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राष्ट्रवाद के नाम पे कुछ कट्टरपंथी ताकते सांप्रदायिकता परोस रही है: शिवपाल

Deepak Raj
Published on: 8 Jan 2020 9:29 PM IST
राष्ट्रवाद के नाम पे कुछ कट्टरपंथी ताकते सांप्रदायिकता परोस रही है: शिवपाल
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लखनऊ। प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के तत्वावधान में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व समाजवादी चिन्तक मधु लिमये की पुण्यतिथि के अवसर पर “साम्प्रदायिकता के वर्तमान संदर्भ“ विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता प्रसपा प्रान्त अध्यक्ष सुंदर लाल लोधी एवं संचालन बौद्धिक सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष दीपक मिश्र ने की।

शिवपाल यादव ने लिमये के साथ बिताये गए पलों को रेखांकित किया

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए प्रसपा प्रमुख शिवपाल सिंह यादव ने लिमये के साथ बिताये गए पलों को रेखांकित करते हुए कहा कि गाँधी और लोहिया की भांति मधु लिमये प्रतिबद्ध, प्रगतिशील, समावेशी समाजवादी सोच के थे और साम्प्रदायिकता को राष्ट्र के लिये सबसे खतरनाक अवधारणा मानते थे। साम्प्रदायिकता और राष्ट्रवाद में बुनियादी अन्तर है।

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वर्तमान समय में कुछ कट्टरपंथी ताकतें राष्ट्रवाद के नाम पर संकुचित साम्प्रदायिकता परोस रही हैं। हमें न केवल ऐसी विभाजनकारी शक्तियों से न केवल सावधान रहना है अपितु जनता को भी सचेत करना है। यादव ने कहा कि गांधी-लोहिया-लिमये की विचारधारा पर आधारित नीतियों से ही देश का सतत् व समग्र विकास संभव है।

गांव और गरीब के हित सर्वोपरि

सरकारों को चाहिए कि ऐसी अर्थनीति बनायें जिसमें गांव और गरीब के हित सर्वोपरि हो। जब देश की आय बढ़ रही है तो बेरोजगारी व गरीबी घटनी चाहिए जबकि बेरोजगारी व गरीबी बढ़ रही है। इसका मतलब है कि आर्थिक नीतियों में आमूल-चूल परिवर्तन आवश्यकता है।

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पढ़ाई-लिखाई के महत्व को समझें कार्यकर्ता

शिवपाल सिंह ने नई पीढ़ी के राजनीतिक कार्यकर्ताओं से आग्रह किया कि वे पढ़ाई-लिखाई के महत्व को समझें और कम से कम एक-दो घंटे प्रतिदिन पढ़ाई-लिखाई को दें। यादव ने बताया कि उन्होंने मधु लिमये जी की कई सभाएं करवाई हैं और लिमये जी जितने बड़े राजनेता थे उतने ही महान विद्वान थे।

1977 में सत्ता की जगह लिमये ने साहित्य व सिद्धांत को चुना

उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखीं। लिमये ने गलत कानूनों का सतत् प्रतिकार करना सिखाया है। हिंसक विरोध स्वस्थ लोकतंत्र के लिये उचित नहीं है। दीपक मिश्र ने कहा कि लिमये लोहिया के समाजवादी सिद्धांतों के सबसे बड़े प्रतिपादक थे। उनसे त्याग एवं सादगी की प्रेरणा मिलती है। 1977 में सत्ता की जगह लिमये ने साहित्य व सिद्धांत को चुना।

वे भारतीय राजनीति की मनीषी परम्परा के अनमोल मोती थे। इस अवसर पर शिवपाल सिंह यादव ने दिल्ली निवासी प्रख्यात व्यवसायी देवराज रायचंद सिंह, रामपुर निवासी जफ़र खान, वामपंथी मनीष मिश्र एवं गौसुल आज़म शेख ने प्रसपा की सदस्यता ग्रहण की।

संगोष्ठी को पूर्व शिक्षा मंत्री शारदा प्रताप शुक्ला, पूर्व राज्यसभा सदस्य वीरपाल सिंह यादव, पूर्व विधान परिषद सदस्य राम नरेश यादव “मिनी“, चौधरी रिछपाल सिंह समेत कई वक्ताओं ने अपने विचार रखे।



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