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Shravasti News: श्रावस्ती की बौद्ध स्थली विदेशी पर्यटकों से रही गुलजार, घुमंतू जाति के गीत पर जमकर झूमे थाईलैंड के पर्यटक

Shravasti News: सारनाथ में बौद्ध संघ की स्थापना हुई। महात्मा बुद्ध अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में हिरण्यवती नदी के तट पर स्थित कुशीनारा पहुंचे। इसे बौद्ध परंपरा में महापरिनिर्वाण के नाम से भी जाता है।

Radheshyam Mishra
Published on: 24 Jan 2025 4:08 PM IST (Updated on: 24 Jan 2025 4:10 PM IST)
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श्रावस्ती की बौद्ध स्थली विदेशी पर्यटकों व अनुयायियों से रही गुलजार- (Photo- Social Media)

Shravasti News: बुद्ध की तपोस्थली आजकल अनुयायियों से गुलजार है। भगवान बौद्ध स्थली पर विदेशी पर्यटकों की भरमार है। थाईलैंड से आए उपासक व उपासिकाओं ने भिक्षु देवानंद के नेतृत्व में प्रार्थना की। इस दौरान भिक्षु देवानंद ने कहा कि ज्ञान प्राप्ति के बाद ही सिद्धार्थ गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए। उरुवेला से बुद्ध सारनाथ (ऋषि पत्तनम एवं मृगदाव) आए, यहां पर उन्होंने पांच ब्राह्मण सन्यासियों को अपना प्रथम उपदेश दिया। इसे बौद्ध ग्रंथों में धर्म चक्र-प्रवर्तन नाम से जाना जाता है।

बौद्ध स्थली पर विदेशी पर्यटकों की भीड़

बौद्ध संघ में प्रवेश सर्वप्रथम श्रावस्ती से प्रारंभ हुआ। उन्होंने मगध को अपना प्रचार केंद्र बनाया। बुद्ध के प्रसिद्ध अनुयायी शासकों में बिंबिसार, प्रसेनजित तथा उदयन थे। बुद्ध के प्रधान शिष्य उपालि व आनंद थे। सारनाथ में बौद्ध संघ की स्थापना हुई। महात्मा बुद्ध अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में हिरण्यवती नदी के तट पर स्थित कुशीनारा पहुंचे। इसे बौद्ध परंपरा में महापरिनिर्वाण के नाम से भी जाता है। मृत्यु से पूर्व कुशीनारा के परिव्राजक शुभच्छ को उन्होंने अपना अंतिम उपदेश दिया था। साथ ही बताया कि सिद्धार्थ बचपन से ही अत्यंत करुण हृदय वाले थे। वह किसी को भी दुखी नहीं देख सकते थे।


भगवान बौद्ध 21 वर्ष की आयु में एक बार वह अपने राज्य कपिलवस्तु की गलियों में घूम रहे थे। उस दौरान उनकी दृष्टि एक विकलांग वृद्ध, एक रोगी, एक पार्थिव शरीर और एक साधु पर पड़ी थी। सिद्धार्थ दृश्यों को देखकर वह समझ गए कि सबका जन्म होता है, सबको बुढ़ापा आता है, सबको बीमारी होती है, और एक दिन सब मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। इससे व्यथित होकर उन्होंने अपना घर-द्वार, पत्नी-पुत्र एवं राजपाठ का त्याग करते हुए साधु का जीवन अपना लिया।


वह जन्म, बुढ़ापा, दर्द, बीमारी और मृत्यु से जुड़े सवालों के जवाब की खोज में निकल पड़े। बताया कि सिद्धार्थ अपने प्रश्नों के उत्तर ढूंढ रह थे। समुचित ध्यान लगाने के बाद भी उन्हें इन प्रश्नों के उत्तर नहीं मिले। तपस्या करने पर भी उन्हें अपने प्रश्नों के उत्तर नहीं मिले। इसके बाद कुछ और साथियों के साथ अधिक कठोर तपस्या प्रारंभ की। ऐसा करते हुए छह वर्ष बीत गए। भूख से व्याकुल मृत्यु के निकट पहुंचकर बिना प्रश्नों के उत्तर पाए वह कुछ और करने के बारे में विचार करने लगे।


घुमंतू जाति की महिला ने गाए गीत

इसी दौरान वह एक गांव में भोजन की तलाश में निकल पड़े। वहां थोड़ा सा भोजन ग्रहण किया। इसके बाद वह कठोर तपस्या छोड़कर एक पीपल के पेड़ (जो अब बोधिवृक्ष के नाम से जाना जाता है) के नीचे प्रतिज्ञा करके बैठ गए कि वह सत्य जाने बिना उठेंगे नहीं। वह सारी रात बैठे रहे और माना जाता है यही वह क्षण था जब सुबह के समय उन्हें पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति हुई। 35 वर्ष की आयु में वह बुद्ध बन गये थे। इस दौरान काफी संख्या में उपासक मौजूद रहे। वही थाईलैंड के पर्यटकों का एक दल श्रावस्ती पहुंचा। इस दौरान घुमंतू जाति की महिला द्वारा गाये गए गीत पर इस दल के लोग जमकर नाचे और मस्ती में तल्लीन दिखे।



Shashi kant gautam

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