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Sonbhadra News: जिंदा रहते मृत घोषित बुजुर्ग के दाह-संस्कार के लिए जुटाना पड़ा चंदा, पास-पड़ोस के बचे खाने से मिट रही थी भूख

Sonbhadra News: सबसे बड़ा सवाल है कि जिंदा रहते मृत दिखाकर सरकारी लाभ से वंचित तो किया ही गया, लगाई गई गुहार सरकारी प्रक्रिया की जाल में ऐसी उलझी कि सरकारी मदद की आस के साथ ही, बुजुर्ग की सांस भी टूट गई।

Kaushlendra Pandey
Published on: 15 Nov 2024 8:04 PM IST
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Sonbhadra News: सिस्टम के जाल में फंसकर दम तोडने वाले बुजुर्ग के दाह-संस्कार के लिए जहां परिवार वालों को चंदा जुटाना पड़ा है। वहीं, इस घटना का सबसे स्याह पहलू, सवर्ण वर्ग से आने वाले इस परिवार को, पास-पड़ोस के बचे हुए खाने को मांगकर भूख मिटाने के रूप में सामने आया है। सबसे बड़ा सवाल है कि जिंदा रहते मृत दिखाकर सरकारी लाभ से वंचित तो किया ही गया, लगाई गई गुहार सरकारी प्रक्रिया की जाल में ऐसी उलझी कि सरकारी मदद की आस के साथ ही, बुजुर्ग की सांस भी टूट गई। अब परिवार को दाह-संस्कार के लिए चंदे का सहारा लेना पड़ा है। बावजूद जिस तरह से, बुजुर्ग के मौत के तीन दिन बाद, आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवार के लिए कोई मदद सामने नहीं आई है, उसने सिर्फ सिस्टम पर ही नहीं, कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन पर भी सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं। दलित-पिछड़ा वर्ग से जुड़े मामलों में चीख-चीख कर सियासत की रोटी सेंकने वाले भी, सवर्ण परिवार की तंगहाली पर चुप्पी साधे हुए हैं।

किसी तरह परिवार का हो रहा गुजर-बसर

कांता पांडेय की सांसें थमने के साथ ही, जहां उन्हें मुफलिसी की जिंदगी से मुक्ति मिल गई। वहीं, उनकी पत्नी, विकलांग बेटे और पोतों के सामने आर्थिक तंगी और महंगाई के इस दौर में भरण-पोषण चुनौती बन कर खडी है। खंडहर की शक्ल में तब्दील होती मिट्टी की दिवाल, घर पर घास-फूस कुछ हिस्सों में सीमेंट शेड के छाजन, घर के एक हिस्से में जैसे-तैसे खड़ी ईंट की दिवाल पर समय की मार, दरवाजों-खिड़कियों की खराब हालत, सवर्ण वर्ग से आने वाले इस परिवार की तंगहाली-गरीबी को बयां करते नजर आ रहे हैं।

चार साल से राशन भी नहीं मिल रहा, किससे लगाएं गुहार

पत्नी रेशम देवी कहती हैं कि वर्ष 2020 में कोराना काल के समय संबंधित कोटेदार ने राशन कार्ड जमा कराया। उसके बाद से राशन मिलना बंद हो गया। इसको लेकर लगाई गई गुहार का भी कोई नतीजा नहीं निकल पाया। दो दिन पूर्व पति की सांसें भी थम गई। दाह-संस्कार के साथ परिवार के गुजर-बसर की चिंता बनी हुई है। किसी तरह पास-पड़ोस के लोगों से खाना-भोजन सामग्री मांगकर भूख मिटाई जा रही है।

किसी तरह खिंच रही गृहस्थी की गाड़ी: गोपाल

मृतक कांता के इकलौते पुत्र गोपाल की भी हालत काफी तंगी भरी है। विकलांग होने के साथ ही, सीमावर्ती राज्य मध्यप्रदेश के सिंगरौली में मजदूरी के जरिए मिलने वाली रकम ही इस परिवार की आजीविका का सहारा है। गोपाल का कहना है कि मुश्किल से उसे माह में आठ से 10 हजार मिलते हैं। उसमें वह हजार दो हजार पिता के लिए उपलब्ध कराता था लेकिन वह पर्याप्त नहीं थे। कहा कि कोराना काल से पहले सरकारी दुकान से अनाज मिलने से भोजन की समस्या काफी हद तक हल हो जाती थी लेकिन कोराना काल के समय से राशन बंद हो जाने के बाद, भोजन की व्यवस्था करना भी बड़ी चुनौती बनी हुई है।

परिवार की मदद, जिम्मेदारों पर कार्रवाई के लिए किसका हो रहा इंतजार: पूर्वांचल नव निर्माण मंच के नेता गिरीश पांडेय ने, पीड़ित परिवार की मदद के लिए अब तक कोई पहल न होने और सिस्टम के जाल में उलझाकर बुजुर्ग को तिल-तिल कर मरने के लिए विवश करने वालों पर कार्रवाई के लिए किस बात का इंतजार हो रहा? इसको लेकर तीखे सवाल उठाए हैं।

ट्वीट के जरिए जिंदा को मृत दिखाने वाले अधिकारी/कर्मचारी पर तंज कसते हुए कहा है कि अगर ऐसे लोगों पर कार्रवाई नहीं हो सकती तो उन्हें पदोन्नति ही दे दी जाए। कहा कि किसी व्यक्ति के जिंदा रहते हुए, उससे जिंदा रहने का अधिकार छिन लेना और अब तक उस पर कोई कार्रवाई न होना सिर्फ सिस्टम पर सवाल ही नहीं, चिंता का भी विषय है।

कांग्रेस ने साधा निशाना, कहा: कागज पर ही बेहतरी के हो रहे दावे

उधर, महिला कांग्रेस की उपाध्यक्ष ऊषा चौबे ने, प्रकरण को लेकर स्थानीय प्रशासन पर ही, नहीं प्रदेश सरकार पर भी निशाना साधा है। जिंदा व्यक्ति को मृत दिखाकर सरकारी योजना से वंचित किए जाने के मामले को लेकर, संचालित योजनाओं के सही क्रियान्वयन पर सवाल उठाते हुए कहा कि कागजों पर योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन दिखाया जा रहा है, हकीकत इसके विपरीत है।



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Shalini Rai

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