइस्ता ने कहा, 'मुस्लिम महिलाएं अपने ऊपर हो रही उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज नहीं कराती हैं। इसका कारण है कि उन्हें डर रहता है कहीं उनके पति उन्हें तलाक न दे दें।' उन्होंने कहा, मैं मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के फॉर्म भरवाने का समर्थन करती हूं, लेकिन थोड़ी-थोड़ी मुखालफत भी करती हूं।

आगे की स्लाइड में पढ़ें क्या है ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की मांग ...

तीन तलाक से जिंदगी बदतर हो गई

शाइस्ता ने आगे कहा, मैं कॉमन सिविल कोड का समर्थन नहीं करती हूं। उन्होंने कहा, कुरान के हिसाब से महिलाओं को तलाक मिले। आज भी हर रोज तीन तलाक के मामले सामने आ रहे हैं, इससे मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी बदतर हो गई है।

क्या है ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की मांग:

-एक सांस में तीन तलाक न हो मान्य।

-इस्लामी शरीयत के हिसाब से मुस्लिम विवाह अधिनियम संसद में पारित किया जाए।

-वक़्फ़ की जायदात से तलाक़शुदा औरतो की देखभाल की जाए।

-दारुल क़ज़ा में हो एक महिला और एक पुरुष जिससे पीड़ित महिला महिला क़ाज़ी से बिना हिचकिचाहट अपना दर्द बयान कर सके।

-मुस्लिम लड़कियों के लिए मेडिकल कालेज बनाये जाए।

-मुस्लिम महिलाओ के लिए बनाये जाए मदरसे जहा से वो शरीयत का दर्स हासिल कर सके और अपना हक़ जान सके।

-18 साल तक बच्चे की परवरिश का ज़िम्मा उसके पिता का हो अगर बच्चा आगे पढ़ना चाहे तो पढाई की ज़िम्मेदारी भी उसके वालिद की ही हो।

राजनैतिक पार्टियों के सपोर्ट की नहीं है जरूरत

ऑल इण्डिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपनी इस मुहिम में किसी भी राजनैतिक दल को शामिल करने से साफ मन करते हुए कहा कि 'हमें किसी भी राजनैतिक दल के सपोर्ट की ज़रूरत नहीं है। अगर कोई सियासी दल हिमायत करता है तो उससे पहले वो जेल में बंद बेगुनाह नौजवानों को जेल से छुड़वाने का काम करे।'

हलाला करवाने वालों के लिए बने सख्त कानून

बोर्ड की वकील चन्द्रा राजन ने कहा कि हलाला कहीं से भी ठीक नहीं है। हलाला जैसी कुप्रथाओं को धर्म का नाम देकर मुस्लिम महिलाओं का शोषण किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अगर कोई भी व्यक्ति हलाला करवाता है तो उसे मुस्लिम महिला के उत्पीडन का दोषी मानते हुए सख्त से सख्त सजा देने का प्रावधान बनाया जाए।

...लेकिन थोड़ा विरोध है

कामन सिविल कोड के खिलाफ ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के हस्ताक्षर अभियान की तरह मुस्लिम महिला बोर्ड ने भी हस्ताक्षर अभियान चलाया है। इस मसले पर बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर का कहना है कि हम ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के आमने-सामने नहीं है लेकिन उनकी कुछ चीज़ों से इत्तेफ़ाक़ भी नहीं रखते। उन्होंने कहा कि अगर बोर्ड अपने फॉर्म में कुछ चीजें जोड़ देता तो महिलाओं का भविष्य सुरक्षित हो सकता था।



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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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