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यूपी सरकार रही फेल नौनिहालों की किताबों में फिर बड़ा खेल
सुधांशु सक्सेना
लखनऊ : सूबे में योगी सरकार के बनने पर लोगों के दिलों में सरकारी कामकाज में बदलाव व भ्रष्टाचार खत्म होने की आस जगी थी मगर इस बार भी पिछली सरकार की तरह ही बेसिक स्कूलों में पढऩे वाले नौनिहालों की पाठ्य पुस्तकों को लेकर खेल शुरू हो गया है। अधिकारियों की कारगुजारियों के चलते सूबे में गरीब बच्चों को पढ़ाने और उनके भविष्य को उज्जवल बनाने के दावे करने वाला सर्व शिक्षा अभियान दम तोड़ता नजर आ रहा है।
इस बार भी पिछले साल की तरह नौनिहालों की पाठ्य पुस्तकों की आड़ में अधिकारियों ने खेल कर दिया है। इसके चलते इस शैक्षिक सत्र में भी प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों के 130.62 लाख और उच्च प्राथमिक स्तर के 56.09 लाख बच्चों को समय पर नई किताबें नहीं मिल पाएंगी। इस मामले में पड़ताल करने पर कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। पड़ताल में पता चला कि गरीब बच्चों के भविष्य को दांव पर लगाकर करोड़ों का घोटाला करने की फिर तैयारी की गई है। इसके चलते पिछले साल समय पर किताबें न छापकर देने वाले प्रकाशकों को ही इस बार भी टेंडर का आवंटन किया गया है।
पुराने प्रकाशकों से नहीं छूट रहा मोह
यूपी में सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत सरकारी स्कूलों के बच्चों को नि:शुल्क किताबें बांटी जाती हैं। हर वर्ष की तरह शैक्षिक सत्र 2017-18 के लिए सूबे में पंजीकृत कक्षा 1 से 8 तक के बच्चों के लिए करीब 13 करोड़ किताबों की छपाई होनी है। इसके लिए दिसंबर 2016 में टेंडर भी आमंत्रित कर लिए गए। उम्मीद थी कि इस शैक्षिक सत्र में नौनिहालों को समय से किताबों की नि:शुल्क आपूॢत हो जाएगी। लेकिन अधिकारियों ने इसे रोके रखा और 4 मई 2017 को इसकी फाइनेंशियल बिड खोली। आश्चर्य की बात तो यह रही कि इस साल उन्हीं प्रकाशकों को टेंडर मिल गया जिन पर पिछले साल समय से किताबों की आपूर्ति नहीं करने का आरोप था।
इसके अलावा एक फर्म 'बुर्दा ड्रंक' के लिए तो उच्च न्यायालय ने भी अधिकारियों को जांच करके कार्रवाई करने को कहा था, लेकिन जांच करना तो दूर उसे बकायदा टेंडर का आवंटन भी कर दिया गया। ऐसे में साफ है कि अधिकारियों का अपने पुराने प्रकाशकों से मोह भंग नहीं हो पा रहा है। इसके चलते शैक्षिक सत्र का एक माह बीत जाने के बाद भी राजधानी और इससे सटे इलाकों के सभी स्कूलों में पुरानी किताबों के सहारे पढ़ाई कराई जा रही है। ऐसे में सवाल यह है कि जब सरकार ने किताबों की छपाई और वितरण के लिए टेंडर का आमंत्रण समय से कर दिया था तो किस कारण से इसमें देरी की गई और क्या कारण रहा कि पुराने प्रकाशकों को ही विभाग ने इस काम के लिए मुफीद माना?
