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महिला दिवस: कुछ यूं तय किया है नशे में धुत रहने वाली महिला मजदूर ने राष्ट्रपति पदक तक का सफर

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Published on: 8 March 2017 8:09 AM GMT
महिला दिवस: कुछ यूं तय किया है नशे में धुत रहने वाली महिला मजदूर ने राष्ट्रपति पदक तक का सफर
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दलित बेटी बहराइच

राहुल यादव

बहराइच: देश की एक ऐसी दलित बेटी, जिसने आजादी के 68 सालों के बाद भी देश के भीतर गुलाम बनकर नारकीय जीवन जी रहे डेढ़ दर्जन से अधिक गांवों के हजारों वनवासियों को जीने का अधिकार दिलवाकर एक नया जीवन तो दिया ही, साथ ही नशाखोरी के प्रति बड़ा अभियान चलाकर हजारों लोगों को शराब के नशे से दूर कर दिया। फर्क सिर्फ इतना था कि 1947 के पहले लोग अंग्रेजों और मुगल शासकों के गुलाम थे और ये ग्रामीण आजाद देश के भीतर अंग्रेजी सरकार द्वारा बनाए गए वन प्रबंधन नियमों के तहत गुलाम थे।

इन्हीं गुलाम महिलाओं में एक वो भी थी, जिसका नाम भानमती है। 38 वर्ष पूर्व मऊ जिले से ब्याह कर भानमती सिर्फ इस लिए लाई गई थी ताकि अपने पति और ससुरालीजनों के साथ गुलामी की बेगारी प्रथा के कामो में पति का हाथ बंटा सके। शादी के बाद ससुराल पहुंची भानमती ने शुरुआती दौर में वनवासी ग्रामीणों की तरह ही खुद को ढालने का प्रयास किया। भानमती पति के साथ वन विभाग में बेगारी प्रथा करने के बाद शाम को शराब के नशे में धुत्त होकर सो जाती। पेट की भूख और परिवार पालने की जिम्मेदारी ने भानमती को ना जाने क्या-क्या करने को विवश कर दिया। भानमती पूरे दिन जंगल में लकड़ियों को बीनती और उसे बेचकर परिवार का भरण-पोषण करती किन्तु उसके दिल में गुलाम होने का दर्द उसे बार बार झकझोरते हुए बदलने पर मजबूर करता था। लेकिन मजबूर भानमती, करती भी तो क्या?

आगे की स्लाइड में जानिए और क्या-क्या संघर्ष झेले हैं भानमती ने

गरीब परिवार के पेट की आग को बुझाने के लिए भानमती को बिछिया रेलवे स्टेशन पर पल्लेदारी का काम भी करना पड़ा। इसी बीच वन विभाग की ओर से लगातार मिल रही धमकियों के डर से भानमती के पति ने कलकत्ता जाकर जूट मिल में मजदूरी करना शुरू कर दिया। उसके बाद भानमती ने वनाधिकार आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की और सार्वजनिक वितरण प्रणाली, नशाखोरी, बाल विवाह, दहेज प्रथा जैसी कुरीतियों के खिलाफ संघर्ष किया।

वर्तमान में भानमती महिला अधिकार मंच के जरिए क्षेत्र के 10 गांवों में निवासरत करीब तीन हजार आधी आबादी की अगुवाकार भी हैं। भानमती के संघर्षों व उनके जज्बे को सराहते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने उन्हें देश की सौ सर्वश्रेष्ठ महिलाओं में शुमार किया। 22 जनवरी को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने उन्हें दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में पुरस्कृत किया। भानमती का कहना है कि लोगों को उनका अधिकार दिलाने के लिए वह संघर्ष करती रहेंगी।

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ये है भानमति का नारा

भानमती के सार्थक और फौलादी इरादे ने सबसे बड़ा काम नशाखोरी को समाप्त करने का किया। दरअसल बेगारी प्रथा और गुलामी ने वनवासियों को शराब का आदी बना दिया था, महिला पुरुष के अलावा बच्चे भी शराब के नशे में हर वक्त चूर नजर आते थे। दिन भर मजदूरी करने के बाद शाम के समय बड़ी-बड़ी शराब की भट्ठियां धधकती थीं। लेकिन अचानक जब सूचना अधिकार के प्रयोग के बाद जब भानमती को पता चला कि जीवन की सबसे अधिक पूंजी नशेखोरी में बर्बाद हो रही है, तभी से भानमती ने ठान लिया कि अब कोई शराब का सेवन नहीं करेगा। जिसका नतीजा यह निकला की आज कैलाश नगर नाम का इलाका पूरी तरह शराब मुक्त है।

भानमती के फौलादी इरादे ने एक नारे को बुलंद किया 'जीने का अधिकार दो वरना गोली मार दो' और इस नारे को भानमती ने इतना फैलाया कि बच्चे बच्चे के मुंह से यही नारा निकलने लगा, जिसके बाद से गुलाम ग्रामीणों ने भानमती के मिशन में सहयोग करना शुरू कर दिया। अनपढ़ होते हुए भी भानमती के बनाए हुए गीत ने गुलाम आंदोलनकारियों के संघर्ष में उत्तेजना फैलाने का काम किया।

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