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Sonbhadra: एमपी में 'बियार बिरादरी' को अजजा का दर्जा तो यूपी में क्यों नहीं, HC ने की सुनवाई, सरकार से मांगा जवाब
Sonbhadra News Today: अधिवक्ता अभिषेक चौबे के मुताबिक आजादी के तत्काल बाद कई छोटी रियासतों को मिलाकर यूनाइटेट स्टेट आफ विंध्य प्रदेश का गठन किया गया।
Sonbhadra News Today - Photo- Social Media
Sonbhadra News Today: राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 के पूर्व की अधिसूचना में अनुसूचित जनजाति का दर्जा रखने वाली बियार बिरादरी का एमपी में अब तक यह दर्जा बरकरार है तो यूपी में क्यों नहीं? इस मसले पर हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई शुरू हो गई है। अखिल भारतीय बियार समाज के राष्ट्रीय महासचिव दिनेश कुमार बियार की तरफ से दाखिल की गई याचिका पर केंद्र और राज्य सरकार से जवाब पक्ष मांगा गया है। गत सोमवार को न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति विकास की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की और अधिवक्ता अभिषेक चौबे की तरफ से दी गई दलीलों तथा याचिका में किए गए कथनों को दृष्टिगत रखते हुए, केंद्र व राज्य सरकार से चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा। अगली सुनवाई की तिथि 28 नवंबर मुकर्रर की गई है।
याचिका में इन मसलों को बनाया गया है आधार
अधिवक्ता अभिषेक चौबे के मुताबिक आजादी के तत्काल बाद कई छोटी रियासतों को मिलाकर यूनाइटेट स्टेट आफ विंध्य प्रदेश का गठन किया गया। उसके बाद विंध्य प्रदेश राज्य के लिए गत 20 सितंबर 1951 को जारी अधिसूचना में बियार बिरादरी को अनूसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित किया गया।
राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 के बाद ऐसे कई छोटे राज्यों का विलय कर नए राज्य गठित किए गए, जिसमें विंध्य प्रदेश का एक बड़ा हिस्सा मध्य प्रदेश में चला गया। वहां अब भी बियार समुदाय अनुसूचित जनजाति के रूप में सूचीबद्ध है लेकिन यूपी में 1988 तक इस बिरादरी को सामान्य के रूप में अधिसूचित रखा गया।
वहीं वर्ष 1989 में उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग का दर्जा दिया गया। अधिवक्ता अभिषेक चौबे का कहना था कि सिर्फ राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह ऐसे किसी अधिसूचना में संशोधन कर सकता है। उसे बढ़ा या घटा सकता है या फिर संसद में इसकी शक्ति निहित है। बताया कि छत्तीसगढ में यह बिरादरी अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में शामिल है लेकिन यूपी में अब तक, अजजा की सूची से बियार समुदाय को बाहर रखा गया है। बताया कि मामले में सोमवार को न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति विकास की बेंच ने मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने प्रकरण को गंभीरता से लिया और मामले पर विचार करने की बात कही है। आगे की सुनवाई के लिए, इस मसले पर केंद्र और राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर जवाब प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है।