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Sonbhadra News: काकभुशुण्डि की तपोस्थली है कौआ पहाड़, भगवान शिव ने आखिर क्यों दिया था श्राप
Sonbhadra News:दंडकारण्य के लिए जाने वाले पथ का भगवान श्रीराम से जुड़ाव का दावा किया जाता है। इसी में से एक है कौआ पहाड़। कौआ पहाड़ को भगवान राम के अनन्य भक्त काकभुशुण्डि की तपोस्थली माना जाता है।
Sonbhadra News: राम वनगमन पथ मानचित्र और रामस्तंभ स्थापना के लिए तैयार किए गए स्थल में भले ही सोनभद्र का जिक्र न किया गया हो। ...लेकिन भगवान श्रीराम और उनसे जुड़ी किवदंतियां और कथा से जुडे़ स्थल जनमानस के बीच भगवान राम की स्मृतियों को जीवंत बनाए हुए हैं। दंडकारण्य के लिए जाने वाले पथ से जुड़ी मानी जाने वाली जिले की पश्चिमी सीमा पर कई स्थलों का भगवान श्रीराम से किसी न किसी रूप में जुड़ाव का दावा किया जाता है। इसी में से एक है कौआ पहाड़।
घोरावल तहसील क्षेत्र के शिल्पी और देवगढ़ गांव की सीमा पर स्थित कौआ पहाड़ को भगवान राम के अनन्य भक्त और रामकथा के आदि गायक महर्षि काकभुशुण्डि की तपोस्थली होने की मान्यता है। इसको दृष्टिगत रखते हुए, श्रीरघुनाथ-मंदिर देवगढ़ तीर्थक्षेत्र न्यास की तरफ से जहां इस स्थल के नजदीक भव्य श्रीरघुनाथ मंदिर का निर्माण करवाते हुए श्रीराम-दरबार सहित महर्षि काकभुशुण्डि की दिव्य मूर्ति स्थापित की गई है। वहीं, अब इस स्थल को संजोने और यहां रामस्तंभ स्थापित करने की मांग उठाई जा रही है।
सोनभद्र से जुड़ी हैं श्रीराम के वनवास काल की स्मृतियां
श्रीरघुनाथ-मंदिर देवगढ़ तीर्थक्षेत्र न्यास के मुख्य न्यासी तथा श्रीराम की अयोध्या सहित कई धार्मिक-पौराणिक-ऐतिहासिक शोधपरक रचनाओं से अलग पहचान बना चुके डॉ. जितेंद्र कुमार सिंह संजय बताते हैं कि भगवान श्रीराम के वनवास-काल की स्मृतियां तो सोनभद्र से जुड़ी ही हैं। राज्यसभा सांसद रामशकल के गांव शिल्पी और उनके गांव देवगढ़ की सीमा पर स्थित कौआ पहाड़ रामकथा के आदि गायक महर्षि काकभुशुण्डि की तपस्थली के रूप में प्रसिद्ध है और इसके पास वाली जगह को भगवान राम के विश्रामस्थल की मान्यता प्राप्त है। इसलिए इस स्थल के संरक्षण और यहां रामस्तंभ स्थापित करने की आवश्यकता है।
भगवान शिव के श्राप के बाद नागयोनि में जन्म लेने की मान्यता
गोस्वामी तुलसीदास की श्रीरामचरितमानस में काकभुशुण्डि प्रसंग का वर्णन करती चौपाई ‘प्रेरित काल विन्ध्य गिरि, जाइ भयउं मैं ब्याल, पुनि प्रयास बिनु सो तनु, तजेउं गये कछु काल’ का जिक्र मिलता है। मानस मर्मज्ञों का मानना है कि यह चौपाई उज्जैन में भगवान शिव द्वारा दिए गए श्राप के बाद काकभुशुण्डि को विंध्य पर्वत क्षेत्र में नागरूप में जन्म लेने से जुड़ी हुई है। डा. जितेंद्र बताते हैं कि देवगढ़ के पूर्वी छोर पर विंध्य पर्वत (कैमूर पर्वत) का कौआ पहाड़ नामक गिरिश्रृंग है, जिसके शिखर पर एक विशाल वृक्ष है। इस क्षेत्र के आदिवासी कौआ पहाड़ के शिखर पर स्थित विशाल वृक्ष में कौआ बाबा का वास मानते हैं। वह यहां उनकी पूजा सात फन वाले नागदेव के रूप में करते हैं। पूजन की यह परंपरा वर्षों से विद्यमान है। इसके आधार पर दावा है कि कौआ पहाड़ के शिखर पर विद्यमान कौआ बाबा की मान्यता, वास्तव में काकभुशुण्डि की मान्यता है।
