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सिसकी व साजिश: मेडिकल कॉलेज में आग से पूरा सिस्टम सवालों के घेरे में 

raghvendra
Published on: 9 Feb 2018 7:37 AM GMT
सिसकी व साजिश: मेडिकल कॉलेज में आग से पूरा सिस्टम सवालों के घेरे में 
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पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: योगी आदित्यनाथ के सूबे की सत्ता संभालने के पांच महीने बाद ही गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में आक्सीजन की कमी से हुई बच्चों की मौत ने पूरे देश में भूचाल ला दिया था। इस प्रकरण के झटकों से गोरखपुर का बीआरडी मेडिकल कॉलेज अभी तक उबर नहीं सका है। वर्ष 2017 जहां बच्चों की मौत की आंकड़े के मामले में पुराने रिकार्ड को तोड़ता दिख रहा है, वहीं बच्चों की मौतों के गुनहगारों पर कानूनी फंदा सबूतों के अभाव में अब कमजोर होता दिख रहा है। जेल में बंद ऑक्सीजन कांड के गुनहगार के खिलाफ सबूत जुटाने में नाकाम दिख रही पुलिस के सामने पिछले दिनों एक बार फिर मुश्किल खड़ी हो गई जब 8 जनवरी को मेडिकल कॉलेज का प्राचार्य कक्ष साजिश की आग से धधक उठा जिसमें ऑक्सीजन कांड से लेकर दवा खरीद के महत्वपूर्ण दस्तावेज खाक हो गए।

आग की घटना ने पूरे प्रशासनिक अमले को सवालों के घेरे में ला दिया है। डीएम के निर्देश पर जांच कर रहे मुख्य अग्निशमन अधिकारी की रिपोर्ट ने भी साजिश की आग की पुष्टि कर दी है। बिजली निगम के अधिकारियों द्वारा शार्ट सर्किट की संभावना से इनकार किए जाने के बाद यह साफ हो चला है कि ऑक्सीजन कांड या दवा खरीद के गुनहगारों का ही इसमें हाथ था।

मेडिकल कॉलेज से जुड़े प्रकरणों को लेकर सरकारी सिस्टम सवालों के बीच खड़ा है। सरकार न तो ऑक्सीजन कांड के गुनहगारों के खिलाफ ठोस सबूत जुटा पा रही है और न ही बच्चों की मौतों पर अंकुश। जेल के अंदर या बाहर के साजिशकर्ताओं ने ऑक्सीजन कांड से जुड़े महत्वपूर्ण दस्तावेजों को फूंक दिया और सिस्टम सबकुछ लाचार देखता रहा। मेडिकल कॉलेज की आग को लेकर एक बार फिर अफसरों की कमेटी बना दी गई है। वह जांच कर रही है, लेकिन उसके हाथ कुछ लगने की संभावनाएं न के बराबर हैं।

ऑक्सीजन कांड के बाद शुरू हुई जांचों का केन्द्र प्राचार्य कक्ष ही रहा। डीएम की जांच समिति, डीजीएमई की कमेटी, मुख्य सचिव की समिति के अलावा मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस की जांच की शुरुआत भी प्राचार्य कक्ष से ही हुई। पुलिसिया जांच के दौरान प्राचार्य के कमरे में कई जरूरी फाइलें रखी गईं। इन फाइलों में ऑक्सीजन त्रासदी से जुड़े शिक्षकों व कर्मचारियों की कुछ फाइलें, पुलिस को सबूत के तौर पर दी गई फाइलों की फोटोकॉपी व सूची, ऑक्सीजन के टेंडर की फाइल, बीआरडी के दूसरे शिक्षकों की एसीआर, कॉलेज के प्रस्तावित प्रोजेक्ट की फाइलें व दूसरी पत्रावलियां शामिल हैं। इसके अलावा आउटसोर्सिंग के जरिए हुई भर्तियों की फाइल भी यहीं थी।

प्राचार्य कक्ष में लगी आग को लेकर प्रभारी प्राचार्य डॉ.रामकुमार जायसवाल की भूमिका भी संदेह के दायरे में है। बीते आठ महीने में उन्हें जब भी प्रभारी प्राचार्य का चार्ज मिल रहा है तब कॉलेज में विवाद की चिंगारी भडक़ उठी है। पिछले 8 जनवरी को जब प्रार्चाय कक्ष में आग लगी तब भी वर्तमान प्राचार्य डॉ.गणेश कुमार लखनऊ मीटिंग में गए थे। इससे पहले बीआरडी में ऑक्सीजन त्रासदी के दौरान वे ही प्राचार्य थे। ऑक्सीजन त्रासदी की घटना 10 व 11 अगस्त को हुई थी। 10 अगस्त की सुबह तत्कालीन प्राचार्य डॉ.राजीव मिश्रा भी डॉ.रामकुमार को ही प्राचार्य का चार्ज देकर बाहर गए थे। वैसे जांच टीम ने पूर्व प्राचार्य डॉ.के.पी.कुशवाहा को भी नोटिस थमाया है। ऐसे में पूरे प्रकरण में डॉ.कुशवाहा का नाम भी उछाला जा रहा है।