पिछले साल भी हुआ था बड़ा खेल
सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत कक्षा 1 से 8 तक के स्कूलों में नि:शुल्क बंटने वाली किताबों की छपाई में पिछले साल भी जमकर खेल हुआ था। शैक्षिक सत्र 2016-17 में सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत पाठ्य पुस्तक अधिकारी अमरेन्द्र सिंह ने टेंडर की शर्तों में ही दो बार संशोधन करवा दिया था। वर्ष 2016-17 के लिए किताबों की छपाई का टेंडर 23 फरवरी 2016 को आमंत्रित किया गया था। इसके अनुसार छपाई करने के इच्छुक प्रकाशकों को 26 मार्च 2016 तक अपनी निविदाएं बंद लिफाफे में कार्यालय को रिसीव करवानी थी। इसके बाद 14 मार्च 2016 को टेंडर की शर्तो में भुगतान सम्बन्धी एक संशोधन किया गया था।
इसके बाद 22 मार्च को किताबों की छपाई में विशेष प्रकार के कागज का इस्तेमाल करने और उसे निश्चित उत्पादन क्षमता वाली मिलों से लेने सम्बन्धी एक और संशोधन किया गया था। इसके बाद अप्रैल 2016 में एक फ्रेश टेंडर आमंत्रित किया गया था। जब इस संशोधन की पिछले वर्ष पड़ताल के दौरान उजागर हुआ था कि 22 मार्च 2016 को टेंडर की शर्तों में जो बदलाव किए गए थे उसके पीछे किसी निजी कागज सप्लाई करने वाली कंपनी को फायदा पहुंचाने का बड़ा खेल था।
उसमें साफ-साफ उल्लेख था कि पाठ्य पुस्तक की छपाई में काम आने वाला कागज ऐसी मिल से हो जिसकी प्रतिदिन की वास्तविक उत्पादन क्षमता न्यूनतम 200 मीट्रिक टन हो। इस शर्त के चलते ऐसी कंपनी टेंडर प्रक्रिया के दायरे में आ गई जो घाटे में चल रही थी और बंद होने वाली थी। लेकिन पिछले वर्ष जो कागज मिलें टेंडर के दायरे में आईं उनकी प्रतिदिन की वाटर मार्क पेपर के उत्पादन की क्षमता को न देखकर प्रतिदिन की कुल उत्पादन क्षमता को टेंडर में मांगा गया, जबकि वाटर मार्क पेपर का प्रोडक्शन करने में ये सारी कंपनियां काफी लो परफॉर्मर थीं। गौरतलब है कि इस बार भी इन्हीं कंपनियों से प्रकाशकों को कागज सप्लाई करने को कहा गया है, जबकि इन कंपनियों की स्थिति पिछले साल की तरह ही दयनीय है।
75 से 90 दिनों में कैसे होगी किताबों की सप्लाई
पाठ्य पुस्तकों की छपाई का काम टेंडर आवंटन के 75 से 90 दिनों में पूरा करके स्कूलों में इनकी सप्लाई होनी चाहिए। लेकिन टेंडर प्रक्रिया में देरी के चलते जुलाई के पहले हफ्ते में इन किताबों के वितरण पर पहले ही ग्रहण लग चुका है। इसके बाद पुरानी कंपनियों से कागज की आपूॢत के चलते पिछले वर्ष की तरह प्रकाशक को कागज मिलने में देरी होने की पूरी संभावना है। ऐसे मे किसी भी सूरत में प्रदेश के लाखों बच्चे नई पाठ्य पुस्तकों से लंबे समय तक वंचित रहने वाले हैं।
