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ODOP Shazar Stone: एक पत्थर को देश-विदेश में मिली नई पहचान, चार सौ साल पहले हुई थी खोज, तस्वीरें देख हो जाएंगे हैरान

ODOP Shazar Stone: शजर पत्थर की दोनों के बीच बनी पेड़ जैसे आकृति को कहते हैं। शजर के बारे में शुरू में यह कहा जाता था, किसी खास नक्षत्र में प्रकाश के कारण पत्थरों पर यह आकृति बनती है, जो किनारे में लगे पेड़ों की छाया प्रति होती है।

Anwar Raza
Report Anwar Raza
Published on: 18 Jan 2023 7:05 PM IST
ODOP Shazar Stone
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ODOP Shazar Stone (सोशल मीडिया) 

ODOP Shazar Stone:उत्तर प्रदेश की बहुचर्चित वस्तुओं को देश विदेश में नई पहचान दिलाने और जिलों को स्वरोजगार पैदा करने के उद्देश्य साल 2018 में योगी सरकार ने एक जिला एक उत्पाद या वन डिस्टिक वन प्रोडक्ट (ओडीओपी) योजना की शुरुआत की थी। इस योजना के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद इसका उद्धाटन किया था। प्रदेश में इस योजना के चार साल पूरे हो गए हैं।

इन चार सालों में जिलों के कई उत्पादों को देश सहित वैश्विक पटल पर एक नई पहचान मिली है ,जो इससे पहले तक गुमनामी का शिकार थे। इसके अलावा इस स्कीम के तहत राज्य के बेरोजगार युवाओं को रोजगार के अवसर निकल कर सामने आए। ओडीओपी स्कीम में योगी सरकार ने बांदा जिले को भी शामिल किया है। शजर पत्थर की वजह से बांदा जिला ओडीओपी स्कीम में शामिल है। इस स्कीम के तहत बांदा का शजर पत्थर भारतीय सहित वैश्विक बाजार में अपनी एक नई पहचान बना चुका है।

दुनिया में तीन जगहों पर मिला है यह पत्थर

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, ओडीओपी स्कीम के अंतर्गत उत्तर प्रदेश के 75 जनपदों के 5 सालों में 25 लाख लोगों को रोजगार मिला है। बांदा के शजर पत्थर को योगी सरकार ने बढ़ावा देने को लेकर अपनी इस महत्वपूर्ण योजना में शामिल किया है। बांदा जिले के न्यूजट्रैक के संवाददाता ने शजल पत्थर से जड़े लोगों से जब बात की तो इससे जुड़ी कई रोचक जानकारी सामने आई। इस जानकारी यह पता चला कि शजल पत्थर एक अद्भुत संरचना है। यह प्राकृतिक के द्वारा दिया गया मानव जाति को एक बहुमूल्य उपहार है। शजर पत्थर पूरी दुनिया में तीन जहगों पर पाया जाता है, जिसमें हिंदुस्तान शामिल है। हिन्दुस्तान में शजर केवल यूपी के बांद जिले में पाया जाता है। इसके अलावा मोन्ताना, ब्राजील तथा रूस में यह पाया जाता है।

आसान नहीं होती इस पत्थर पर नक्काशी

वहां के स्थानीय बताते हैं कि शजर पत्थर की दोनों के बीच बनी पेड़ जैसे आकृति को कहते हैं। शहर के बारे में शुरू में यह कहा जाता था, किसी खास नक्षत्र में प्रकाश के कारण पत्थरों पर यह आकृति बनती है, जो किनारे में लगे पेड़ों की छाया प्रति होती है। कुछ वैज्ञानिक यह भी बताते हैं शहर पत्थर सिलिका का यौगिक है। कुछ भी हो शजर विश्व की प्राचीनतम कृति है, जो पृथ्वी की उम्र की है। उनका कहना है कि शजर एक कड़ा पत्थर है। इसकी कठोर व सख्त के कारण इस पत्थर पर नक्काशी करना आसान नहीं होता है। अगर इस पत्थर एक बार पालिश हो जाती है तो धुंधला नहीं होता है।

क्या है शजर पत्थर का इतिहास ?