आरोपियों के खिलाफ सबूत नहीं जुटा पा रही पुलिस

मुख्य सचिव की अगुआई में चार सदस्यीय कमेटी ने बच्चों की मौत के जिम्मेदार लोगों और हादसे के दोषियों की पहचान की थी। मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव की कमेटी की अनुशंसाओं को स्वीकार करते हुए कड़ी कार्रवाई करने के आदेश जारी किया था। इस रिपोर्ट में मेडिकल कॉलेज के तत्कालीन प्राचार्य डॉ.राजीव मिश्रा, एनेस्थिसिया के विभागाध्यक्ष डॉ. सतीश कुमार और डॉ.कफील खान सहित नौ लोगों को दोषी ठहराया गया था। इसमें मेडिकल कालेज में अक्सीजन सप्लाई करने वाली फर्म पुष्पा सेल्स के संचालक, प्राचार्य की पत्नी और चार कर्मचारी शामिल हैं।

सभी के खिलाफ लापरवाही, भ्रष्टाचार और गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज हुआ है। सभी आरोपी फिलहाल जेल में हैं,लेकिन पुलिस इनके खिलाफ ठोस सबूत जुटाने में नाकाम दिख रही है। सबूतों के अभाव में चार्जशीट में कई गम्भीर धाराओं को विवेचक ने हटा दिया है। जांच टीम हाईकोर्ट में पूरी रिपोर्ट नहीं प्रस्तुत कर सकी है। जेल की सजा काट रहे डॉक्टरों और अन्य आरोपियों के परिजनों का दावा है कि जांच रिपोर्ट प्रस्तुत होते ही कोर्ट से राहत मिलनी तय है।

पिछले साल हुई 3239 बच्चों की मौत

कॉलेज सूत्रों की सूचना तस्दीक करती है कि मेडिकल कॉलेज में वर्ष 2017 में 3239 बच्चों की मौत हुई है। हालांकि कॉलेज के प्रशासन ने इसकी पुष्टि नहीं की है। मेडिकल कॉलेज में 2014 में 1734, 2015 में 2206, 2016 में 2988 बच्चों की मौतें हुई थीं। पिछले वर्ष कॉलेज के एनआईसीयू में 2032 शिशुओं की मौत हुई। एनआईसीयू में 28 दिन तक के बच्चे भर्ती होते हैं। अधिकतर बच्चों की मौत बेहद कम वजन, संक्रमण और सांस संबंधी समस्या के कारण हुई है। वहीं नेहरू चिकित्सालय के पीआईसीयू में 1207 बच्चों की मौत हुई। इसमें 510 इंसेफेलाइटिस रोगी थे। वर्ष 2017 में जापानी इंसेफेलाइटिस के केस भी बढ़ गए हैं। रूटीन टीकाकारण के अलावा वर्ष 2017 में 92 लाख बच्चों को एक विशेष अभियान के तहत टीका लगाया था। इसके बावजूद जापानी इंसेफेलाइटिस के केस बढऩे पर सवाल उठ रहे हैं। वर्ष 2017 में इंसेफेलाइटिस से मृत्यु दर में जरूर कमी आई है।

इंसेफेलाइटिस को लेकर अभियान चलाएगी सरकार

मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौतों से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर भी चिंता की लकीरें साफ दिखती हैं। 29 और 30 जनवरी को मुख्यमंत्री गोरखपुर में लोकसभा उपचुनाव से पहले लोकार्पण और शिलान्यास कार्यक्रमों से जहां जीत की बुनियाद रखने की कोशिश कर रहे थे वहीं उनके भाषणों में मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौत की टीस साफ दिख रही थी। आधा दर्जन से अधिक जनसभाओं में मुख्यमंत्री ने इंसेफेलाइटिस से निजात के उपायों पर मजबूती से अपनी बातें रखीं। उन्होंने दावा किया कि प्रदेश सरकार ने ब्लू प्रिंट तैयार कर लिया है। गोरखपुर, बस्ती और देवीपाटन मंडल के जिला अस्पतालों में इंसेफेलाइटिस से लडऩे के इंतजाम होंगे। सीएम ने प्रमुख सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर आईसीयू की सुविधा देने का दावा भी किया।

गोरखपुर-बस्ती मंडल के ग्राम प्रधानों की बैठक में भी उन्होंने इंसेफेलाइटिस की चर्चा की। उन्होंने गांवों में शौचालय निर्माण के साथ ही स्वच्छता अभियान को मजबूती से चलाने का आह्वïान किया। मुख्यमंत्री का दावा है कि अप्रैल में सरकार इंसेफेलाइटिस से निपटने के लिए व्यापक टीकाकरण अभियान चलाएगी।

मौत के आंकड़े देने पर कॉलेज प्रशासन का बैन

गोरखपुर का मेडिकल कॉलेज पिछले अगस्त में तब सुर्खियों में आ गया था कि जब ऑक्सीजन की कमी से महज 72 घंटों में 63 बच्चों ने दम तोड़ दिया था। तब योगी सरकार ने आरोपी डॉक्टरों और प्रशासनिक जिम्मेदारों को जेल भेजकर हालात पर काबू करने का दावा किया था। अब यहां तैनाती पाने वाले डॉक्टर अवकाश नहीं मिलने पर नाराज चल रहे हैं। मौतों के आंकड़े तस्दीक कर रहे हैं कि वर्ष 2017 में बच्चों की मौतों ने पुराने सभी रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया है। मौतों का आंकड़ा कॉलेज की फाइलों से बाहर न निकले, इसके मुकम्मल इंतजाम किए गए हैं। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाओं में भी अड़ंगा लगाया जा रहा है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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