पाठ्य पुस्तकों की छपाई से जुड़े प्रकाशक की मानें तो कई कारणों से किताबों की छपाई का काम विभाग के गले की हड्डी बनने वाला है। पहला तो यह कि जब विभाग में निचले स्तर से केवल वॢजन पल्प युक्त कागज पर छपाई की बात प्रस्तावित थी तो विभाग में किस उच्चाधिकारी के इशारे पर पिछले साल से बैम्बू अथवा वुड बेस्ड कागज पर छपाई की शर्त मंजूर की गई क्योंकि इतनी बड़ी मात्रा में बैम्बू अथवा वुड बेस्ड वॉटरमार्क कागज का उत्पादन करके उसकी सप्लाई प्रकाशक को करना किसी भी कागज मिल के लिए टेढ़ी खीर है। इसके अलावा यह इकोफ्रेंडली भी नहीं है जबकि उच्च न्यायालय अपनी टिप्पणी में पहले ही कह चुका है कि पुस्तकों की छपाई में प्रयोग होने वाला कागज इकोफ्रेंडली होना चाहिए।
दूसरा आखिर ऐसा क्या कारण रहा कि जिन प्रकाशकों पर पिछले साल आधी अधूरी किताबें छापने और समय से सप्लाई न करने का आरोप था, उनको ही टेंडर में आश्चर्यजनक रूप से क्वालीफाई कर दिया गया। तीसरा जिन मिलों को कागज सप्लाई करने का ठेका दिया गया उनके वाटर मार्क उत्पादन करने की क्षमता को नजरअंदाज करके उनकी कुल उत्पादन क्षमता का हर जगह जिक्र किया गया। वाटरमार्क पेपर उत्पादन करने में अधिक समय लगता है और इस प्रकार के पेपर की उत्पादन क्षमता हर मिल में वास्तविक उत्पादन क्षमता से बहुत कम होती है। सवाल यह उठता है कि क्या अधिकारियों को इस बात की जानकारी नहीं थी।
= 13 करोड़ के करीब किताबें हैं छपनीं
= 405 करोड़ के आसपास काम की लागत
= 2015-16 में 1.04 रुपये की दर से हुई थी छपाई
=-2016-17 में 1.38 रुपये की दर से हुई थी छपाई
= 2017-18 में 1.85 रुपये की दर से होनी है छपाई
= मनमाफिक प्रकाशक और कागज कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए हुआ टेंडर
= दिसंबर 2016 का टेंडर 4 मई 2017 को किया गया फाइनल
= पिछले साल की फर्मों को ही मिला टेंडर
= 'बुर्दा ड्रंक' कंपनी को विशेष लाभ देने की तैयारी में अधिकारी
क्या कहते हैं जिम्मेदार
पाठ्य पुस्तक अधिकारी की सहायक गीता पंत का कहना है कि टेंडर प्रक्रिया निष्पक्ष रूप से पूरी की गई है। हालांकि टेंडर में थोड़ी देरी जरूर हुई, लेकिन हमारा प्रयास रहेगा कि किताबों का वितरण समय पर हो। लखनऊ के अलावा हरदोई, सीतापुर, उन्नाव समेत अलग-अलग जिलों के शिक्षा विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों से संपर्क करने पर पता चला कि पिछले शैक्षिक सत्र में तो जनवरी 2017 तक किताबों की आपूॢत होती रही। कहीं-कहीं तो फरवरी और मार्च तक भी आपूर्ति हुई है।
सचिव बेसिक शिक्षा अजय कुमार सिंह ने बताया कि यह सही है कि किताबों की छपाई के टेंडर आवंटन में थोड़ी देरी हुई है। लेकिन इस बार हर हाल में किताबों का समय से वितरण सुनिश्चित किया जाएगा। पिछले साल हिन्दुस्तान पेपर मिल द्वारा समय से वाटरमार्क पेपर न उपलब्ध करवाने से देरी हुई थी। इस वर्ष प्रकाशकों व मिलों दोनों को समय पर काम पूरा करने को कहा गया है। जिस प्रकाशक ने इसमें देरी की उससे सख्ती से निपटा जाएगा। पाठ्य पुस्तकों को जल्द से जल्द छपवाकर उनका वितरण करवाया जाएगा।
कैबिनेट मंत्री ने स्वीकारा - पिछली सरकार में हुआ था खेल
कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने १८ मई को सदन में कहा कि पिछली सरकार में बच्चों को किताब बांटने में बड़ा खेल हुआ है। कैग की रिपोर्ट भी इसकी ओर इशारा कर रही है कि हमारी सरकार इसकी जांच कराएगी।
