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कोरोना ने उजाड़ दिया पूरा परिवार, सिर से उठा माता-पिता और दादा-दादी का साया, अनाथ हुए 3 मासूम बच्चे
शामली में कोरोना के चलते तीन नाबालिक बच्चों के सिर से मां-बाप और दादा-दादी का साया हमेशा के लिए उठ गया
शामली: कोरोना वायरस के अध्याय को शायद सबसे काले रूप में याद रखा जाएगा। इस वायरस ने न जाने कितनी जिंदगियों को तबाह कर दिया। शामली में कोरोना के सामने घुटने टेकते हुए पूरा परिवार घर उजड़ गया। तीन नाबालिक बच्चों के सिर से मां बाप दोनों का साया हमेशा के लिए उठ गया। वहीं अब तीनों बच्चों के सामने खाने और पीने और पढ़ाई की समस्या खड़ी हुई है।
जिले की सदर कोतवाली क्षेत्र के गांव लिसाढ निवासी 9 बीघा जमीन में खेती कर अपने परिवार का भरण पोषण करने वाले किसान मांगेराम मलिक का परिवार हंसी खुशी जीवन व्यतीत कर रहा था। परिवार में एक साल के अंदर चार मौतें हो जाने से तीन मासूम बच्चों के ऊपर गमों का पहाड़ टूट गया है।
पिछले साल कोरोना की पहली लहर में मांगेराम का 40 वर्षीय पुत्र लोकेंद्र मलिक कोरोना पॉजीटिव पाया गया था। लोकेन्द्र मलिक की कोरोना रिपोर्ट पॉजीटिव आने के बाद उसके पिता मांगेराम अपने पुत्र को लेकर शामली के हॉस्पिटल में उपचार कराते रहे। उपचार के दौरान उनको होम आइसोलेशन में रखा गया। उपचार के दौरान अचानक तबीयत बिगडने पर अप्रैल 2020 में लोकेन्द्र की कोरोना के कारण मौत हो गई।
लोकेन्द्र की मौत के कारण उसके परिजनों पर गम का पहाड़ टूट गया। लोकेन्द्र के निधन के बाद घर में कमाने वाला कोई नहीं बचा। लोकेन्द्र के बड़े बेटे हिमांशु मलिक ने बताया कि उसके पिता ने उसकी और बहन प्राची का एडमिशन शामली के सरस्वती विद्या मंदिर स्कूल में कराया था। वर्तमान में वह हाईस्कूल तथा उसकी बहन कक्षा नौ की छात्रा है। उसका 10 वर्षीय छोटा भाई प्रियांशु गांव लिसाढ के सरस्तवी शिंशु मंदिर स्कूल में कक्षा सात में पढ रहा था। यह कोरोना काल उनके लिए अभिशाप बन कर आया है। उसके पिता लोकेन्द्र की मृत्यु से उसके बाबा मांगेराम व उनकी अम्मा शिमला इस सदमें को झेल नहीं पाएं तथा उनके पिता की मृत्यु के कुछ समय बाद बाबा भी इस दुनिया को छोड़ गए। पुत्र के बाद पति के वियोग में उनकी दादी शिमला भी माह नवंबर 2020 में अपने परिवार को मझधार में छोड गई।
परिवार अभी इस झटकों से उभरा भी नहीं था कि इस वर्ष आई कोरोना की दूसरी लहर में उनकी मम्मी 40 वर्षीय सविता भी कोरोना वायरस की चपेट में आ गईं। लगातार बुखार के बाद भी सविता के मन में पूर्व में घर में हो चुकी तीन मौतें से इतना डर बैठ गया कि वह शामली जाने की हिम्मत ना जुटा पाई। बच्चों के बार-बार समझाने के बाद भी जब सविता तैयार नहीं हुई तो बच्चों ने मामले की जानकारी अपने मामा संजू को दी। संजू ने गांव लिसाढ पहुंच कर अपनी बहन को शामली ले जाकर एक प्राइवेट हॉस्पिटल में उसका सीटी स्कैन कराया। जहां पर उसके फेफडों में 90 प्रतिशत से भी अधिक सक्रंमण पाया गया तथा डाक्टरों ने उसे जबाब दे दिया। 30 अप्रैल को उन्होंने ने भी दम तोड़ दिया।
एक साल में चार मौतों से बच्चों के ऊपर गम का पहाड़ टूट गया है। परिवार में अब तीन नाबालिक बच्चों के अलावा कोई नहीं बचा है। परिवार की जिम्मेदारी अब 13 वर्षीय हिमांशु के कंधों पर आ गई है। वहीं अब अपनी बहन प्राची व भाई प्रियांशु की देखभाल करने के साथ अपने खेतों का काम देख रहा है। प्रियांशु घर में हुए हादसे से बहुत विचलित है तथा अपने भाई व बहन को भविष्य को लेकर आंशकित है। फिलहाल कुछ दिनों से मृतक मांगेराम की बहन यानी बच्चों की बुआ तीनों बच्चों की देख-रेख कर रही हैं।
बड़ा असफर बनाना चाहते हैं बच्चें
उधर माता-पिता और दादा-दादी की मौत के मामले में घर में मौजूद कोरोना काल में अनाथ हुए बच्चों का कहना है कि हमें पढ़ लिख कर आगे बढ़ना है। सरकार अगर हमारी मदद कर दे तो मृतक दंपति की बेटी को डॉक्टर तो छोटे बेटे को आर्मी में ऑफिसर और बड़े बेटे को अधिकारी बनना है। अब ये तीनों भाई बहन ही एक दूसरे का सहारा हैं। किताबों की जगह अब खेतों में फावड़े और घर मे पालतू जानवरों की रस्सी उनके हाथों में है।