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जयंती विशेष- यहां बापू ने खेली थी विदेशी कपड़ों की होली,जलाए गये थे 50 हजार वस्त्र

Aditya Mishra
Published on: 1 Oct 2018 5:55 PM IST
जयंती विशेष- यहां बापू ने खेली थी विदेशी कपड़ों की होली,जलाए गये थे 50 हजार वस्त्र
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नई दिल्ली: 2 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्मदिन है। इस खास मौके पर हम आपको आजादी की लड़ाई से जुड़ी एक ऐसी खास जगह के बारे में बता रहे है। जहां पर गांधीजी ने विदेशी कपड़ों के इस्तेमाल करने को लेकर लोगों को जागरूक किया था। वहां पर पहली बार विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई थी। उस दिन के बाद से वो जगह आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है। ये जगह प्रतापगढ़ के कालाकांकर रियासत के अंतर्गत आती है।

इस जगह जलाए गये थे 50 हजार विदेशी कपड़े

महात्मा गांधी 14 नवंबर 1929 को पहली बार कालाकांकर रियासत पहुंचे थे। गांधी जी ने यहां के राजा अवधेश सिंह से मुलाकात की थी। उसके बाद वहां के लोगों को संबोधित किया था। जिसमें विदेशी कपड़ों के बहिष्कार करने के लिए लोगों को प्रेरित किया गया था। वो दिन 28 नवंबर 1932 का था। उस दिन एक चबूतरे पर तकरीबन 50 हजार विदेशी कपड़े जलाए गए थे। ये चबूतरा आज भी मौजूद है और इस दिन अब एक विशाल मेला लगता है।

इतिहास में दर्ज है इस रियासत का नाम

प्रतापगढ़ जिला लखनऊ से 170 किमी दूरी पर स्थित है। यहां का अपना ही इतिहास है। इतिहास के पन्नों को अगर पलटकर देखे तो पाएंगे कि प्रतापगढ़ के कई राजपूत राजाओं ने जंगे आजादी में विशेष योगदान दिया था।

गोरखपुर जिले का मझौली गांव इस राजपूत घराने का मूल स्थान रहा है। वहां से आकर इस राजवंश के राजा होम मल्ल राय ने मिर्जापुर स्थित बड़गौ में अपना महल बनवाया था।

साल 1193 में इनका राज्याभिषेक हुआ। इसके बाद साल 1808 में राजघराने में राजा हनुमत सिंह पैदा हुए थे और 1828 ई. में गद्दी पर बैठे। गंगा नदी के किनारे एक बेहद खूबसूरत स्थान को उन्होंने अपनी राजधानी बनाया। इसे बाद में कालाकांकर रियासत के नाम से जाना गया।

अंग्रेजों के साथ जंग लड़ते हुए शहीद हुए थे राजा

राजा हनुमत सिंह के बुजुर्ग होने के बाद उनके बेटे राजा लाल प्रताप सिंह रियासत की गद्दी पर बैठे। लेकिन उनका मन राजकाज में नहीं लगता था। उनके अंदर बचपन से ही देश- प्रेम की भावना थी। जैसे –जैसे उनकी उम्र बढ़ती गई। उनके अंदर देश -प्रेम की भी भी भावना बढ़ती गई। गद्दी पर बैठने के बाद भी उनका मन देश को आजाद कराने के लिए बेचैन था।

सुल्तानपुर जनपद स्थित चांदा स्थान पर साल 1857 के प्रथम स्वंतत्रता संग्राम में उनकी अंग्रेजों से जमकर लड़ाई हुई। लगातर 8 दिन तक लड़ने के बाद वह शहीद हो गए। इसके बाद उनके बेटे राजा रामपाल सिंह गद्दी पर बैठे।

आजादी का बिगुल फूंकने को किया था ये काम

आजादी की लड़ाई को हवा देने के लिए राजा रामपाल सिंह ने 1865 में एक अखबार निकाला। उसका नाम हिंदोस्थान रखा। महात्मा गांधी ने इसका उद्घाटन किया।

डॉ. मदन मोहन मालवीय ने साल 1887 में राजा रामपाल सिंह के अखबार में चीफ एडिटर के तौर पर काम किया।शुरूआती दौर में अखबार कौशाम्बी जनपद के सिराथू से देश के विभिन्न हिस्सों में भेजा जाता था।

इसके जरिए मालवीय जी क्रांतिकारियों को सीक्रेट मैसेज भी भेजते थे। इसका स्पष्ट उल्लेख जंगे आजादी के इतिहास में भी मिलता है।

आजादी के बाद भी इस रियासत की रही है अहम भूमिका

आजादी के बाद कांग्रेस की सरकार बनी। आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले इस रियासत के अंतिम राजा दिनेश सिंह को सरकार में प्रमुख स्थान मिला।

1962 में वो बांदा से सांसद चुने गए और उन्हें केंद्रीय विदेश मंत्री बनाया गया। इसके बाद लगातार किसी न किसी रूप में 1995 तक सरकार के अंग रहे। उनकी बेटी राजकुमारी रत्ना सिंह भी दो बार सांसद रहीं।

इतिहासकारों की ये है राय

इतिहासकार प्रो. पीयूष कांत शर्मा बताते हैं, ''कालाकांकर राजघराने का जंगे आजादी में बड़ा योगदान रहा है। महात्मा गांधी ने जब भी गंगा किनारे के क्षेत्रों में आजादी की लड़ाई को धार देने की कोशिश की हमेशा इस घराने ने उनका साथ दिया।''

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