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Shravasti: चैत्र नवरात्रि के पहले दिन, मां शैलपुत्री की श्रद्धालुओं ने की पूजा अर्चना
Shravasti News: महंत रीता गिरि ने बताया कि शैल का अर्थ होता है हिमालय और पर्वतराज । हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण माता पार्वती को शैलपुत्री भी कहा जाता है।
Shravasti News: जनपद मुख्यालय भिनगा से महज 32 किलोमीटर की दूरी पर तहसील जमुनहा अन्तर्गत राप्ती नदी तट लक्षमण नगर बैराज और भिनगा जंगल बीच स्थित शक्तिपीठ जगपति माता का मन्दिर प्राकृतिक सौंदर्य का द्योतक है। सूकर क्षेत्र में राप्ती तट पर स्थित शक्तिपीठ माता जगपति मंदिर में माथा टेक कर मांगने वालों की सभी मुरादें पूरी होती हैं।
अगर परमेश्वर अक्षर है तो शक्ति मात्रा
यहां हिंदुओं के साथ ही मुस्लिम समुदाय के लोग भी माथा टेकने पहुंचते हैं। प्रत्येक सोमवार शुक्रवार के साथ-साथ नवरात्र के महीने में सैकड़ों की संख्या में भक्त मां के दर्शन कर अपनी मन्नत मांगते हैं। शक्ति की साधना अनंत काल से चली आ रही है क्योंकि सत्य के बिना शरीर निर्जीव की भांति रहता है। शक्ति और सर्वेश्वर से सारा जगत व्याप्त है। कहीं भी शक्ति के बिना शब्द भी बनना असंभव है। अगर परमेश्वर अक्षर है तो शक्ति मात्रा है।
प्रचलित मान्यता के अनुसार जगपति माता के चरणों में माथा टेककर मांगने वाले की सभी मुरादें पूरी होती हैं। दुर्गा सप्तशती के अनुसार जब रक्तबीज का बध करना था तो उस समय मां जगदंबा ने अपनी अद्भुत शक्तियों का प्रदर्शन किया है। उनके आह्वान पर जगपति,बाराही, इंद्राणी, ब्राह्मी, वैष्णवी, नरसिंही आदि देवियॉं उक्त आताताई के संघार के लिए रणभूमि में उपस्थित हुईं। देवी पुराण के अनुसार जब हिरण्याक्ष नामक दैत्य पृथ्वी को चुरा ले गया था तो उस दैत्य का वध करने के लिए भगवान विष्णु को वराह का रुप धारण करना पड़ा और पाताल लोक पहुंचने के लिए शक्ति की आराधना की आराधना की थीं।इसलिए आदिकाल से काल से देवी मां के स्वरूप की पूजा अर्चना होती रही है । यहां की पुजारी साध्वी रीता गिरि ने बताया कि नवरात्र माह में मंदिर को प्रतिदिन अलग-अलग रंगों से सजाया जाता है और माता के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है।
नवरात्रि के मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना
उन्होंने बताया कि आज वासंतिक नवरात्रि के पहले दिन, मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना होती है उन्होंने कहा कि प्रथम दिन घट स्थापना के बाद मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना की जाती है।
महंत रीता गिरि ने बताया कि शैल का अर्थ होता है हिमालय और पर्वतराज । हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण माता पार्वती को शैलपुत्री भी कहा जाता है। पार्वती के रूप में इन्हें भगवान शंकर की पत्नी के रूप में भी जाना जाता है। वृषभ (बैल) इनका वाहन होने के कारण इन्हें वृषभारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है।
मनोकामानएं पूरी होती हैं, कष्टों से मुक्ति मिलती है
मान्यता है कि श्रद्धा पूर्वक विधि-विधान के साथ मां दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा उपासना की जाती है, उसी सभी मनोकामानएं पूरी होती हैं और कष्टों से मुक्ति मिलती है। इनकी आराधना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति भी होती है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के स्वरूप में साक्षात शैलपुत्री की पूजा देवी के मंडपों में पहले नवरात्र के दिन होती है।साध्वी ने बताया कि माता शैलपुत्री का स्वरूप बेहत शांत और सरल है।
