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UP Nikay Chunav: सपा कर रही ब्राह्मण-मुस्लिम गठजोड़ के सहारे 2007 का इतिहास दोहराने की कोशिश

Jalaun News: जनपद की कोंच नगर पालिका में अध्यक्ष पद का चुनाव इस बार काफी दिलचस्प मोड़ पर है। समाजवादी पार्टी एक बार फिर 2007 का इतिहास दोहराने की फिराक में है। जब वहां वैश्य मुस्लिम गठजोड़ ने सपा की नैया पार लगाई थी।

Afsar Haq
Published on: 24 April 2023 6:15 PM IST
UP Nikay Chunav: सपा कर रही ब्राह्मण-मुस्लिम गठजोड़ के सहारे 2007 का इतिहास दोहराने की कोशिश
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UP Nikay Chunav 2023 (Photo: Social Media)

Jalaun News: कोंच नगरपालिका चुनाव अपने पूरे शबाब पर पहुंचता जा रहा है। जहां पर प्रत्याशी जनता के बीच पहुंचकर चरण वंदन करने में लगे हुए हैं। वहीं समीकरण की बात करें, तो नगर निकाय चुनाव में समाजवादी पार्टी ब्राह्मण मुस्लिम गठजोड़ के भरोसे नैया पार लगाने में जुटी है। दूसरी तरफ भाजपा भी पूरी ताकत के साथ लगी है कि 36 साल पहले जैसी स्थिति में पहुंचा जा सके। इस बार कोंच पालिकाध्यक्ष सीट पर उसका कब्जा हो सके। लेकिन उसके साथ हर बार की तरह इस बार भी मुश्किल यही है कि पार्टी का वोट अंतिम समय में जातियों में परिवर्तित हो जाता है।

ज्यादातर रही कांग्रेस के पास यह सीट
कोंच पालिकाध्यक्ष पद का चुनाव जब से सीधे जनता के माध्यम से शुरू हुआ है, तब से केवल 1987 में भाजपा को छोड़कर ज्यादातर कांग्रेस का ही कब्जा रहा है। जबकि 2007 में समाजवादी पार्टी और 2012 में निर्दलीय उम्मीदवार विजयी रहे। 2018 में अनुसूचित महिला के लिए आरक्षित हो गई और उस पर कांग्रेस की ओर से सरिता वर्मा अग्रवाल ने जीत हासिल करके एक बार फिर कांग्रेस की झोली में सीट डाल दी। कहा जाता है कि उनके साथ वर्मा, वैश्य व मुस्लिम समाज आ जाने से जीत मिली थी। दूसरी ओर 1987 में भाजपा की जीत की वजह पार्टी का कोई वोट नहीं बल्कि उस वक्त का ’रामलीला कांड’ बना था। जिसमें पुलिस बनाम पब्लिक संघर्ष हुआ था। पं. राधेश्याम दांतरे पब्लिक के अगुवाकार के रूप में उभर कर उस कांड में हीरो बन गए जिसका सीधा लाभ उन्हें पालिका चुनाव में मिला और वे जीत गए।

दोबारा नहीं मिला भाजपा को मौका
इस नगर पालिका में इसके बाद फिर दोबारा भाजपा को मौका नहीं मिला कि वह अपना चेयरमैन बना पाए। 1996 में कांग्रेस (तिवारी) के अशोक शुक्ला ने भाजपा के डॉ. अवधबिहारी गुप्ता को तीन वोट से हराकर पालिकाध्यक्ष सीट पर कब्जा कर लिया था। शिकस्त खाए डॉ. अवधबिहारी गुप्ता भाजपा के इतने कद्दावर नेता थे। उनकी गिनती जनसंघ के जमाने के राष्ट्रीय लेवल के फ्रंट लाइन के नेताओं के साथ की जाती थी, लेकिन जनता ने उन्हें नकार दिया था। इसके बाद 2001 के चुनाव में अशोक शुक्ला फिर कांग्रेस के टिकट पर विजयी रहे। लेकिन 19 मई 2004 को भाड़े पर बुलाए गए हत्यारों ने उनकी हत्या कर दी थी। 2007 में कोंच पालिकाध्यक्ष सीट महिला के आरक्षित हो गई जिसमें कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर स्व. अशोक शुक्ला की पत्नी सुषमा शुक्ला चुनाव लड़ीं लेकिन वे सपा प्रत्याशी शकुंतला तरसौलिया से चुनाव हार गईं। शकुंतला की जीत की सबसे बड़ी वजह वैश्य मुस्लिम गठजोड़ रहा।

मुस्लिम वोट हैं निर्णायक
चूंकि कोंच पालिका क्षेत्र में सबसे ज्यादा वोट मुस्लिम विरादरी के ही हैं और वे जिसके साथ जाते हैं उसकी जीत की राह आसान कर देते हैं। 2007 में भी यही हुआ जब शकुंतला की बिरादरी गहोई वैश्यों के साथ मुस्लिम मिल गए तो शकुंतला की झोली में जीत आ गई। इस बार समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी स्व. अशोक शुक्ला की पत्नी सुषमा शुक्ला हैं। जो ब्राह्मण-मुस्लिम गठजोड़ के सहारे 2007 का इतिहास दोहराने की कोशिश में एड़ी चोटी का जोर लगाए हैं। हालांकि, भाजपा भी पूरी ताकत के साथ चुनाव मैदान में है लेकिन उसके साथ हर बार यही ट्रेजेडी होती है कि चुनाव के अंतिम दौर में भाजपा का वोट बैंक जातियों में बिखर जाता है और उसे पराजय का मुंह देखना पड़ता है। इसको अगर उदाहरण देकर समझाया जाए तो जो भाजपा विधानसभा चुनाव में पालिका क्षेत्र से 11 हजार वोट पाती है। वही भाजपा निकाय चुनाव में महज पांच हजार वोट पर सिमट जाती है। इसका मतलब साफ है कि निकाय चुनाव में भाजपाई जाति-जाति खेलने लगते हैं और प्रत्याशी की पराजय का मार्ग प्रशस्त करते हैं। फिलहाल यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि कौन सी नगरपालिका की सीट किसके खाते में जाती है।



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Afsar Haq

Afsar Haq

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