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Sonbhadra News: तथ्यों को छिपाकर दाखिल की गई थी पीआईएल, हाईकोर्ट ने पारित निर्णय लिया वापस, आवासीय प्रयोजनों के लिए आवंटित भूमि से जुडा मामला

Sonbhadra News: पीआईएलकर्ता की तरफ से तथ्यों को छिपाए जाने की स्थिति तथा दाखिल किए गए रिब्यू के जवाब में उपस्थित न दर्ज कराने की स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए, संबंधित बेंच ने, पूर्व में पारित निर्णय को वापस ले लिया है।

Kaushlendra Pandey
Published on: 22 Nov 2024 9:06 PM IST
High Court withdraws passed decision in case of land allotted for residential purposes
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आवासीय प्रयोजनों के लिए आवंटित भूमि मामले में हाईकोर्ट ने पारित निर्णय लिया वापस: Photo- Newstrack

Sonbhadra News: ओबरा क्षेत्र में आवासीय प्रयोजनों के लिए आवंटित भूमि पर निर्मित एक होटल को अतिक्रमण बताते हुए दाखिल की गई याचिका और उस पर पारित किए गए निर्णय के क्रम में, हाईकोर्ट की ओर से बड़ा फैसला आया है। पीआईएलकर्ता की तरफ से तथ्यों को छिपाए जाने की स्थिति तथा दाखिल किए गए रिब्यू के जवाब में उपस्थित न दर्ज कराने की स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए, संबंधित बेंच ने, पूर्व में पारित निर्णय को वापस ले लिया है।

बताते हैं कि ओबरा के ही रहने वाले एक व्यक्ति की तरफ से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। संबंधित भूभाग को सार्वजनिक प्रयोजन की भूमि और उस पर हुए होटल निर्माण को अतिक्रमण बताते हुए, उसे खाली कराए जाने का आदेश दिए जाने की याचना की थी। इस पर 23 फरवरी 2021 को हाईकोर्ट की बेंच की तरफ से, अतिक्रमण हटाने का आदेश पारित किया गया। इस निर्णय से प्रभावित होटल संचालक को जब इस बात की जानकारी हुई तो अधिवक्ता अनिल कुमार मिश्रा के जरिए पुनर्विचार याचिका दाखिल करते हुए हाईकोर्ट से पारित आदेश को वापस लेने का अनुरोध किया गया।


इन तथ्यों को बनाया गया था आवेदन का आधार

अधिवक्ता अनिल कुमार मिश्रा के मुताबिक केशर सिंह नामक व्यक्ति ने स्वयं को सामाजिक कार्यकर्ता बताते हुए हाईकोर्ट के समक्ष जनहित याचिका दायर की थी। जबकि याचिकाकर्ता की तरफ से संबंधित आराजीयात के एक हिस्से पर स्वयं के कब्जे का दावा करते हुए, 23 अक्टूबर 2017 को सहायक अभिलेख अधिकारी के समक्ष आवेदन दाखिल किया गया था और उसमें याचना की गई थी कि 25 जनवरी 1995 के आदेश के क्रम में, उसके कथित कब्जे वाले भूभाग पर दूसरे के दर्ज नामों को निरस्त कर, उसका नाम आबादी के रूप में दर्ज किया जाए।

वर्ष 1995 में संबंधित भूभाग को घोषित कर दिया गया था आबादी

पीआईएल में जिस जमीन को ग्राम समाज और सार्वजनिक उपयोग की भूमि बताया गया था। वह जमीन सहायक अभिलेख अधिकारी की ओर से 25 जनवरी 1995 को ही आबादी घोषित कर दिया गया था। एक तरफ उसी आदेश के क्रम में, स्वयं के कब्जे वाली भूमि पर, नाम से आबादी दर्ज किए जाने के लिए आवेदन करने और दूसरी तरफ तथ्यों को छिपाकर हाईकोर्ट में पीआईएल दाखिल करने का तथ्य सामने आया। पुनर्विचार याचिका पर याचिककर्ता की ओर से जवाब न दिया जाना भी, इस फैसले का महत्वपूर्ण कारण बना।

याचिकाकर्ता के पास नहीं था पीआईएल का अधिकार: एके मिश्र

न्यायमूर्ति अजीत कुमार की बेंच ने प्रकरण की सुनवाई की। पुनर्विचार दाखिल करने वाले पक्ष के अधिवक्ता अनिल कुमार मिश्रा ने उपरोक्त तथ्यों को बेंच के सामने रखते हुए तर्क दिया कि सहायक अभिलेख अधिकारी के समक्ष पहले से ही एक मामला चल रहा है। इसलिए आवेदक/याचिकाकर्ता को न्यायालय के समक्ष पीआईएल दाखिल करने का कोई अधिकार नहीं थी।

बेंच ने स्वीकार किए तथ्य, पारित निर्णय लिया वापस

बेंच ने पारित निर्णय में कहा है कि विद्वान अधिवक्ता की तरफ से प्रस्तुत किए गए तर्कों में तथ्यात्मकता नजर आती है। इसलिए बेंच की ओर से पारित 23 फरवरी 2021 के आदेश को वापस लिया जाता है।



Shashi kant gautam

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