शजर एक फारसी शब्द है, जिसका अर्थ छोटा पौधा होता है। ब्रिटिश इनसाइक्लोपीडिया में शजर को केन स्टोन कहा गया है। जबकि केन बांदा जिले में बहाने वाली प्रमुख नदी है। इस पत्थर पर इतिहास की बात करें तो आज से करीब 400 वर्ष पूर्व महाराजा छत्रसाल एवं उनकी कृपा पात्र मस्तानी के पुत्र नवाब जुल्फिकार अली खान बहादुर की निगाह एक संघ तराश रामदास पर मेहरबान हुई। रामदास ने बांदा में रहकर ग्रामीण क्षेत्र में यह नायाब पत्थर खोजा। रामदास ने पत्थर पहली बार लोहे की पत्ती से काटकर तराशा। लोगों बताते हैं कि उनके हाथ यह पत्थर पड़कर प्राकृतिक चमत्कार आश्चर्य रूप में प्रकट हो गया,जिसकी वजह से उन्हें प्रशंसा और धन खूब मिला। नवाब जुल्फिकार के लिए भी वह एक नायाब कुदरती करिश्मा लोगों को चकित करने तथा वाहवाही पाने का साधन बना।

ऐसे तैयार होता है शजर पत्थर

लोगों का कहना है कि शजर का निर्माण पत्थर चुनने से लेकर नगीना बनाने तक होता है। यह बहुथ श्रम वाला पत्थर है। इस पत्थर ढूंढने के लिए वर्षा ऋतु का प्रतीक्षा करनी पड़ती है। जब नदी में बाढ़ खत्म होती है, तभी यह पत्थर मिलते हैं। पत्थर हासिल करने के लिए लोगों को नदी के किनारे खोजना पड़ता है। हर संभव पत्थर का किनारा तोड़कर ढूंढने पड़ते हैं। यह एक पुरातन अवैज्ञानिक तरीका इस क्रिया में शजर भी टूटते हैं या बेकार अल्प मूल्य हो जाते हैं‌। कारखाने में लाकर फिर इनकी बारीकी से छटाई की जाती है। लोगों का कहना है कि पत्थरों में जिनमें सजल काफी गहरे होते हैं। इनकी कटाई की जाती है। इंप्रेशन घिस कर खोले जाते हैं। कटाई के लिए 23 गेज का स्प्रिंग स्टील वायर जो लकड़ी के 5 फुट लंबे धनुष पर एक और करीब 500 ग्राम वजन का पत्थर के साथ लिपटा होता है। बारीक कुरन पाउडर (एलुमिना या सिलीकान कारबाईड) पानी के साथ लगाकर पत्थर की निर्धारित पर्त पर घिसा जाता है। यह प्रक्रिया शजर के निर्माण में अहम भूमिका निभाती है। तब जाकर शजर का सुंदरीकरण होता है।



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Viren Singh

Viren Singh

पत्रकारिता क्षेत्र में काम करते हुए 4 साल से अधिक समय हो गया है। इस दौरान टीवी व एजेंसी की पत्रकारिता का अनुभव लेते हुए अब डिजिटल मीडिया में काम कर रहा हूँ। वैसे तो सुई से लेकर हवाई जहाज की खबरें लिख सकता हूं। लेकिन राजनीति, खेल और बिजनेस को कवर करना अच्छा लगता है। वर्तमान में Newstrack.com से जुड़ा हूं और यहां पर व्यापार जगत की खबरें कवर करता हूं। मैंने पत्रकारिता की पढ़ाई मध्य प्रदेश के माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्विविद्यालय से की है, यहां से मास्टर किया है।

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