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'ऑपरेशन चक्रव्यूह' ने यूपी को दिलाई थी नक्सलवाद से मुक्ति, मुन्ना-लाल व्रत और अजीत की गिरफ्तारी ने ठोकी थी आखिरी कील
Operation Chakravyuh : कामयाबी इतनी बड़ी थी कि मई 2012 में जब मुन्ना-अजीत और लालव्रत के गिरफ्तारी की सूचना तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव को मिली तो उन्होंने सदन की कार्यवाही बीच में रोककर सदस्यों को जानकारी दी।
Sonbhadra Newstrack Special: सोनभद्र में तैनात रहे एसपी सुभाषचंद्र दूबे (वर्तमान में IG/TRAFFIC & ROAD SAFETY) की अगुवाई में वर्ष 2012 में नक्सल मूवमेंट के खात्मे के लिए 'ऑपरेशन चक्रव्यूह' चलाया गया था। सोनभद्र के साथ सीमा से सटे बिहार के रोहतास और कैमूर में एक के बाद एक होती नक्सली वारदातें, सैकड़ों गांवों के बाशिंदों के लिए मुसीबत बनी हुई थीं। दिन ढलने के बाद, सोनभद्र की 40 किमी से अधिक एरिया में चलना मौत को दावत देना माना जाता था।
रात में दरवाजे पर दस्तक माना जाता था मौत का बुलावा
सोनभद्र से सटे बिहार के रोहतास और कैमूर के एक बड़े क्षेत्र के साथ ही सोनभद्र के चतरा, नगवां और कोन ब्लॉक में हालात इस कदर खराब हो गए थे कि, रात में दरवाजे पर पड़ती दस्तक और नक्सलियों के जत्थे की तरफ से मिलते बुलावे को समझा जाता था। बुलाए जाने वाले व्यक्ति के दिन मृत्युलोक में पूरे हो गए हैं और होता भी यही था। गांव के बाहर अगली सुबह उस व्यक्ति के सिर और धड़ अलग पड़े मिलते थे। इसे नक्सलियों की भाषा में 'छह इंच छोटा करना' कहा जाता था।
ऑपरेशन चक्रव्यूह का कमाल, जहां था पलायन वहां लग रहे उद्योग
ऐसे समय में न केवल ऑपरेशन चक्रव्यूह ने यूपी को नक्सलवाद से मुक्ति दिलाने में कामयाबी पाई। बल्कि, इसके जरिए मई 2012 में दुर्दांत नक्सली मुन्ना विश्वकर्मा, लालव्रत और अजीत की हुई गिरफ्तारी ने नक्सलवाद की आग में झुलस रहे यूपी को ऐसी राहत दी कि जिन इलाकों में रहने वालों लोगों में पलायन की होड़ सी मच गई थी, उन इलाकों को अब उद्योग प्रधान इलाका बनाने की कवायद शुरू हो गई । नगवां ब्लाक में हाइड्रो पावर जैसे बड़े प्रोजेक्ट की स्थापना का काम भी शुरू है।
16 सालों तक नक्सलवाद की आग में झुलसता रहा यूपी
यूपी में सबसे पहले नक्सलवाद की इंट्री वर्ष 1996 में हुई थी। सोनभद्र के करकी में नक्सलियों की मौजूदगी की सूचना पर दबिश देने पहुंचे नौगढ़ में तैनात रहे दरोगा ओपी सिंह, की गोली मारकर हत्या कर दी गई। तत्कालीन समय में इसे बदमाशों में काम समझा गया लेकिन वर्ष 1997 में नगवां ब्लाक के कई गांवों में तेंदू पत्तों के फड़ों को आग के हवाले करने, पनौरा गांव के शौकत और उनसे भतीजे गुलजार अली की बंदूक लूटने, वर्ष 1998 में सुकृत पुलिस क्षेत्र के नागनार हरैया में बिहारीलाल की हत्या, सोनभद्र से सटे चंदौली के मझगवां में 18 मई 1999 को कांग्रेस के कद्दावर नेता हेमनाथ चौबे का कत्ल कर नक्सलियों ने अपनी मौजूदगी का खुला ऐलान किया तब जाकर सरकार ने भी माना कि यूपी में भी नक्सलवाद की आग धधकने लगी है।
गरीबों के सपने को बनाया हथियार, वारदात दर वारदात