माता ने दाएं हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल धारण किया हुआ है। यह नंदी नामक बैल पर सवार संपूर्ण हिमालय पर विराजमान है। यह वृषभ वाहन शिवा का ही स्वरूप है। घोर तपस्चर्या करने वाली शैलपुत्री समस्त वन्य जीव जंतुओं की रक्षक भी है। शैलपुत्री के अधीन वे समस्त भक्तगण आते हैं जो योग, साधना-तप और अनुष्ठान के लिए पर्वतराज हिमालय की शरण लेते हैं। मां अपने भक्तों की हमेशा मनोकामना पूरी करती हैं और साधक का मूलाधार चक्र जागृत होने में सहायता मिलती है।
माता शैलपुत्री को पसंद हैं ये चीजें
साध्वी ने बताया कि माता की पूजा और भोग में सफेद रंग की चीजों का ज्यादा प्रयोग होता है। माता को सफेद फूल, सफेद वस्त्र, सफेद मिष्ठान अर्पित करना शुभ दायक है। माता शैलपुत्री की पूजा करने से कुंवारी कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है और घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती है। शैल का अर्थ होता है पत्थर और पत्थर को सदैव अडिग माना जाता है।
माता शैलपुत्री की कथा
साध्वी ने बताया कि माता शैलपुत्री से जुड़ी एक कहानी का उल्लेख यहां करना आवश्यक है। प्राचीनकाल में जब सती के पिता प्रजापति दक्ष यज्ञ कर रहे थे तो उन्होंने सारे देवताओं को इस यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन अपने जामाता भगवान महादेव और अपनी पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया। लेकिन सती की अपने पिता के यज्ञ में जाने की बहुत इच्छा थी। उनकी व्यग्रता देख शंकरजी ने कहा कि संभवत: प्रजापति दक्ष हमसे रुष्ट हैं इसलिए उन्होंने हमें आमंत्रित नहीं किया होगा।
शंकर जी के इस वचन से सती संतुष्ट नहीं हुई और जाने के लिए अड़ गईं। उनकी जिद देखकर भगवान शंकर ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी। सती जब अपने पिता के घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बाकी सदस्यों ने उनसे ठीक से बात नहीं की और व्यंग्यात्मक छींटाकशी भी की। दक्ष भी शंकर के प्रति कुछ बातें कहीं जो सती को उचित नहीं लगी। अपने पति का तिरस्कार होता देख उन्होंने योगाग्नि से अपने आप को भस्म कर लिया। जब शंकर को सती के भस्म होने के बारे में पता चला तो वे क्रोधित हो गए और उन्होंने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करवा दिया।
यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ और वे फिर से उनकी पत्नी बन गई। ऐसा कहा गया है कि मां दुर्गा के इस शैलपुत्री स्वरूप का पूजन करने से उपासक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और कन्याओं को मनोवांछित वर की प्राप्ति होती है और साधक का मूलाधार चक्र जागृत होने में सहायता मिलती है। इनके पूजन में लाल फूल, नारियल, सिंदूर और घी के दीपक का प्रयोग किया जाना चाहिए।
मां शैलपुत्री के पूजा मंत्र
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
पूणेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्॥
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥
इसी तरह से जिला मुख्यालय भिनगा के राजशाही काली मंदिर, इकौना के सीता माता मंदिर, ज्वाला माता मंदिर समेत जिले के सभी छोटे बड़े मंदिरों में माता के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा अर्चना की धूम रही और श्रद्धालुओं ने पूरे मनोयोग से माता के स्वरूप की विधि विधान से पूजा अर्चना की। और माता रानी से आशीर्वाद प्राप्त किया।