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New Education Policy: शिक्षा, शिक्षार्थी और शिक्षक में सकारात्मक परिवर्तन लाने का माध्यम है नई शिक्षा नीति: डा. दिनेश शर्मा
New Education Policy: मोदी सरकार ने 2020 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने का काम किया जिसमें पुरानी नीति की कमियों को दूर करने के साथ ही भविष्य का रोड मैप भी दिया गया।
उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा: Photo- Newstrack
Lucknow News: राजधानी लखनऊ में भारतीय शिक्षा शोध संस्थान के तत्वाधान में राष्ट्रीय शिक्षा नीति एवं उच्च शिक्षा विषय पर आयोजित संगोष्ठी में राज्यसभा सांसद एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा ने कहा कि "नई शिक्षा नीति असल में शिक्षा, शिक्षार्थी और शिक्षक में सकारात्मक परिवर्तन लाने का माध्यम है। यह नीति में लोगों में मानवता के आचरण का भाव पैदा करती है। इसके जरिए अध्ययन के साथ ही रोजगार का द्वार खुलता है। ये केवल पाठ्यक्रम में परिवर्तन का माध्यम नहीं है।"
पहली बार देश में भारतीयता पर आधारित शिक्षा नीति हुई लागू
डॉ शर्मा ने कहा कि पहली शिक्षा नीति 1986 में बनी थी तथा 1992 में उसमें संशोधन किया गया। इसके बाद लम्बे समय तक इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। मोदी सरकार ने 2020 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने का काम किया जिसमें पुरानी नीति की कमियों को दूर करने के साथ ही भविष्य का रोड मैप भी दिया गया।
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सतत अध्ययन होना चाहिए शिक्षक का अस्त्र
पहली बार देश में भारतीयता पर आधारित शिक्षा नीति को लागू किया गया। शिक्षक में योग्यता का समावेश पहली आवश्यकता है तथा नई नीति में शिक्षकों के विकास की पुख्ता व्यवस्था की गई है। आज का विद्यार्थी शिक्षक का सम्पूर्ण आंकलन करता है। एक शिक्षक को जीवन भर विद्यार्थी की तरह आचरण करना चाहिए तथा सत् त अध्ययन उसका अस्त्र होना चाहिए।
पूर्व उपमुख्यमंत्री ने कहा कि "कोरोना काल में सबसे पहले आनलाइन शिक्षा की व्यवस्था उत्तर प्रदेश में की गई थी। इसके कारण सत्र भी लेट नहीं हुआ तथा परीक्षा परिणाम भी समय से ही आए थे। ऐसा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कारण ही संभव हुआ था। समय के साथ विचारों में भी बदलाव आया है। कोरोना काल में लोगों की भगवान के प्रति आस्था में वृद्धि हुई । आज नए साल के अवसर पर जहां आधी रात को भी भगवान के मंदिर के बाहर लाइन लगती है वहीं होटलों में सन्नाटा पसरा रहता है।
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सांसद ने कहा कि कोरोना के समय का बेहतर प्रयोग कैसे किया जाए इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण यूपी सरकार की डिजिटल लाइब्रेरी है। इसमें 78000 लेक्चर अपलोड किए गए थे जिनका अध्ययन कोई भी विद्यार्थी कर सकता है। इससे जुडने के लिए आईआईटी खडगपुर ने प्रदेश के साथ एक एमओयू भी किया था। इसको बनाने में भी किसी प्रकार का धन नहीं लगा था।
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इसी प्रकार तत्कालीन योगी सरकार के समय में बिना धन खर्च किए नकल विहीन परीक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे आदि लगाने की सभी व्यवस्थाएं की गई थीं। परीक्षा केन्द्रों पर व्यवस्थाएं कालेजों द्वारा सुनिश्चित की गईं। कापियों की कोडिंग की गई। स्वकेन्द्र प्रणाली को समाप्त किया गया तथा नई शिक्षा नीति के नकल विहीन परीक्षा के लक्ष्य को हासिल कर लिया गया। सबसे बडी उपलब्धि यह रही कि नकल रोकने की प्रक्रिया में किसी भी विद्यार्थी अथवा शिक्षक को गिरफ्तार नहीं करना पडा।
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नई शिक्षा नीति भारतीयता की ओर वापसी की अहम राह
डॉ शर्मा ने बताया कि मैकाले ने एक पत्र लिखा था जिसमें कहा गया कि भारतीयों पर लम्बे समय तक राज करने के लिए इसके विचारों को बदलना होगा। इनकी आत्मनिर्भरता की रीढ को तोड़ने के साथ ही छोटे उद्योगों के स्थान पर बडे उद्योग लगाकर इनकी निर्भरता को बढाना होगा। भारत के गुरुकु,पाण्डुलिपियां तथा संस्कृत भाषा भारतीयों की एकता और समन्वय का केन्द्र हैं जिन्हे नष्ट किया जाना चाहिए। मुगल शासक भी जब बाहर से आए तो उन्होंने जनेऊ जलाने पाण्डुलिपि जलाने जैसे कार्य किए थे। वे अपने उद्देश्य में सफल नहीं हुए क्योंकि जिन पाण्डुलिपियों को उन्होंने जलाया उसे उनका संरक्षण करने वालों ने याद करने के बाद फिर से लिख दिया। भारत के लोगों पर राज करने के लिए अंग्रेजो ने उन्हें जातियों में बांटने का भी कुचक्र किया।
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अंग्रेजी तंत्र पर भारतीयों की निर्भरता को बढ़ाने के बाद अंग्रेजों ने लोगों के लिए नि:शुल्क कान्वेन्ट एजुकेशन सिस्टम लागू किया । इसमें पढ़ने के बाद नौकरी सुनिश्चित थी। इस व्यवस्था ने भारतीय शिक्षा पद्धति को नुकसान पहुचाया तथा लोगों की सोंच भी परिवर्तित हुई। भारतीयता कही खोने सी लग गई थी।
नई नीति खोलती है अध्ययन के साथ ही रोजगार के द्वार
नई शिक्षा नीति भारतीयता की ओर वापसी की महत्वपूर्ण राह है। शिक्षा के प्रसार के संकल्प को लिए इस नीति में देश के अनुरूप प्राविधान किए गए हैं। इस नीति में देश के युवाओं के लिए ज्ञान से रोजगार की कल्पना को साकार रूप देने की व्यवस्था है।
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इस अवसर पर उपस्थित रहे
इस अवसर पर राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री, विद्या भारती यतीद्र, अध्यक्ष, भारतीय शिक्षा शोध संस्थान, डॉ कृष्णामोहन त्रिपाठी, उपाध्यक्ष, शोध संस्थान प्रोफेसर एसके द्विवेदी, निदेशक, शोध संस्थान प्रोफेसर सुबोध कुमार, सचिव, प्रोफेसर सुनील कुमार पांडे, सदस्य, उच्च शिक्षा आयोग श्रीमती कीर्ति गौतम, पूर्व कुलपति चंद्रशेखर विश्वविद्यालय डॉ कल्पलता पांडे, शिवभूषण, प्रबंधक, सरस्वती शिशु मंदिर, सत्यानंद पांडे आदि उपस्थित रहे।