नक्सलियों ने गरीबों को सुनहरे सपने को अपना हथियार बनाया और उनके जरिए सोनभद्र, चंदौली और मिर्जापुर के कई हिस्सों में पैठ बना ली। लगातार वारदातों का सिलसिला जारी रखा। वर्ष 2000 और 2001 में पुलिस से सीधी मुठभेड़ की तो खोराडीह में पीएसी कैंप पर हमला कर हथियार लूटने की घटना के साथ ही, 2002 में सोमा में पुलिस-पीएसी टीम पर फायरिंग और 26 फरवरी 2003 को विजयगढ़ स्टेट के युवराज शरदचंद्र पद्मशरण शाह और उनके दो कर्मियों को गोलियों से भूनने की घटना ने दिल्ली तक हड़कंप मचा दिया। वर्ष 2003 में ही चकरिया में पूर्व प्रमुख के घर आगजनी-ब्लास्टिंग का तांडव किया गया। वर्ष 2006 में बिहार सीमा से सटे महुली में बाकायदा नक्सली ट्रेनिंग सेंटर ही खोल दिया गया।
CRPF कैंप, बावजूद जारी रही नक्सलियों की वारदात
लगातार नक्सली वारदातों को देखते हुए सोनभद्र और चंदौली के सीमा क्षेत्र में कई जगह सीआरपीएफ कैंप और स्पेशल एक्शन के लिए अलग से टुकड़ियां तैनात की गईं। इससे बड़ी घटनाओं पर अंकुश लगा। कामेश्वर बैठा के समर्पण के बाद, नक्सली ट्रेनिंग सेंटर भी बंद हो गया लेकिन मुन्ना विश्वकर्मा, लालव्रत और अजीत की तिकड़ी में चल रहा मूवमेंट बीच-बीच में एक के बाद एक वारदातों को अंजाम देने में लगा रहा। वर्ष 2009 में कोन थाना क्षेत्र के चननी में जल अदालत लगाकर एक व्यक्ति का सिर कलम करते हुए सीआरपीएफ को भी खुली चुनौती दी गई।
इस दिन हुई थी यूपी में सबसे बड़ी नक्सली वारदात
नक्सलियों ने यूपी में सबसे बड़ी वारदात 18 नवंबर, 2004 को चंदौली में सोनभद्र से सटे नौगढ़ तहसील क्षेत्र के हिनउत में की थी। उस दिन नक्सलियों ने मझगांई वन चौकी पर हमला कर दो वनकर्मियों और एक दरोगा की हत्या कर दी थी। मौके पर पीएसी के जवानों को भेजा गया तो नक्सलियों ने रास्ते में पड़ने वाले हिनउत में लैंडमाइंस बिछाकर पीएसी वाहन को ही उड़ा दिया था। विस्फोट के बाद जवानों पर गोली भी बरसाई गई। इस हमले में 15 जवानों की मौत हो गई थी। प्रकरण में कुल 40 नक्सलियों को चिन्हित किया गया था जिसमें मुन्ना और लालव्रत का भी नाम शामिल था लेकिन सुनवाई के समय साक्ष्य के अभाव में सभी आरोपी बरी हो गए थे।
यूपी ही नहीं, बिहार के गांवों में भी दिख रहा सुकून
वर्ष 2012 मंें मुन्ना, लालव्रत और अजीत के पकड़े जाने के बाद सिर्फ को ही राहत नहीं मिली बल्कि सोनभद्र से सटे बिहार और झारखंड के भी सीमावर्ती हिस्सों में सुकून की बयार बहने लगी है जिन हिस्सों में दिन में जाना जोखिम भरा माना जाता था वहां अब रात हो दिन गाड़ियां दौड़ाई जाने लगी हैं।
विधानसभा कार्यवाही रोककर दी थी सूचना
यह कामयाबी इतनी बड़ी थी कि जब मई 2012 में पहले मुन्ना-अजीत और उसके चंद दिन बाद लालव्रत के गिरफ्तारी की सूचना तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव के कानों में पहुंची तो उन्होंने सदन की चल रही कार्यवाही को कुछ देर के लिए रोककर, विधानसभा सदस्यों को इसकी सूचना देने से खुद को नहीं रोक पाए थे। वहीं, इस कामयाबी से गदगद सीआरपीएफ की तरफ से आईपीएस सुभाषचंद्र दूबे की अगुवाई में ऑपरेशन चक्रब्यूह को अंजाम देने वाली पूरी टीम को जहां कई पुरस्कारों से नवाजा गया था। वहीं, आईपीएस दुबे को कमेंडेशन डिस्क का अवार्ड प्रदान किया गया था।