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Holi 2022: UP का एक ऐसा हिस्सा जहां पांच दिन पहले ही मना ली गई होली, मानर की थाप पर झूमे लोग, उड़ाया अबीर-गुलाल
Sonbhadra: झारखंड और छत्तीसगढ़ की सीमा से सटे आदिवासी बहुल दुद्धी तहसील क्षेत्र के आदिवासी समुदाय से जुड़े कई गांवों में होली मनाई जाने की परंपरा वर्षों से जुड़ी हुई है।
Sonbhadra: भारत को वैसे ही विविधताओं का देश माना जाता है लेकिन अनेकता मं एकता के रंग के साथ विविध सांस्कृतिक आयामों को देखना हो तो कहीं दूर नहीं, यूपी के सोनभद्र चले आए। यहां के मौलिक जीवन में रचे-बसे आदिवासियों की जीवनशैली न केवल प्रकृति से गहरे जुड़ाव का एहसास कराएंगी बल्कि भारतीय संस्कृति से जुड़ी आदिवासियों की परंपराएं भी आपको एक अलग भारत का नजारा दिखाती नजर आएंगी।
इन्हीं परंपराओं-पर्वों में एक पर्व है होली। आधुनिक चकाचैंध चमक-दमक से दूर आदिवासी जहां स्वयं द्वारा प्राकृतिक तरीके से तैयार रंगों से होली खेलना पसंद करते हैं। वहीं यहां के आदिवासियों से जुड़े कुछ गांवों में मान्य तिथि से चार-पांच दिन पूर्व ही होली मनाए जाने की परंपरा है। इन्हीं गांवों में शामिल हैं दुद्धी तहसील में विढमगंज इलाके में स्थित बैरखड, दुद्धी इलाके में स्थित नगवां, मधुबन आदि गांव।
फाग गाते हुए किया होलिका दहन, खेली होली
पांच दिन पूर्व होली पर्व मनाए जाने की परंपरा में यहां के लोगों ने ढोल-नगाड़े की थाप पर फाग गाते हुए न केवल रविवार की रात होलिका दहन की परंपरा निभाई। बल्कि उत्साह के साथ सोमवार को पूरे दिन होली खेलकर, मान्य तिथि के पांच दिन पूर्व ही होली मनाए जाने का दृश्य दिखाकर लोगों को रोमांचित कर दिया। आदिवासी वर्ग द्वारा पांच दिन पूर्व खेली जाने वाली होली लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी रही। दूसरे गांव के लोगों ने यहां पहुचंकर इस अनोखी होली को नजदीक से देखने का लुत्फ उठाया।
बैगा की सलाह पर पांच दिन पहले मनाई जाती है होली
झारखंड और छत्तीसगढ़ की सीमा से सटे आदिवासी बहुल दुद्धी तहसील क्षेत्र के बैरखड़, नगवां, मधुबन सहित आदिवासी समुदाय से जुड़े कई गांवों में चार से पांच दिन पूर्व होली मनाई जाने की परंपरा वर्षों से जुड़ी हुई है।
यहां के लोग बताते हैं कि मान्य तिथि पर होलिका दहन के बाद होली मनाते समय यह मान्यता मानी जाती है कि होलिका की मृत्यु हो चुकी है लेकिन पहले होली मनाए जाने के पीछे जिंदा होली मनाए जाने की परंपरा का तर्क दिया जाता है।
बैरखड़ निवासी उदय पाल, अमर सिंह, छोटेलाल सिंह सहित गांव के कई लोग बताते हैं कि कई वर्ष पूर्व गांव में महामारी का प्रकोप गहरा गया था। तब लोग गांव के बैगा (आदिवासी समुदाय में गांव के ईष्टदेव की पूजा करने वाला पुजारी) के पास पहुंचे तो उसने चार-पांच दिन पूर्व होली मनाने की सलाह दी।
ग्रामीणों की मान्यता है जबसे पहले होली मनाई जाने लगी, तब से महामारी का प्रकोप बंद हो गया। ग्रामीण बताते हैं कि इसके लिए प्रतिवर्ष होली मनाए जाने से पूर्व गांव के लोग बैगा से संपर्क करते हैं और उसका संकेत मिलते ही होली मनाए जाने की तैयारी शुरू हो जाती है और चार से पांच दिन पूर्व होलिकादहन और होली खेलने का पर्व मना लिया जाता है।
समूह में एकत्रित होकर उड़ाते हैं गुलाल, मानर की थाप पर करते हैं नृत्य
दुद्धी इलाके के बैरखड़, नगवां, मधुबर आदि गांव आदिवासी जनजाति बाहुल्य गांव है। यहां के निवासी हर पर्व अपनी परम्परा और रीति-रिवाज के मुताबिक ही मनाते हैं। होली खेलने के दिन एक दूसरे पर रंगों की बौछार करने के बाद गांव-बस्ती में एक ही जगह आदिवासी एक़ित्रत होते हैं, एक बाद अबीर-गुलाल उड़ाते हुए मानर नामक वाद्ययंत्र की थाप पर जमकर नृत्य करते हैं। इस नृत्य में महिलाओं का भी समूह शामिल होता हैै।
पूरे दिन होली के उमंग में डूब रहने वाली आदिवासी इस दिन इस दिन महुए से बनी कच्ची शराब का भी खासा सेवन करते हैं। होली मनाए जाने के एक दिन पूर्व बैगा की उपस्थित में ईष्टदेव की पूजा कर होलिका दहन की पंरपरा निभाई जाती है। होलिकादहन की अगली सुबह होलिका की राख को उड़ाने के साथ ही होली खेलने की शुरूआत कर दी जाती है।
इस दिन प्रत्येक आदिवासी के घर में ईष्टदेव की पूजा कर उन्हें तरह-तरह के पकवानों-खाद्य पदार्थों का भोग भी लगाया जाता है। उधर, मान्य तिथि के पहले ही होली मनाए जाने को पुलिस भी अलर्ट रही। थाना प्रभारी सूर्यभान की अगुवाई वाली पुलिस टीम गांव में मौजूद रहकर, वहां की स्थिति पर नजर बनाए रही।