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छात्रसंघ चुनाव स्थगित करने पर उठ रहे सवाल

seema
Published on: 14 Sep 2018 7:38 AM GMT
छात्रसंघ चुनाव स्थगित करने पर उठ रहे सवाल
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छात्रसंघ चुनाव स्थगित करने पर उठ रहे सवाल

गोरखपुर। सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर में विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव मारपीट और लाठीचार्ज के बाद आखिरकार स्थगित कर दिया। पूरे घटनाक्रम को लेकर विरोधी दल भाजपा पर गम्भीर आरोप लगा रहे हैं। विरोधियों का आरोप है कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पूरे पैनल की संभावित हार को देखते हुए प्रशासन ने साजिश के तहत चुनाव को स्थगित करा दिया।

सवाल यह है कि मारपीट और हिंसा के आरोपों पर तो तभी चुनाव को रद्द घोषित कर देना चाहिए था जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के अध्यक्ष पद के प्रत्याशी के काफिले में गोलियां तड़तड़ाई थीं, लेकिन तब पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर मामले को रफा-दफा कर दिया। विवि प्रशासन की नींद तब भी नहीं टूटी जब चुनाव में पांच हजार की खर्च सीमा के बाद प्रत्याशी 40 से 50 फाच्र्यूनर गाडिय़ों के साथ पर्चा दाखिला करने पहुंचे थे। उनकी दबंगई का आलम यह था कि वह काफिले को फेसबुक पर लाइव प्रसारित कर रहे थे। असल में गोरखपुर उपचुनाव में हार के बाद भाजपा के लिए छात्रसंघ चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल बन गया था। इसीलिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का लंबे समय से झंडा उठा रहे अनिल दुबे की जगह सपा पृष्ठिभूमि से जुड़े रंजीत सिंह को पैनल में शामिल करा दिया गया।

आरोप लगा कि पूर्वांचल के ही एक बड़े ठाकुर नेता के कहने पर रंजीत सिंह को अभाविप का बैनर मिला था। भाजपा के जोर के बाद समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस ने भी छात्रसंघ चुनाव को बड़े राजनीतिक संकेत और संदेश के रूप में देखा। समाजवादी पार्टी ने ऐसे प्रत्याशी को टिकट थमा दिया जो दलितों की राजनीति करती हैं। सवर्णों के खिलाफ आग उगलने के कारण ही सछासं प्रत्याशी अन्नू प्रसाद ने सुर्खियां बटोरी थीं। उनकी जीत सुनिश्चित करने का जिम्मा खुद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उठा रखा था। इसीलिए यादव बिरादरी में जबर्दस्त पैठ रखने वाले इन्द्रेश यादव को पर्चा वापसी कराने के लिए लखनऊ बुला लिया गया। गोरखपुर के सपा जिलाध्यक्ष प्रहलाद यादव खुद इन्द्रेश को लेकर अखिलेश यादव के पास पहुंच गए थे। हालंाकि गोरखपुर में इन्द्रेश यादव के अपहण की सूचना फैलाकर सुर्खियां बटोरी गयीं। आखिरकार अखिलेश यादव से मिलकर लौटने के बाद इन्द्रेश यादव ने अन्नू प्रसाद के समर्थन का ऐलान कर दिया। करीब 60 फीसदी दलित, पिछड़ा और मुस्लिम वोट बैंक को देखते हुए सपाई दिग्गज अन्नू की जीत की सुनिश्चित मान रहे थे।

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घटनाक्रम से उठ रहे सवाल

छात्रसंघ चुनाव में अतीत के अनुभव बताते हैं कि कोई भी छात्रनेता यूनिवर्सिटी के विधि विभाग में हुड़दंग नहीं करता है। चुपचाप प्रचार कर प्रत्याशी वापस आ जाते हैं, लेकिन 11 सितम्बर को एबीवीपी अध्यक्ष प्रत्याशी रंजीत सिंह के समर्थकों ने न सिर्फ क्लास के बाहर नारेबाजी की बल्कि आपत्ति जताने पर एक शिक्षक से भिड़ गए। यह बात जब अनिल दुबे और उनके समर्थकों के बीच पहुंची वह बड़ी संख्या में विधि विभाग पहुंच गए। दोनों गुटों में जमकर मारपीट हुई। दोनों गुटों ने एक दूसरे की गाडिय़ों में जमकर तोडफ़ोड़ की। विश्वविद्यालय गेट पर हुई मारपीट के बाद पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। अध्यक्ष प्रत्याशी अनिल दुबे को बेरहमी से पीटा गया। तेजी से बदलते घटनाक्रम के बीच शिक्षक संघ ने चुनाव कराने से मना कर दिया। कुलपति ने आपात बैठक बुलाकर छात्रसंघ चुनाव को स्थगित कर परिसर को पुलिस के हवाले कर दिया। 12 सितम्बर को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और सछासं के पदाधिकारियों और प्रत्याशियों ने प्रशासनिक भवन पर धरना देकर आरोप-प्रत्यारोप लगाया। सछासं की अध्यक्ष पद प्रत्याशी अन्नू प्रसाद ने विवि प्रशासन पर साजिश के तहत चुनाव रद्द करने का आरोप लगाया है। वह कहती हैं कि हार सुनिश्चित देख भाजपा के बड़े नेताओं के इशारे पर चुनाव को स्थगित किया गया है।

