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महिला दिवस पर विशेष: बेटियां भी संभालती हैं राजनीतिक विरासत
राजनीति में नेता पुत्रों की चर्चा तो सभी करते हैं लेकिन नेता पुत्रियों की चर्चा कोई नहीं करता । इधर कुछ वर्षो से नेता पुत्रियां दिन पर दिन राजनीति में एक मुकाम हासिल कर अपने पिता की विरासत संभालने का काम कर रही हैं। कुछ तो अपने दल का प्रचार करने में तो कुछ स्वयं चुनाव मैदान में उतरकर राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रही है।
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ: राजनीति में नेता पुत्रों की चर्चा तो सभी करते हैं लेकिन नेता पुत्रियों की चर्चा कोई नहीं करता । इधर कुछ वर्षो से नेता पुत्रियां दिन पर दिन राजनीति में एक मुकाम हासिल कर अपने पिता की विरासत संभालने का काम कर रही हैं। कुछ तो अपने दल का प्रचार करने में तो कुछ स्वयं चुनाव मैदान में उतरकर राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रही है।
प्रियंका गांधी
पूर्व प्रधानमंत्री स्व राजीव गांधी की पुत्री प्रियंका गांधी 2007 के बाद से हो रहे चुनावों में लगातार सक्रिय हैं। फिर वह चाहे लोकसभा का चुनाव हो अथवा विधानसभा का। वह खुद चुनाव न लड़कर चुनाव प्रचार करने का काम करती है। इस बार तो लोकसभा चुनाव को लेकर वह बेहद सक्रिय हैं। इन दिनों वह लोकसभा चुनाव को लेकर जबरदस्त तैयारियों में जुटी हुई हैं। कार्यकर्ताओं के साथ बैठकर उनके साथ वार्तालाप प्रियंका गांधी की दूरदृष्टि का ही नतीजा कहा जा रहा है।
अनुप्रिया पटेल
अपना दल के संस्थापक स्व सोनेलाल पटेल की एक दुर्घटना में मौत के बाद राजनीतिक विरासत संभालने का काम उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल ने संभाल रखा है। पहली बार लोकसभा में पहुंचकर मंत्री पद सँभालने वाली अनुप्रिया पटेल ने केन्द्र सरकार में मंत्री बनकर अपने पिता के सपने को साकार किया है। प्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनाव में वह ‘अपना दल’ के प्रत्याशियों को चुनाव लड़वाने की तैयारी कर रही हैं।
आराधना मिश्रा
राज्यसभा सदस्य प्रमोद तिवारी यूपी विधानसभा में 9 बार सदस्य रहने के बाद जब उन्होंने राज्यसभा की राह पकड़ी तो उनकी बेटी आराधना मिश्रा ‘मोना’ ने रिक्त हुई सीट रामपुर से अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत की। उन्होंने यहां से दो बार जीत दर्ज विधानसभा पहुंच चुकी हैं। इसके पहले भी वह पिता प्रमोद तिवारी के चुनाव में उनकी मदद किया करती थी। अब वह एक बार फिर से यूपी विधानसभा के चुनाव में पिता की परम्परागत सीट से चुुनाव लड़ रही हैं।
डा रीता बहुगुणा जोशी
डा रीता बहुगुणा के पिता हेमवती नन्दन बहुगुणा प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उनकी बेटी डा रीता बहुगुणा जोशी ने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने का काम किया है। कांग्रेस व समाजवादी पार्टी में बडे़ पदों पर रहने के बाद अब वह भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। पिछले दफे डा रीता बहुगुणा जोशी लखनऊ कैंट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीती थी। इस बार भाजपा के टिकट पर इसी सीट से विधायक हैं।
मृगांका सिंह
कैराना में हिन्दुओं के पलायन को रोकने को लेकर चर्चा में आए हुकुम सिंह सांसद बनने से पहले आठ बार विधायक बन चुके हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में जब वह इस क्षेत्र से सांसद चुने गए तो रिक्त पड़ी विधानसभा सीट कैराना से चुनाव मैदान में उनकी बेटी मृगांका सिंह ने मोर्चा संभालने का काम किया है। वह इस चुनाव में भाजपा के टिकट से पहले विधानसभा और फिर लोकसभा का चुनाव लड़ चुकी हैं।
नीलिमा कटियार
प्रेमलता कटियार यूपी की राजनीति में एक जाना पहचाना नाम है। पांच बार विधायक बनने के बाद वह 2012 का विधानसभा चुनाव पहली बार हारी थी। प्रदेश में भाजपा की सरकार में महिला कल्याण मंत्री रही प्रेमलता कटियार जनसंघ के जमाने से पार्टी में कद्दावर नेता रही हैं। अब उनकी बेटी नीलिमा कटियार परम्परागत कल्याणपुर सीट से विधायक हैं।
रत्ना सिंह
प्रतापगढ़ सीट से तीन बार सांसद रही और कालाकांकर की राजकुमारी रत्ना सिंह के पिता दिनेष सिंह को स्व इंदिरा गांधी का बेहद करीबी माना जाता था। पं नेहरू के निजी सचिव रहे दिनेष सिंह अमेरिका में भारत के राजदूत और विदेश मंत्री भी रहे। प्रतापगढ के सांसद रहने के बाद उनकी बेटी रत्ना सिंह ने बाद में उनकी राजनीतिक विरासत संभालने का काम किया।
अदिति सिंह
यूपी विधानसभा चुनाव में रायबरेली सदर सीट से 90 हजार से अधिक वोटों से जीतकर विधायक बनी हैं। अदिति के पिता अखिलेश सिंह भी यहां से पूर्व में कांग्रेस समेत अलग-अलग दलों से 5 बार विधायक रह चुके हैं। अखिलेश सिंह को बाहुबली नेता माना जाता है। रायबरेली कांग्रेस की परंपरागत सीट मानी जाती है।
संघमित्रा मौर्या
नेता पुत्रियों में एक और नाम बहुत तेजी से राजनीति में उभरा है वह कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्या की बेटी संघमित्रा मौर्य का है। वह पूर्व में दो चुनाव भी लड चुकी है। संघमित्रा पहले 2014 का लोकसभा चुनाव मैनपुरी से मुलायम सिंह के खिलाफ और फिर 2017 का विधानसभा चुनाव लड चुकी हैं। लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव को कडी टक्कर देकर वह चर्चा में आई थी।
ज्ञानवती
पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की पुत्री ज्ञानदेवी ने भी राजनीति में कदम रखा। 1991 में इगलास विधानसभा सीट से वह जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़कर विधायक बनी थी। इसके बाद 1996 के चुनाव में वह इगलास सीट छोड़कर फिर दूसरी जाट बाहुल्य सीट खैर से चुनाव जीती थी।