मेरठ : फटी-पुरानी किताबों के सहारे हो रही पढ़ाई
1 अप्रैल से नया सत्र प्रारंभ हो गया है अब मई का महीना खत्म होने को है लेकिन अभी तक भी मेरठ के परिषदीय स्कूलों में किताबें नहीं पहुंच पायीं हैं। जिले के बेसिक शिक्षा अधिकारी इकबाल सिंह को इस बारे में कुछ पता ही नहीं है। यही नहीं, उनका यह भी कहना है कि किताबें न होने से पढ़ाई में कोई बाधा नहीं आ रही है, 'क्योंकि एक्चुअल टीचिंग में टेक्स्ट बुक्स जरूरी नहीं होती हैं। दरअसल, पिछले सत्र में भी नई किताबें दिसम्बर तक आई थीं।
इसके मद्देनजर सभी परिषदीय स्कूलों ने अगली कक्षा में प्रवेश करने वाले छात्रों से उनकी किताबें जमा करा ली थीं। यही किताबें नए छात्रों को दी जा रही हैं। शहर की घनी आबादी वाली बस्ती देहली रोड स्थित जूनियर हाईस्कूल, कृष्णपुरी के शिक्षक मधुसूदन कौशिक ने बताया कि ज्यादातर किताबों के पन्ने फटे हुए हैं। कई बच्चों की किताबें खो गई हैं। ऐसे में पुरानी किताबों को एकत्र करके दूसरे बच्चों में बांटना बेहद कठिन है।
एक अन्य शिक्षक ने कहा कि नई किताबों के प्रति बच्चों में अधिक क्रेज रहता है। जिससे वे पढ़ाई में अधिक रुचि लेते हैं। अगर पुरानी किताबें बच्चों को दी जाएं तो उनमें पढ़ाई की रुचि नहीं जगती। पूर्व माध्यमिकविद्यालय,कसेरूखेड़ा में इस साल कम बच्चों ने एडमिशन लिया है। इसका फयादा यह हुआ है कि सबको पिछले सत्र की बची नयी किताबें मिल गई हैं। प्रधानाचार्य सविता शर्मा बताती हैं कि पिछले साल नई किताबें छात्रों की संख्या के मुकाबले अधिक संख्या में दिसम्बर तक मिली थीं। इन्हीं को हमने इस सत्र के बच्चों में बांट दी हैं। अगर जुलाई तक स्कूल में नए एडमिशन ज्यादा हो गए तो मुश्किल हो जायेगी।
जौनपुर : पिछली बार फरवरी में बंटी थीं किताबें
नये सत्र के लिये किताबें अभी तक जिले में ही नहीं पहुंचीं हैं। विकास खन्ड धर्मापुर के प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक महेन्द्र प्रजापति ने बताया कि पास हो गए बच्चों से पुरानी किताबें लेकर बच्चों में बांटा गया है। इन्होंने बताया कि पिछले साल जनवरी में किताबें आयीं थीं। वितरण होते फरवरी बीत गया था। करंजा कलां ब्लाक के शकर मंडी प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका सुनीता देवी ने भी यही बात दोहरायी। बेसिक शिक्षा अधिकारी शिवेन्द्र प्रताप सिंह का कहना है कि किताब छापने के लिए अभी शासन स्तर पर टेन्डर ही नहीं हुआ है। ये सरकारी काम है अपनी गति से होता है। उन्होंने कहा कि एक पत्र सचिव स्तर से जारी हुआ है कि पुरानी किताबों से बच्चो को पढ़ाया जाये, उसका अनुपालन हो रहा है।
गोरखपुर : क्लास नयी पर किताबें पुरानी
गोरखपुर मंडल के सभी चार जिलों के बच्चे पहली अप्रैल से शुरू हुए शैक्षणिक सत्र में स्कूल तो जा रहे हैं लेकिन बिना किताबों के। कुछ भाग्यशाली हैं जिन्हें पुरानी किताबें मिल गई हैं। शिक्षक भी पढ़ाई की खानापूॢत कर रहे हैं। अफसरों का कहना है कि शिक्षक स्मार्ट फोन में किताबों को डाउनलोड कर पढ़ाएं लेकिन वह यह नहीं बता पा रहे हैं कि किताबों वाला मोबाइल एप डाउनलोड कैसे होगा।
