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Sonbhadra News: सिस्टम पर सवाल है बुजुर्ग की मौत, खुद को जिंदा करने की कोशिश में जुटे 'कांता; की थमी सांसों ने उठाए कई सवाल
Sonbhadra News: बुजुर्ग की मौत के बाद जिंदा रहते मृतक दिखाने, सरकार की ओर से ढेरों योजनाएं संचालित करने के बावजूद, बुजुर्ग को एक-एक निवाले और उपचार के लिए संघर्ष करते देखकर चुप्पी साधने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई हो पाएगी?
sonbhadra news: सिस्टम के व्यूह के आगे आखिरकार एक बुजुर्ग की जिंदगी हार गई। पिछले चार साल से बंद पड़ी राशन और मृतक दर्शाए जाने के कारण 18 माह से बंद चल रही पेंशन को शुरू करने की गुहार लगा रहे सवर्ण वर्ग से आने वाले 85 वर्षीय बुजुर्ग कांता पांडेय जहां बुधवार को चिरनिद्रा में लीन हो गए। वहीं, उनकी मौत ने, हर सरकारी योजना की समाज के आखिरी जरूरतमंद तक पहुंच के दावे करने वाले सिस्टम पर कई सवाल खड़़े कर दिए। इसको लेकर जहां नाराजगी भरे स्वर उठने लगे हैं। वहीं, सोशल मीडिया पर आखिर नहीं मिल पाई सरकारी सहायता.. जैसी टिप्पणियां ट्रेंड करने लगी है।
तंगी ने रोक रखा था उपचार, भोजन के भी थे लाले
कांता पांडेय की तरफ से जिंदा रहने के दौरान अफसरों से लगाई गई फरियाद और दिए गए प्रार्थना पत्र पर गौर करें तो जहां तंगी ने उनका उपचार लंबे समय से रोक रखा था। वहीं, भोजन को लेकर भी रोटी के लाले पड़़ने जैसी स्थिति बनी हुई थी। परिवार की खराब स्थिति को देखते हुए वह पिछले कई महीने से, मृतक बताकर बंद की गई मृतक पेंशन को शुरू करने की गुहार लगा रहे थे। कथित कोटेदार की करतूत के चलते चार वर्ष पूर्व गायब हुए राशनकार्ड के चलते, चार वर्ष से सरकार की तरफ से मिलने वाले अनाज को लेकर भी उनकी तरफ से लगातार गुहार लगाई जा रही थी।
मीडिया में मामला बना हुआ था सुर्खियां, फिर भी नहीं पहुंची मदद
बावजूद मिल रही सरकारी मदद की बहाली तो दूर,लगातार बीमारी के चलते बिस्तर पर तड़पते तथा भोजन के एक-एक निवाले के लिए संघर्ष करते परिवार और उसके बुजुर्ग की मदद के लिए सरकारी अमला आगे आया न ही मदद का दिखावा करने वाले समाज के कथित रहनुमा। आयुष्मान कार्ड, पात्र गृहस्थी जैसी योजनाएं भी संबंधित बुजुर्ग से दूर रहीं। यह स्थिति तब थी, जब यह प्रकरण मीडिया की सुर्खियां बना हुआ था।
हो पाएगी किसी पर कार्रवाई? फिलहाल कहना मुश्किल
बुजुर्ग की मौत के बाद जिंदा रहते मृतक दिखाने, सरकार की ओर से ढेरों योजनाएं संचालित करने के बावजूद, बुजुर्ग को एक-एक निवाले और उपचार के लिए संघर्ष करते देखकर चुप्पी साधने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई हो पाएगी? फिलहाल के हालात में यह कहना मुश्किल है। वहीं, जिले में अभी कितने ऐसे व्यक्तियों को मृत दिखाकर, सरकारी मदद से वंचित करने का खेल खेला जा चुका है, यह भी कहना खासा मुश्किल हो गया है।
मजदूरी कर जीवनयापन करने को विवश है इकलौता पुत्र
बताया जा रहा है कि सवर्ण वर्ग से आने के बावजूद कोई आर्थिक संबल न होने के कारण मृतक के इकलौते पुत्र गोपाल पांडेय को परिवार के गुजर-बसर के लिए मजदूरी का सहारा लेना पड़ रहा है। प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री आवास जैसी योजनाओं से भी यह परिवार अछूता है।