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अमा जाने दो : अच्छा तो वो गाना ‘ओ पिया’ नहीं ‘ओपी आ’ था...
नवलकांत सिन्हा
लखनऊ: खुदा झूठ न बोलवाए। कभी मुझे लगता था कि कोई सोनाली बेंद्रे और गोविंदा की फिल्म ‘जिस देश में गंगा रहता है’ का गाना गुनगुना रहा है तो कभी लगता था कि कोई मनीषा कोइराला और जैकी श्रॉफ की ‘अग्निसाक्षी’ का गाना बड़बड़ा रहा है। अब ये सवाल कि कौन सा गाना तो जानिये कि गाना तो एक ही था- ‘ओ पिया, ओ पिया’... लेकिन मुझे टेंशन इस बात की कि अचानक क्यों नया साल शुरू होते ही पुरानी फिल्मों के ये दो गाने यूपी के लोगों की जुबान पर चढ़ गए। बाद में समझ आया कि दरअसल वो ‘ओ पिया ओ पिया’ नहीं गा रहे थे बल्कि ‘ओपी आ, ओपी आ’ चिल्ला रहे थे।
मसला यूं था कि उधर सुलखान सिंह रिटायर हुए और इधर ओपी सिंह को उत्तर प्रदेश का नया डीजीपी बनाए जाने की घोषणा हुई। लेकिन ये क्या एक दिन, दूसरा दिन, तीसरा, चौथा, पांचवा दिन बीता लेकिन वो न आये। आते भी तो कैसे, पहले दिल्ली से रिलीव तो हों। फिर अफवाहबाजों को तो जानते ही हैं, ये उड़ाया-वो उड़ाया। कह डाला कि पीएमओ नहीं चाहता है।
इधर 23 दिनों से पुलिस का ये हाल था कि वो खुद को विधवा समझने लगी थी। हां, कानून व्यवस्था जहां की तहां टिकी हुई थी। कहने वाले तो यहाँ तक कह गए कि यूपी में डीजीपी की जरूरत ही क्या है। वो तो भला हो लखनऊ के डकैतों और अपराधियों का कि पुलिस ‘ओम ओम’ का जाप करने लगी। विपक्ष भी सरकार से डीजीपी की नियुक्ति के मुद्दे पर प्रकाश डालने को कहने लगा।
इधर हम भी डिस्टर्ब थे, पता ही नहीं था कि उत्तर प्रदेश की सडक़ों पर हेलमेट कित्ता जरूरी है। किसी ने बताया भी नहीं कि जैसे फार्मूला वन कार रेस में ड्राइवर हेलमेट लगाते हैं, वैसे यूपी की सडक़ों पर कार चलाते समय हेलमेट लगाना चाहिए। क्योंकि कारोबार करते लोग, अरे मतलब है कि कार को बार बनाए हुए लोग आपको कहीं भी मिल सकते हैं। वो आपकी कार भी ठोंक सकते हैं और आपको भी। अब इस उदाहरण में हम ही फंसे गए, तो क्या करें। पिराती खोपड़ी के साथ बेसाख्ता निकला- ‘कब आओगे, जिस्म से जान जुदा होगी क्या तब आओगे, देर न हो जाए कहीं देर न हो जाए...’ लेकिन ज्वाइनिंग के बाद गा रहा हूँ- ‘मेरा ओपी घर आया ओ राम जी।’ और मना रहा हूँ कि भले यूपी में दारू की दुकानें 12 बजे के बाद खुले लेकिन कानून व्यवस्था सुबह से टाईट हो जाए।