पीएसी कैंप बिछिया के प्राथमिक विद्यालय में 81 बच्चों का पंजीकरण है। पिछले साल की तुलना में 69 बच्चे घट गए हैं। शिक्षिकाओं ने बच्चों की पुरानी किताबों को नये बच्चों में बांट दिया है। किसी को दो किताबें मिली हैं तो किसी को तीन। चौथी में पढऩे वाली काजल बताती है कि मैडम जी ने एक ही किताब दी है।
प्राधानाचार्य सरिता देवी का कहना है कि पिछले साल सितम्बर में किताबें मिली थीं। अबकी बार कब मिलेगीं कोई ठिकाना नहीं है। बच्चे पुरानी किताबों से पढऩा भी नहीं चाहते। पहली कक्षा के 14 छात्र-छात्राओं को शिक्षिकाओं द्वारा बस स्टेशनों पर बिकने वाली 12 रुपये की किताबें दी गई हैं। चौरीचौरा क्षेत्र के पूर्व माध्यमिक विद्यालय बौठा में कुल 54 बच्चों का पंजीकण है। इनमें से आधे के पास भी पूरी किताबें नहीं हैं। आठवीं में पढऩे वाली करिश्मा कहती है कि कान्वेंट के बच्चों को नई किताबें पहले ही खरीदनी पड़ती है। हमें पुरानी किताबें भी पूरी नहीं मिलती है। प्रधानाचार्य प्रवीण जायसवाल का कहना है कि पिछली बार छमाही परीक्षा होने के बाद किताबें मिली थीं।
आजमगढ़ : पढ़ाई के नाम पर बस कोरम ही पूरा हो रहा
जिले में पिछले साल कक्षा एक से पांच तक के पंजीकृत 3,15,759 बच्चों और कक्षा 6 से 8 तक के 1,40,575 बच्चों को मुफ्त पाठ्य पुस्तकें दी गईं लेकिन बहुत देरी से। इस बार भी वही हालात हैं। इस बार कक्षा एक से पांच तक के बच्चों की संख्या पिछले वर्ष की अपेक्षा घटी है जबकि कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों की संख्या कुछ बढ़ी है। इस बार कक्षा एक से कक्षा पांच तक के 2,96,343 बच्चों को व कक्षा 6 से 8 तक के 1,41,527 बच्चों को किताबें दी जानी हैं।
आजमगढ़ के सर्व शिक्षा अभियान के सहायक वित्त एवं लेखाधिकारी विश्वनाथ का कहना है कि अभी तक यह तय नहीं हुआ है कि कौन सी एजेन्सी किताबें देगी। उन्होंने यह जरूर कहा कि शायद इस बार जुलाई के अंत तक बच्चों के हाथ में किताब पहुंच जायें।
बहरहाल, जूनियर हाई स्कूल सरायमीर में जूनियर कक्षा में 230 विद्यार्थी पंजीकृत हैं, जिसमें 104 मौके पर मौजूद मिले। पूछे जाने पर शिक्षक अभिमन्यु यादव ने कहा कि बच्चों से पुरानी किताबें जमा करवा लेते हैं। जब तक नई किताबें नहीं आ जाती तब तक उन्हीं से पढ़ाते हैं। बच्चों से बात करने पर कक्षा 6 के आर्यन, राजवीर व सोनिया, कक्षा 7 के अरबाज अहमद व नवज्योति कुमारी, कक्षा 8 के आफताब आलम व निहाल आदि ने बताया कि कुछ किताबें वे लोग अपने गांव व स्कूल के बच्चों से मांग कर लाये हैं।
इस्लामिया प्राथमिक विद्यालय मेंहनगर में पंजीकृत हैं 117 बच्चे लेकिन उपस्थित थे 53। कुछ बच्चों के पास एक-दो पुरानी चिथड़ा हो चुकी किताबें थीं। प्रधानाध्यापक अब्दुल रशीद ने कहा कि किताबें न आने से काफी दिक्कतें आ रही है। मांगने पर कुछ अभिभावक झगडऩे पहुंच गये।