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Sonbhadra : गालिब की याद: गीतों का इक-इक पेज.. दर्द का दस्तावेज़ है.., 22वें मुशायरा-कवि सम्मेलन में कवियों-शायरों ने लूटी वाहवाही

Sonbhadra News: अजीम शायर मिर्ज़ा ग़ालिब की 227वीं जयंती के उपलक्ष्य में जिला मुख्यालय पर 22वें मुशायरा एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया।

Kaushlendra Pandey
Published on: 29 Dec 2024 6:46 PM IST
Sonbhadra News  ( Pic- Newstrack)
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Sonbhadra News  ( Pic- Newstrack)  

Sonbhadra News : मित्र मंच फाउंडेशन की तरफ से अजीम शायर मिर्ज़ा ग़ालिब की 227वीं जयंती के उपलक्ष्य में जिला मुख्यालय पर 22वें मुशायरा एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। एक होटल के सभागार में आयोजित कार्यक्रम में जहां नामचीन शायरों, कवियों और कवयित्री ने एक से बढ़कर एक प्रस्तुति दी। वहीं, श्रोताओं को भी सर्द रात में कहकहों और कशिश की तपिश आधी रात के बाद तक, रचनाओं की गर्मी से सरोबार किए रही।

अध्यक्षता कर रहे साहित्यकार डॉ. लवकुश प्रजापति, मित्रमंच के संरक्षक दया सिंह, उमेश जालान ने ग़ालिब की तस्वीर पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। मित्रमंच के अध्यक्ष विकास वर्मा ‘बाबा‘, कोषाध्यक्ष राम प्रसाद यादव, संरक्षक दया सिंह, सदस्य विनोद कुमार चौबे, फरीद अहमद, इकराम खां आदि ने शायरों-कवियों का माल्यार्पण कर स्मृति चिह्न भेंट किया।

..ढूंढ रहा मैं तेरी आंखों में मीरा का सपना..

मनोज मधुर ने सरस्वती वंदना से कविताओं-रचनाओं के प्रस्तुति की शुरूआत की। अफ़ज़ल इलाहाबादी ने ग़ा़िलब की एक ग़ज़ल पढ़कर सिलसिले को आगे बढ़ाया। लवकुश प्रजापति ने ‘रीत गये सब प्रेम रीत, रसहीन हुई है रसना। फिर भी ढूंढ रहा मैं तेरी आंखों में मीरा का सपना..‘ से जहां वाहवाही लूटी। वहीं, विकास वर्मा ने ‘कौन किस हद तलक क्या सोचेगा, इसका तो कोई दायरा ही नहीं.़.‘ से महफिल को ऊंचाई दी।

.. करो जो बात तो हर चीज़ बात करती है..:

संचालन कर रहे हसन सोनभद्री ने ‘सबने पूछा बोलो कुछ लाए कि नहीं। बस माँ ने पूछा था कुछ खाए कि नहीं..‘ के जरिए मातृप्रेम का बोध कराया। पंडित प्रेम बरेलवी ने ‘जनाब ज़िंदे क्या मुर्दे भी बोल उठते हैं, ‘ से जिंदादिली बयां की। अफ़ज़ल इलाहाबादी ने ‘मेरी तामीर मुकम्मल नहीं होने पाती, कोई बुनियाद हिलाता है चला जाता है..‘ से तालियां बटोरी। सुहेल आतिर ने ‘कुछ वार ही तलवार के बेकार गये हैं। ये किसने कहा तुझसे के हम हार गये हैं..‘ मनोज मधुर ने ‘प्यार की रस्म निभाना हमें आता ही नहीं। रूठना और मनाना हमें आता ही नहीं..‘ के जरिए श्रोताओं को काव्यरस में डुबोकर रख दिया।

- ..दिल में किसी का प्यार बसाकर तो देखिए..:

कमल नयन त्रिपाठी ने ‘मुझको क़ातिल कहा गया इसी सुबूत पर। आधा लहू बदन में था बाक़ी ख़ुतूत पर..‘, डॉ. मनमोहन मिश्र ने ‘जो मेरे गीतों का इक-इक पेज है। दर्द का मेरे वो दस्तावेज़ है..‘, प्रतिभा यादव ने ‘पलकों पे कोई ख्वाब सज़ाकर तो देखिए। दिल में किसी का प्यार बसाकर तो देखिए..‘ आदि की प्रस्तुति के जरिए ऐसी समां बांधी कि रात के ढाई कब बज गए, पता ही नहीं चला।

- इनकी रही प्रमुख मौजूदगी:

इस दौरान मित्रमंच के संरक्षक राधेश्याम बंका, संदीप चौरसिया, अमित वर्मा, श्याम राय, नंदलाल केशरी, डॉ. गोविंद यादव, धर्मराज जैन, नंदकिशोर विश्वकर्मा, राजेश सोनी, आशीष अग्र

Shalini Rai

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