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विद्यार्थियों को सिखाए स्वस्थ रहने के गुर, प्राणायाम है शरीर के लिए संजीवनी
शारीरिक रूप से अगर फेफड़े का महत्व समझना हो तो यह शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। इसे ऐसे समझें कि हमें मिलने वाला जीवन सांस से शुरू होकर सांस पर खत्म होता है। पहली सांस जब आती है तो हम अपना जीवन शुरू करते हैं और आखिरी सांस जब चली जाती है तो हमारी मृत्यु हो जाती है, यही जीवन का दर्शन है।
स्वाति प्रकाश
लखनऊ: शारीरिक रूप से अगर फेफड़े का महत्व समझना हो तो यह शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। इसे ऐसे समझें कि हमें मिलने वाला जीवन सांस से शुरू होकर सांस पर खत्म होता है। पहली सांस जब आती है तो हम अपना जीवन शुरू करते हैं और आखिरी सांस जब चली जाती है तो हमारी मृत्यु हो जाती है, यही जीवन का दर्शन है। फेफड़े को सबसे महत्वूपर्ण इसलिए कहा गया है, क्योंकि यही पूरे शरीर को ऑक्सीजन उपलब्ध कराता है और यही ऑक्सीजन जब एटीपी से मिलती है तो शक्ति प्रदान करती है तभी हमारे सभी अंग काम करते हैं।
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यह बात किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्व विद्यालय के पल्मोनरी विभाग के हेड प्रो सूर्यकांत ने रविवार को लखनऊ विश्व विद्यालय में लगे राष्ट्रीय सेवा योजना के शिविर में 'हम स्वस्थ कैसे रहें' विषय पर दिये अपने व्याख्यान में विद्यार्थियों को बतायी। उन्होंने कहा कि ऑक्सीजन हमें वृक्षों से मिलती है, हमें इन पेड़-पौधों का शुक्रगुजार होना चाहिए, क्योंकि वे हमें जीवित रहने के लिए जीवन भर ऑक्सीजन प्रदान करते हैं।
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उन्होंने कहा कि हम एक बार सांस लेने में करीब आधालीटर सांस लेते हैं, लेकिन अगर आपके फेफड़े की कार्यक्षमता अच्छी है तो जब आप भागते-दौड़ते व्यायाम करते हैं तो दोगुना-तीन गुना सांस भी ले सकते हैं, लेकिन यह तभी हो सकता है जब आप प्राणायाम कर रहे हों। प्राणायाम या व्यायाम करने से सांस की जरूरत बढ़ती है और आपके फेफड़े की कार्यक्षमता बढ़ती है। उन्होंने कहा कि प्राणायाम का मतलब है प्राण प्लस आयाम। प्राण का मतलब है प्राण वायु और आयाम का अर्थ है विस्तार तो हम साधारण में आधा लीटर सांस लेते हैं तो प्राणायाम से हम इसका विस्तार करके डेढ़ लीटर तक सांस ले सकते हैं, इस विस्तार करने को ही प्राणायाम कहा जाता है।
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प्राणायाम कितना जरूरी है इसे बताते हुए उन्होंने बताया कि फेफड़े में पायी जाने वाली एल्व्यूलाई दरअसल वह सूक्ष्म संरचना है जो माइक्रोस्कोप से ही देखी जा सकती हैं, इसी में ऑक्सीजन जाती है जहां से यह ब्लड सरकुलेशन में जाती है। इस एल्व्यूलाई की संरचना मधुमक्खी के छत्ते के आकार की होती है यह ऑक्सीजन का आदान-प्रदान करती है, यानी ऑक्सीजन शरीर में जाती है और कार्बन डाई ऑक्साइड बाहर निकालती है।
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उन्होंने बताया कि जो लोग कोई प्राणायाम या व्यायाम नहीं करते हैं उनके एक तिहाई एल्व्यूलाई सुसुप्ता अवस्था में पड़े रहते हैं, और बहुत दिनों तक इन्हें आप जागरूक न करें तो यह सुसुप्ता अवस्था में ही चले जाते हैं। इन्हें खोलने के लिए आपको गहरी सांस लेना जरूरी है, प्राणायाम करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि प्राणायाम या व्यायाम करना बहुत ही आवश्यक है, यह फेफड़े की कार्यक्षमता यानी स्टेमिना को बढ़ाते हैं।