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Political News: सपा ने राणा सांगा विवाद में उठाया दलित कार्ड: मायावती की कड़ी आलोचना, अवधेश प्रसाद के बाद रामजी लाल सुमन पर चला दांव
भारत में आक्रांताओं से लड़ने वाले नायक और योद्धा हर धर्म-पंथ और जातियों से ऊपर हैं। ऐसे महान विभूतियां हर समुदाय से ऊपर उठकर समाज और राष्ट्र की होती हैं।
Lucknow News: Photo-Social Media
Political News: भारत में आक्रांताओं से लड़ने वाले नायक और योद्धा हर धर्म-पंथ और जातियों से ऊपर हैं। ऐसे महान विभूतियां हर समुदाय से ऊपर उठकर समाज और राष्ट्र की होती हैं। पर इन दिनों एक ऐसे महान नायक को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। इस मुद्दे पर सड़क से संसद तक बहस का भी सिलसिला लगातार जारी है। राजनीति पार्टियों ने वीर शिरोमणि राणा सांगा के मुद्दे को उत्तर प्रदेश की राजनीति में नया मोड़ देते हुए इसे दलित बनाम ठाकुर के रूप में पेश कर रही हैं।
राजनीतिक दलों का उद्देश्य राणा सांगा जैसे महान वीर योद्धा को केवल एक जाति तक सीमित कर देना है। इस मामले पर समाजवादी पार्टी ने दलित कार्ड भी खेला है, और पार्टी ने सपा सांसद रामजी लाल सुमन को दलित समुदाय का चेहरा बनाकर अपनी रणनीति को आगे बढ़ाने की योजना बनाई है। बता दें कि बीते दिनों करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने रामजी लाल सुमन के आवास पर तोड़फोड़ की थी। वहीं लोकसभा चुनाव में अयोध्या सीट पर जीत दर्ज करने वाले अवधेश प्रसाद को सपा ने दलित चेहरे के रूप में पेश किया था। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव हर जगह अवधेश प्रसाद को अपने साथ ले जाते रहे हैं। पर राणा सांगा पर रामजी लाल सुमन के बयान के बाद पार्टी ने अवधेश प्रसाद के बाद अब सपा सांसद रामजी लाल सुमन पर पूरा फोकस कर दिया है।
सपा की रणनीति
सपा ने दलितों के बीच समर्थन बढ़ाने के लिए रामजी लाल सुमन को अपना पोस्टर बॉय बना लिया है। पहले सपा ने अवधेश प्रसाद को इसी तरह का चेहरा बनाया था, लेकिन अब रामजी लाल सुमन को आगे किया है। इस बदलाव से सपा यह स्पष्ट संदेश देना चाहती है कि वे दलित समुदाय की आवाज बन सकते हैं। वहीं समाजवादी पार्टी ने ईद के बाद प्रदेशभर में धरना-प्रदर्शन आयोजित करने वाली है। जिसमें रामजी लाल सुमन को आगे किया जाएगा। और अब सपा उनके माध्यम से दलितों के बीच अपनी पैठ बनाने का प्रयास कर रही है। सपा का उद्देश्य इस आंदोलन को दलितों के बीच समर्थन जुटाने के रूप में देख रही है, ताकि उनका वोट बैंक मजबूत किया जा सके। वहीं इस मसले में अब बसपा सुप्रीमो मायावती की एंट्री भी हो चुकी है। उन्होंने इसे सपा की घिनौनी राजनीति करार दिया और दलितों को इससे सतर्क रहने की सलाह दी है।
अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव में पीडीए का दम दिखा चुके हैं। यादव, मुसलमान के साथ अगर दलित उनके साथ जुड़ गए तो फिर उनकी जीत तय है। वोटों का ये हिसाब किताब पचास प्रतिशत के आस-पास बैठता है। वैसे भी मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी के जाटव वोटर दोराहे पर खड़े हैं। वहीं बसपा की ताकत लगातार कमजोर हो रही है।
क्या सपा का दलित कार्ड होगा सफल
इस बयार में भारतीय जनता पार्टी अपने पुराने एजेंडे हिंदुत्व को लेकर दम भर रही है। जबकि समाजवादी पार्टी यह प्रचार कर रही है कि करणी सेना के प्रदर्शन को राज्य सरकार का संरक्षण मिला रहा है। वहीं समाजवादी पार्टी इस मुद्दे को किसी भी हालत में हाथ से जाने नहीं देना चाहती। यह देखना अब दिलचस्प होगा कि समाजवादी पार्टी का यह दलित कार्ड कितना सफल होता है। रामजी लाल सुमन का अचानक बदला हुआ रुख और सपा द्वारा उन्हें आगे लाना, इस बात की ओर इशारा करता है कि पार्टी इस मुद्दे पर बड़े वोट बैंक की तलाश में है। हालांकि मायावती इस प्रयास से पूरी तरह से सतर्क हैं, और उन्होंने इसे घिनौनी राजनीति करार दिया है। अब सवाल यह है कि सपा की यह नई रणनीति कितनी कारगर होगी, और बीजेपी इसका किस तरह से जवाब देगी।