लोमश ऋषि से मिले शाप से भी जुड़ी है कहानी
मान्यता है कि सर्पयोनि के बाद काकभुशुण्डि ने कई जन्म लिए। आखिरी जन्म ब्राह्मण का हुआ। शिवकृपा से उनके भीतर श्रीराम की भक्ति उत्पन्न हो गई। अंतिम जन्म उन्हें ब्राह्मण रूप में मिला। ब्राह्मण रूप मिलने के बाद वह लोमश ऋषि के पास पहुंचे लेकिन बेकार के तर्क-वितर्क के चलते उन्होंने कौआ बनने का श्राप दे दिया। बाद में उन्हें इसका पश्चाताप हुआ तो उन्होंने उन्हें वापस बुलाकर राममंत्र और इच्छामृत्यु का वरदान दिया। राममंत्र मिलने के बाद उन्हें कौए के शरीर से ही प्रेम हो गया और वह आगे चलकर काकभुशुण्डि के नाम से विख्यात हुए। बता दें कि कौआ पहाड़ के दक्षिण स्थित सोन नदी के तट पर जुगैल अंचल में लोमश ऋषि की तपस्थली है। जुगैल में लोमश ऋषि को बरहा ऋषि के नाम से जाना जाता है। कविराज पं. रमाशंकर पांडेय विकल ने भी अपने शोणभद्रांचल काव्य में इसका विस्तार से जिक्र किया है।
कई रचनाओं-यात्रा प्रसंगों में मिलता है काकभुशुण्डि का जिक्र
कई रचनाओं-यात्रा प्रसंगों में कौआ पहाड़ के नजदीक से होकर गुजरने वाले मार्ग की पहचान काशी से दक्षिण कोशल जाने वाले मार्ग के रूप में की गई है। दावा किया जाता है कि काशी से जगन्नाथपुरी एवं रामेश्वरम् जाने के लिए प्राचीन काल में विश्वसनीय और सुविधाजनक मार्ग की पहचान रखने वाले इस मार्ग से गोस्वामी तुलसीदास (1511-1623 ई.) ने भी काशी से जगन्नाथपुरी तक की यात्रा की थी। आचार्य पं. उमाशंकर मिश्र रसेंदु (1948-2019 ई.) की रचना तुलसी विजय में जिक्र मिलता है कि काकभुशुण्डि की तपस्थली कैमूर पर्वत के उत्तुंग शिखर पर देवगढ़ में स्थित है। गोस्वामी तुलसीदास ने यात्रा के क्रम में काशी-कोसल के मुख्य पथ पर इस स्थल को होने के कारण यहां विश्राम किए थे और आदिवासियों द्वारा पूज्य कौआ बाबा की कथा से प्रेरित होकर ही उन्होंने मानस में काकभुशुण्डि के आख्यान का वर्णन किया था। अंग्रेज़-यात्री कैप्टन जेटी ब्लंट की चुनारगढ़ से येर्नागुदेम तक के यात्रा प्रसंग में षिल्पीघाट उतरकर सोनपार करते हुए कुड़ारी में विश्राम के साथ शिल्पी गांव की तरफ़ से कौआ पहाड़ पर चढ़ने का जिक्र मिलता है।
भगवान श्रीराम के विश्रामस्थल की भी मान्यता रखती है यह जगह
कैप्टन जेटी ब्लंट के 226 वर्ष पूर्व के यात्रा वृत्तांत में जिक्र आया है कि कौआ पहाड़ चढ़ते समय जहां हम लोग खड़े थे उस स्थान पर तीन बड़े-बड़े शिलाखंड दिखे, जिसके मध्य में दरार थी और भीतर पानी से भरी खोखली जगह थी। पूछने पर हमारे पथ-प्रदर्शक (कोल) ने बताया कि वन-यात्रा के दौरान राम, लक्ष्मण और सीता ने यहां एक रात विश्राम किया था तथा इसी जल से उन लोगों ने चरण पखारे थे।