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चोट लगने पर नहीं रुक रहा खून तो आप हो सकते हैं हीमोफीलिया के मरीज

Admin
Published on: 16 April 2016 11:55 AM GMT
चोट लगने पर नहीं रुक रहा खून तो आप हो सकते हैं हीमोफीलिया के मरीज
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लखनऊ: अक्सर हम देखते हैं कि कुछ बच्चों के जरा सी भी चोट लग जाती हैं, तो खून निकलना शुरु हो जाता है। हम तुरंत उस चोट पर मरहम पट्टी भी करते हैं, पर खून का बहना रुकता ही नहीं है। सभी जानते हैं कि चोट लगने पर खून का बहना लाजमी होता है, लेकिन उस समय अक्सर लोग परेशान हो जाते हैं। जब खून का बहना बंद नहीं होता है, ऐसे समय में डरने की जरुरत नहीं होती है, जितनी जल्दी हो सके उस बच्चे या खून बहने वाले इंसान को तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं क्योंकि ये लक्षण होते हैं हीमोफीलिया नामक बीमारी के।

विश्व हीमोफीलिया दिवस के मौके पर हम आपको हीमोफीलिया नामक बीमारी के बारे में बताते हैं-

हीमोफीलिया के ये हैं लक्षण

लखनऊ के केजीएमयू के डॉक्टर एके त्रिपाठी ने बताया कि हीमोफीलिया एक आनुवांशिक बीमारी है, जो आमतौर पर पुरुषों को होती है और औरतों द्वारा फैलती है। यह आनुवंशिक रोग है, जिसमें शरीर के बाहर बहता हुआ खून जमता नहीं है। इसके कारण चोट या दुर्घटना में यह जानलेवा साबित होती है क्योंकि खून का बहना जल्द ही बंद नहीं होता। विशेषज्ञों के अनुसार इस रोग का कारण एक रक्त प्रोटीन की कमी होती है, जिसे क्लॉटिंग फैक्टर कहा जाता है। इस फैक्टर की विशेषता यह है कि यह बहते हुए रक्त के थक्के जमाकर उसका बहना रोकता है। इस रोग में रोगी के शरीर के किसी भाग में जरा सी चोट लग जाने पर बहुत अधिक मात्रा में खून का निकलना आरंभ हो जाता है। इससे रोगी की मृत्यु भी हो सकती है।

asdaहीमोफीलिया के प्रकार

-हीमोफीलिया को हीमोफीलिया ए व हीमोफीलिया बी दो भागों में बांटा गया है।

-हीमोफीलिया ए में फैक्टर-8 की मात्रा बहुत कम या शून्य होती है।

-दूसरी ओर फैक्टर-9 के शून्य या बहुत कम होने से हीमोफीलिया बी होता है।

-लगभग 80 प्रतिशत हीमोफीलिया रोगी हीमोफीलिया ए से पीड़ित होते हैं।

-हल्के हीमोफीलिया के मामले में पीड़ित को कभी-कभी रक्तस्राव होता है

-गंभीर स्थिति में अचानक व लगातार रक्तस्त्राव हो सकता है।

हीमोफीलिया से होने वाले नुकसान

हीमोफीलिया मरीज के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। इस मर्ज से पीड़ित को घाव हो जाने चोट लग जाने या आपरेशन की जरूरत पड़ने पर खून का बहना रुकता नहीं है। इससे मरीज की जान पर बन आती है। वजह यह है कि इस बीमारी की गिरफ्त में आने वाले मरीज के शरीर में प्लाज्मा बनना बंद हो जाता है। इस रोग की गिरफ्त में आने वाले व्यक्ति के शरीर में खून जमने की शक्ति कम हो जाती है। यह बीमारी बच्चे के शरीर में उसकी मां के जरिए चली जाती है। चोट अथवा अन्य कारणों से बच्चों के घुटने में सूजन हो जाता है जो आगे चलकर हड्डियों को डैमेज कर देता है। बच्चों में ब्रेन हैमरेज और पेट में चोट के कारण भी ऐसी स्थिति आ सकती है। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, बीमारी बढ़ती जाती है और जब चोट अथवा घाव के कारण रक्तस्राव होने लगता हैए तो रुकता नहीं है। बच्चों के घुटने में सूजन की वजह से बोन के डैमेज होने का खतरा रहता है।

dsfsdfक्या है डॉक्टर का कहना

ए के त्रिपाठी बताते हैं कि इस रोग के कारण शरीर में फैक्टर 8 और फैक्टर 9 की कमी हो जाती है। ऐसी दशा में शरीर में खून जमने की शक्ति कम हो जाती है यह बीमारी आनुवंशिक होने के कारण मां से उसके बच्चे में ट्रांसफर होती है। इस बीमारी की पहचान के लिए एपीटीटी नामक ब्लड सैंपल टेस्ट होता है। घाव या फिर कटने पर खून का बहना रुकता नहीं है। ऐसी दशा में मरीज को प्लाज्मा चढ़ाया जाता है। एबीपी नामक हारमोन भी दिया जाता है। यह फैक्टर.8 को बढ़ा देता हैए जिससे रक्त का बहना रुक जाता है।

संभव है हीमोफीलिया का इलाज

डॉक्टर त्रिपाठी का कहना है कि पूरे लखनऊ में करीब 2300 हीमोफीलिया के मरीज हैं और कई मरीजों का अबतक पता नहीं लगाया जा सका है उनका कहना है कि जब तक लोग ब्लड टेस्ट के लिए नहीं आते इस बीमारी के बारे में नहीं जान सकते वह कहते हैं कि लखनऊ के केजीएमयू में एक ही छत के नीचे इस बीमारी का पूरा इलाज संभव है यहां फैक्टर 8 और 9 दोनों कि दवा मिलती है नार्थ इंडिया के कई मेडिकल कॉलेजेस में इसका मुफ्त इलाज होता है साथ ही वह ये भी बताते हैं कि पहले ज्यादा खून बह जाने के डर से ऐसे मरीजों का ऑपरेशन करने से डॉक्टर्स कतराते थे पर अब ऐसा नहीं है

जागरूकता का है अभाव

त्रिपाठी जी का कहना है कि हीमोफीलिया के बारे में जागरूकता अत्यंत कम है। अस्पताल के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में रोगी उन मौतों के शिकार हो जाते हैं, जिन्हें रोका जा सकता है। परेशानी यह भी है कि पुराने समय में चिकित्सकों को हीमोफीलिया के निदान या उपचार के लिए पर्याप्त संसाधन और इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध नहीं हो पाता था। इस बीमारी के प्रति जागरुकता के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाया जाता है। यहां हीमोफीलिया का इलाज रिप्लेसमेंट थैरेपी से किया जाता है।

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