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तीन दोस्तों ने शुरू किया स्टार्ट-अप: दो साल में खड़ी कर दी 75 लाख की कंपनी

raghvendra
Published on: 27 July 2018 9:36 AM GMT
तीन दोस्तों ने शुरू किया स्टार्ट-अप: दो साल में खड़ी कर दी 75 लाख की कंपनी
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लखनऊ: दिल्ली के एक मल्टी नेशनल कम्पनी (एमएनसी) में काम करने वाले तीन दोस्तों ने जॉब छोडक़र 35 लाख रूपये से ट्रैक्यूला सर्विसेज नाम से अपना स्टार्ट -अप शुरू किया। उनकी कम्पनी ढूंढो ऐप नाम से ट्रैकिंग सॉफ्टवेयर बनाती है। दो साल के अंदर ही उनकी कम्पनी का सलाना टर्न ओभर 75 लाख रुपये से ऊपर पहुंच गया है। आज उनकी कम्पनी 14 शहरों में अपनी सेवाएं दे रही है।

35 लाख रुपये से शुरू किया स्टार्ट -अप

रोहित का कहना है कि इस बिजनेस को शुरू करने में 35 लाख रुपये का इन्वेस्टमेंट किया। यह रकम परिवार और दोस्तों से जुटाई गई। हमने व्हीकल ट्रैकिंग सिस्टम के लिए ढूंढो ऐप बनाया। इंटरनेट और स्मार्टफोन के यूजर्स बढऩे से हमारे बिजनेस को फायदा मिला।

वे देश भर के 40 से 45 स्कूलों को अपनी सर्विस दे रहे हैं। इसके जरिए स्कूल के 20,000 से ज्यादा अभिभावक सर्विस का उपयोग कर रहे हैं। इसके जरिए अभिभावक स्कूल बस को ऑनलाइन ट्रैक कर सकते हैं।

स्मार्ट सिटीज को भी दे रहे सर्विस

रोहित के मुताबिक, ट्रैक्यूला सर्विसेज हैदराबाद में बन रहे स्मार्ट सिटीज को भी सर्विसेस प्रोवाइड कर रही है। ट्रैक्यूला सर्विसेस फिलहाल 14 शहरों में ऑपरेशनल है। इसमें दिल्ली, अजमेर, आगरा, हैदराबाद, नैलोर, बेंगलुरू, कोयंबटूर, विशाखापट्टनम, नागपुर, वारंगल शामिल है। इसके अलावा 500 व्हीकल को ट्रैकिंग सर्विस उपलब्ध करा रहा है।

हर साल कर रहे 75 लाख की कमाई

रोहित और उनके दोस्त अब स्मार्ट ट्रांसपोर्टेशन पर फोकस बढ़ा रहे हैं। उनका कहना है कि कंपनी ब्रेक इवन यानी मुनाफे में आ चुकी है। सवा दो साल में कंपनी का टर्नओवर 75 लाख रुपये हो चुका है। इस ऐप का हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर इन्होंने इन हाउस डेवलप किया है, जिससे कॉस्ट खासी बच गई।

ऐसे आया स्टार्ट -अप शुरू करने का आइडिया

कंपनी के एक फाउंडर मेंबर रोहित जैन बताते है, आए दिन सुनने या पढऩे को मिलता है कि स्कूल बस किसी दुर्घटना का शिकार हो गई या फिर ड्राइवर बस को गलत रूट पर ले गया। ऐसी घटनाओं के कारण पैरेंट्स अपने बच्चों को लेकर चिंता में रहते हैं। इस कारण ही सरकार ने स्कूल बसों में कैमरा और जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम अनिवार्य कर दिया है। बिजनेस के लिए आइडिया खोज रहे हम तीन दोस्तों मैं, मनीष सेवलानी और स्वप्निल तामगाडगे को सरकार के फैसले में मौका दिखा और हमने अपनी बढिय़ा नौकरी छोडक़र 2016 में ट्रैकिंग सॉफ्टवेयर के फिल्ड में काम करने का फैसला किया।हम तीनों ने एनआईआईटी वारंगल से ग्रैजुएशन किया है। एक ही कॉलेज में पढऩे की वजह से हमारी दोस्ती हो गई थी। ग्रैजुएशन करने के बाद हमने मल्टी नेशनल कंपनी में काम किया। हालांकि नौकरी के साथ अपना बिजनेस शुरू करने के लिए आइडिया की तलाश जारी रही।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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