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Sonbhadra : ग्रामीण जीवन से मिलती है जीवन मूल्यों की शिक्षा, बोले हनुमंत पीठ के महंत-गांव भारत की प्राणवायु, इन्हें बचाए रखना होगा

Sonbhadra News: महंत मिथिलेशनंदिनीशरण जी महाराज ने कहा कि गांव जीवन मूल्यों- अधिक सघन मनुष्यता के साथ जीवन जीने की शिक्षा देते हैं।

Kaushlendra Pandey
Published on: 4 March 2025 8:31 PM IST
Sonbhadra News
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Sonbhadra News : हनुमंत पीठ के महंत मिथिलेशनंदिनीशरण जी महाराज ने कहा कि गांव जीवन मूल्यों- अधिक सघन मनुष्यता के साथ जीवन जीने की शिक्षा देते हैं। गांव का जीवन ही भारत की प्राणवायु हो। इसे हमें बचाए रखना होगा। वह मंगलवार को जिला मुख्यालय पर ग्राम्य संस्कृति,समृद्धि एवं जीवनबोध विषय पर आयोजित गोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।

कहा कि अनुदान पर जीने की प्रकृति गांवों की नहीं शहरों की होती है। गांव स्वय के कमाए, स्वयं की स्थापित पूंजी से चलता है। कहा कि ग्रामीण जीवनमनुष्यता, हमारे सभ्य होने की यात्रा है। वर्तमान परिवेश में गांवों का भी स्वरूप बिगड़ रहा है। संसाधनों तो बढ़े लेकिन असंतोष, पारस्परिक कल, तनाव ने दुखों के भंवर में डाल दिया है। कहा कि ऐसे समय में हम कहां से किस तरह से रास्ता निकालें कि सुख की प्राप्ति की जा सके, इसका समाधान गांव से ही मिलेगा।

गांव का अर्थ है अधिक सघन मनुष्यता का जीवन

कहा कि बड़ी विडंबना है.. गांव का व्यक्ति गांव का नहीं रहना चाहता। वर्तमान में वहीं गांव गवंई संस्कृति को बचाए रख सके हैं, जिन्होंने शहरी संस्कृति का वेलकम नहीं किया। कहा कि गांव का अर्थ आर्थिक रूप से पिछड़ी बस्ती नहीं बल्कि बाजारों के अतिक्रमण से बची हुई बस्ती है। बाजार से रहित मनुष्यों का निवास स्थान है। यह ऐसी जगह है जहां उपभोक्ता और उत्पादक के बीच बिचौलिया नहीं हैं। गांव का अर्थ आर्थिक रूप से पिछड़ा होना नहीं बल्कि अधिक सघन मनुष्यता के साथ जीने की शिक्षा है।

सोनभद्र का स्वरूप किसने बिगाड़ा, इस पर सोचना होगा

महंत मिथिलेशनंदिनीशरण जी ने कहा कि सोनभद्र में जो पहाड़ कट रहे हैं, पेड़ कट रहे हैं जल्दी से शहर होने की चिंता बढ़ी है। यह देख सरकारों की है या हमने यानी यहां के बाशिंदों ने स्वयं पैदा की, इस पर सोचना होगा।

मिर्जापुर-सोनभद्र की ध्वनि में जो अंतर है उस पर ध्यान देना होगा..। सोनभद्र में जिस भद्र शब्द का जुड़ाव है, उसका कितना अंश शेष रह गया है, इस पर भी विचार करना होगा। सरकार पर बढ़ती निर्भरता को गवंई स्वरूप बिगड़ने का कारण बताते हुए कहा कि इस बात पर गहराई से विचार करना होगा कि अनुदान पर जीने की प्रकृति शहरों की है गांवों की नहीं..।

सोनभद्र की संस्कृति के संरक्षण के लिए उठानी होगी आवाज

उन्होंने कहा कि इसके लिए जरूरी है कि सामाजिक इकाइयों, संस्था के माध्यम से संगठित होकर आवाज उठाई जाए। सोनभद्र में, सोनभद्र की संस्कृति, परंपरा के लिए विशेष क्या हो सकता है, इसके लिए सरकार पर दबाव बनाया जाए। सरकार ने यहां के लिए जो प्रतिज्ञा की है उसे वह पूरी करती है तो मीडिया भी उसे रेखांकित करे। जो वायदे पूरे नहीं किए गए हैं, उसके लिए आवाज उठाई जाए। सरकारी कामकाज में आदिवासी शब्द के इस्तेमाल पर कहा कि यह सरकारी शब्द है। वास्तविक शब्द गिरिवासी, वनवासी है। व्याकरण में कहीं भी आदिवासी शब्द का स्थान नहीं है। कहा कि हम चीजों को वोट के हिसाब से पहचानते हैं, इसलिए सरकारें उसका लाभ लेते हैं। सोनभद्र स्वीट्जरलैंड बन सकता है। इसके लिए यहां के स्थानीय नायकों, बुद्धिजीवियों को एकत्रित होना होगा। यहां के बाशिंदों को लगता है कि सरकार न्याय नहीं कर रही स्थानीय नेताओं, जनप्रतिनिधिओं, युवाओं और प्रबुद्ध वर्ग को आगे आकर मजबूती से पहल करनी होगी।

कार्यक्रम में इनकी-इनकी रही अहम हिस्सेदारी, मौजूदगी

गोष्ठी की अध्यक्षता साहित्यकार पारस मिश्र ने की। संचालन कार्यक्रम संयोजक आलोक कुमार चतुर्वेदी ने किया। इस दौरान राहुल, हर्ष अग्रवाल, कीर्तन, जगदीश पंथी, प्रभात सिंह चंदेल, अरुणेश पांडेय, लालजी तिवारी, अवधेश दीक्षित, दयाशंकर पांडेय, धनंजय पाठक, प्रवीण पांडेय, राज नारायण तिवारी, आनंद त्रिपाठी, प्रद्युम्न त्रिपाठी, डॉ. अंजलि विक्रम सिंह, चित्रा जालान, अशोक कुमार मिश्रा सहित अन्य की मौजूदगी बनी रही।

Ramkrishna Vajpei

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