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वरिष्ठता सूची को चुनौती देने वाली रैंकर्स की याचिका खारिज
लखनऊ : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने विभागीय परीक्षा पास कर सब-इंस्पेक्टर पद पर प्रोन्नत हुए रैंकर्स द्वारा दाखिल याचिका को खारिज कर दिया है। याचिका में वर्ष 2016 की विभागीय वरिष्ठता सूची को चुनौती दी गई थी। याचियों की मांग थी कि वर्ष 1999 में सीधी भर्ती की प्रक्रिया के साथ ही उनकी भर्ती प्रक्रिया भी शुरू हुई थी इसलिए उन्हें सीधी भर्ती से नियुक्त हुए सब-इंस्पेक्टरों के बराबर ही वरिष्ठ माना जाना चाहिए।
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यह आदेश जस्टिस अश्वनी कुमार मिश्रा की बेंच ने राम बाबू व 93 अन्य समेत पांच याचिकाओं पर पारित किया। याचिकाओं में कहा गया था कि वर्ष 1999 में सब-इंस्पेक्टर पद पर भर्ती प्रक्रिया शुरू की गईं। जिसमें रिक्त पदों में से 50 फीसदी पद सीधी भर्ती से, 25 फीसदी पद हेड कांस्टेबिल्स के पदोन्नति से व 25 फीसदी पद विभागीय परीक्षा द्वारा भरे जाने थे। सीधी भर्ती में सफल हुए अभ्यर्थियों को 29 अगस्त 2001 को नियुक्ति आदेश जारी हो गया और उनकी ट्रेनिंग 12 सितम्बर 2002 को पूरी हो गई। लेकिन विभागीय परीक्षा से भर्ती का मामला कोर्ट में फंस गया। हाईकोर्ट के आदेश पर वर्ष 2005 में मुख्य लिखित परीक्षा आयोजित की गई। जिसका परिणाम आते ही पुनः कुछ असफल अभ्यर्थी कोर्ट चले गए।
मामले का निस्तारण होने के बाद 31 मार्च 2008 को रैंकर्स ने अपनी ट्रेनिंग पूरी की व 1 अप्रैल 2008 को उन्हें नियुक्ति आदेश प्राप्त हुआ। बावजूद इसके 13 नवम्बर 2016 को जारी वरिष्ठता सूची में सीधी भर्ती से नियुक्त हुए सब-इंस्पेक्टरों को याचियों से अधिक वरिष्ठ माना गया है जबकि दोनों की प्रक्रिया एक साथ शुरू हुई थी। याचियों का कहना था कि नियुक्ति में देरी के लिए उन्हें जिम्मेदार नहीं कहा जा सकता।
हालांकि कोर्ट याचियों के तर्क से सहमत नहीं हुई। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि उत्तर प्रदेश सब-इंस्पेक्टर व इंस्पेक्टर (सिविल पुलिस) सेवा नियमावली- 2015 के आधार पर ही वरिष्ठता सूची तैयार की गई है। जिसमें कहा गया है कि बाद के ट्रेनिंग सेशन का सब-इंस्पेक्टर उसके पहले के ट्रेनिंग सेशन के सब-इंस्पेक्टर से जूनियर होगा। इस आधार पर व विभिन्न तकनीकी पहलुओं के आधार पर कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।