अमन की जीत के साथ बदल गई परम्परा

गोरखपुर यूनिवर्सिटी में पिछले एक दशक से छात्रसंघ चुनाव नहीं हो रहा था। सपा ने सत्ता के अंतिम वर्ष में गोरखपुर में छात्रसंघ चुनाव को हरी झंडी दी थी। गोरखपुर विश्वविद्यालय की छात्रसंघ की राजनीति ब्राह्मïण और राजपूत राजनीति के इर्दगिर्द घूमती रही है,लेकिन समाजवादी छात्रसंघ के प्रत्याशी अमन यादव ने सभी कयासों और अटकलों को खारिज कर जीत हासिल की तो सभी चौंक गए थे।

वह गोरखपुर विश्वविद्यालय के पहले यादव अध्यक्ष बने थे। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को सिर्फ उपाध्यक्ष पद पर ही कामयाबी मिली थी। बीते वर्ष शैक्षणिक सत्र में भी यूनिवर्सिटी प्रशासन ने छात्रसंघ चुनाव की तैयारी की थी। घोषणा के लिए प्रदेश सरकार में डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा को बुलाया गया था, लेकिन ऐन मौके पर उन्होंने चुनाव को रद्द करने की घोषणा कर दी। इसके बाद छात्रों ने आंदोलन किया, लेकिन विवि प्रशासन ने छात्रसंघ चुनाव नहीं कराया।

चालू सत्र में लंबे आंदोलन के बाद कुलपति ने चुनाव की घोषणा तो कर दी, लेकिन चुनाव के भविष्य को लेकर हमेशा संशय के बादल छाये रहे। डीडीयू प्रशासन ने इस बार उच्च शिक्षा मंत्री के आदेश को दरकिनार कर चुनाव कराने का निर्णय लिया था। चुनाव घोषित करने से पहले कुलपति प्रो.वीके सिंह ने कहा था कि लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के मुताबिक चुनाव होगा। एक बार चुनाव लड़ चुके नेताओं को चुनाव लडऩे से मना कर दिया गया। बीते सत्र के करीब 400 विद्यार्थी, जिनका सत्र लेट है, उन्हें भी चुनाव प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया। विवि ने तमाम नियम कड़ाई से पालन कराए मगर शहर से लेकर कैंपस तक में धन व बाहुबल का प्रदर्शन नहीं रुक पाया। यह सब राजनीतिक दलों की शह पर हो रहा था।

पूरे प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच की मांग

13 सितम्बर को प्रस्तावित चुनाव के तीन दिन पहले यानी 10 सितम्बर को केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के विधायक पुत्र पंकज सिंह ने मुख्यमंत्री के घर में भाजपा की जीत सुनिश्चित करने का जिम्मा संभाला। अगल-अलग वर्गों के साथ गोरखपुर के सर्किट हाउस में बैठकों का दौर चला, लेकिन हर तरफ से निराशा ही हाथ लगती दिखी। नगर निगम के 30 से अधिक भाजपा पार्षदों ने तो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पैनल को जिताने की बात पर अपनी ही भड़ास निकाल डाली। पार्षदों ने पंकज सिंह के समक्ष स्पष्ट कहा कि पिछले 9 महीने में वार्डों में विकास की एक ईंट नहीं रखी गयी। आखिर किस मुंह से लोगों से वोट मांगेंगे। इसकी सूचना जब भाजपा के रणनीतिकारों को लगी तो उन्हें उपचुनाव की हार जैसी समीक्षा को लेकर चिंता सताने लगी। मतगणना के चंद घंटे पहले हुए बवाल को लेकर अध्यक्ष प्रत्याशी अनिल दुबे और प्रिंस सिंह कहते हैं कि एबीवीपी ने हार को देखते हुए पूरी साजिश रची जिसमें शिक्षकों से लेकर छात्रों तक को मोहरा बनाया गया। पूरे प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए। आखिर राजनीति की पौधशाला में सियासी तेजाब क्यों डाला जा रहा है।

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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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