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गजब का है ये इंसान: लावारिस लाशों के साथ करते है ऐसा, कर रहे पिता का सपना पूरा

लावारिस लाशों का सहारा बनते है ये बुजुर्ग चाचा। एक्सीडेंट होने मरने वाले या फिर किसी भी तरह से मौत के बाद जब शव की शिनाख्त नहीं हो पाती तो उसके अंतिम संस्कार के लिए सबसे आगे खड़े रहने वाले ये बुजुर्ग शख्स पिछले 25 साल से पून्य का काम कर रहे हैं।

Roshni Khan
Published on: 11 Feb 2020 9:08 AM GMT
गजब का है ये इंसान: लावारिस लाशों के साथ करते है ऐसा, कर रहे पिता का सपना पूरा
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आसिफ अली

शाहजहांपुर: लावारिस लाशों का सहारा बनते है ये बुजुर्ग चाचा। एक्सीडेंट होने मरने वाले या फिर किसी भी तरह से मौत के बाद जब शव की शिनाख्त नहीं हो पाती तो उसके अंतिम संस्कार के लिए सबसे आगे खड़े रहने वाले ये बुजुर्ग शख्स पिछले 25 साल से पून्य का काम कर रहे हैं। खास बात ये है कि लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार इस बुजुर्ग शख्स से पहले उनके दादा करते थे। पून्य कमाने का सिलसिला सन 1950 से इसी परिवार से चलता रहा है।

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दरअसल थाना सदर बाजार के दाना मियां की मजार के पास रहने वाले 79 साल के मोहम्मद शमी है। आर्डनेन्स क्लोदिंग फैक्ट्री में जॉब करने के बाद 19 साल पहले वह रिटायर्ड हो गए थे। मोहम्मद शमी ने पिछले 25 साल से लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी उठाई हुइ है। 25 साल में वह सैंकड़ों अज्ञात में मिली मुस्लिम शवों का अंतिम संस्कार करा चुके है। मोहम्मद शमी को सबसे पहले पोस्टमार्टम हाउस से फोन आ जाता है कि चाचा अज्ञात शव आया है। फिर वह उसके अंतिम संस्कार की तैयारी करना शुरू कर देते है। नियम है कि जिला प्रशासन 72 घंटे तक अज्ञात लाश के परिजनों का इंतजार करता है।

कोशिश करता है कि जैसे हो भी अज्ञात शवों की शिनाख्त हो सके है और वह जिस धर्म का हो उसका उसी धर्म के आधार पर उसका अंतिम संस्कार हो सके। लेकिन जब शव की पहचान नही हो पाती है तो फिर पहचान की जाती है जो शव मिला है वह किसी मुस्लिम का है या फिर हिंदू का। अगर मुस्लिम का होता है तो पोस्टमार्टम हाउस से फोन मोहम्मद शमी के पास जाता है। फिर 72 घंटे तक इंतजार करने के बाद शव को मोहम्मद शमी को सौंप दिया जाता है। उसके बाद वह उस शव को चमकनी कर्बला के कब्रिस्तान में मुस्लिम रीति रिवाज के साथ उसको दफना देते है।

मोहम्मद शमी बताते है कि वह घर के पास एक मस्जिद में नमाज पढ़ाते है। उस मस्जिद में कुछ दुकाने है जिसका किराया आता है। उस किराये से मस्जिद का खर्च निकालते है उसके बाद उस मस्जिद के हाजिफ की सैलरी निकालते है। उसके बाद जो पैसा बचता है उससे अज्ञात मिलने वाली लाशों का अंतिम संस्कार कराते है। अगर पैसे कम पङते है तो उसमें अपनी मिलने वाली पेंशन का पैसा लगाते है। लेकिन किसी से चंदा नही करते है।

एक अज्ञात शव का अंतिम संस्कार करने में 2200 रूपये का खर्च आता है

उन्होंने बताया कि एक अज्ञात शव का अंतिम संस्कार करने में 2200 रूपये का खर्च आता है। 800 रूपये कब्र खोदने वाले को देते है। अंतिम संस्कार के लिए जब पटले लेते है तो आरा मशीन वाला पैसे कम कर लेता है। कम पैसे लेने के बावजूद 700 रूपये देना पड़ते है। उसके बाद उस शव को पोस्टमार्टम हाउस से कब्रिस्तान तक लाने में 500 रूपये का खर्च आ जाता है। उसके बाद कुछ ऐसी चीजे होती है जिनमें कुछ और पेसे खर्च होते है। कुल मिलाकर 2200 रूपये एक अंतिम संस्कार पर खर्च करते है।

सन 2017 में 26 अज्ञात शवों के अंतिम संस्कार किये थे। उसके बाद आधार कार्ड के लिए बताया गया था कि अपने पास आधार कार्ड जरूर रखे। यही कारण था कि 2018 में अज्ञात शवों के मिलने की संख्या कम हो गई और महज 18 शव ही मिले। अज्ञात शव में कमी आने का कारण ये भी था कि लोग अपने पास आधार कार्ड रखने लगे। हादसा होने के बाद आधार कार्ड से उनकी पहचान हो जाती थी। सन 2019 में महज 17 शव मिले जिनका सहारा सिर्फ बुजुर्ग चाचा ही बने।

पुन्य का कार्य करने वाले मोहम्मद शमी के दादा सूखी सखावत भी लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कराते है। लेकिन पैसा कम होने के कारण वह चंदा इकट्ठा करके करते थे। उनके दादा भी आर्डनेन्स क्लोदिंग फैक्ट्री में थे। वह करीब 1950 से लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार कराने की जिम्मेदारी उठाई थी। तब एक अंतिम संस्कार में महज 15 रूपये का खर्च आता था। लेकिन 22 अक्टूबर 1978 को उनकी बिमारी के चलते मौत हो गई। उसके बाद मोहम्मद शमी ने अपने दादा के अच्छे कार्य को जारी रखा। अब पिछले 25 साल से वह इस कार्य को बखूबी निभा रहे हैं।

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आपको बता दें कि मोहम्मद शमी के परिवार तीन बेटे और तीन बेटियां है। बेटो की शादी कर चुके है। और दो बेटियां की भी शादी कर चुके है। अब उनको एक बेटी की शादी करना है। लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार में उनको परिवार का पूरा सहयोग मिलता है।

Roshni Khan

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