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SUCCESS: कभी 2 रुपये कमाने वाली कल्पना सरोज ने खड़ी की 500 करोड़ की कंपनी
लखनऊ: आपने महिलाओं के साथ अत्याचार की कई कहानियां सुनी होंगी। इनकी जिंदगी में उतार-चढ़ाव आना कोई आज की बात नही हैं ये सदियों से होता आ रहा हैं। लेकिन कई महिलाएं ऐसी भी हैं जिन्होंने अपने दुखों का सामना करते हुए बड़ी ही हिम्मत के साथ जिंदगी में तरक्की भी हासिल की हैं। आज हम आपको एक ऐसी ही महिला के बारे में बताएंगे जिनकी कहानी सुन आप ज़रूर प्रेरित होंगे।
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जिनकी हम बात कर रहे हैं, उनका नाम कल्पना हैं। जो एक रोज नर्क से भागकर अपने घर जा पहुंचीं। ससुराल से भागने की सजा कल्पना के साथ-साथ उसके परिवार को मिली। पंचायत ने परिवार का हुक्का-पानी बंद कर दिया। हुक्का-पानी के साथ कल्पना को जिंदगी के सभी रास्ते भी बंद नजर आने लगे। कल्पना के पास जीने का कोई मकसद नहीं बचा था। अपनी जिंदगी से हार कर उसने मरने के बारे में सोचा इसलिए उन्होंने तीन बोतल कीटनाशक पीकर जान देने की कोशिश की। लेकिन शायद किस्मत को कुछ और मजूर था।
ये घटना कल्पना की जिंदगी में बड़ा मोड़ लेकर आई। उनका कहना था, 'मैंने सोचा कि मैं क्यों जान दे रही हूं, किसके लिए? क्यों न मैं अपने लिए जियूं, कुछ बड़ा पाने की सोचूं, कम से कम कोशिश तो कर ही सकती हूं।' इस नई आशा के साथ 16 साल की उम्र में कल्पना मुंबई फिर से वापस आयी।
कल्पना को बहुत अच्छी सिलाई आती है।उसी के बल पर उसने एक गारमेंट कंपनी में नौकरी कर ली। यहां एक दिन में 2 रुपए की मजदूरी मिलती थी जो बेहद कम थी। कल्पना ने घर पर ही ब्लाउज सिलने का काम शरू किया। एक ब्लाउज के 10 रुपए मिलते थे। इसी दौरान कल्पना की बीमार बहन की इलाज न मिलने के वजह से मौत हो गई। इस घटना से वो पूरी तरह टूट चुकी थी। लेकिन उसने हार नही मानी। उसने फिर से मेहनत करते हुए एक दिन में ज्यादा से ज्यादा ब्लाउज सिलने शुरू कर दिए जिससे उनको सिलाई के हिसाब से ज्यादा पैसे मिलने लगे। और फिर दिन में 16 घंटे काम करके कल्पना ने पैसे जोड़े और घरवालों की मदद की।
इसी दौरान कल्पना ने देखा कि सिलाई और बुटीक का काम अच्छे से चल रहा हैं तो उन्होंने बिज़नेस करनी की ठानी। अपने काम को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने दलितों को मिलने वालान 50,000 का सरकारी लोन लेकर एक सिलाई मशीन और कुछ अन्य सामान खरीदा और एक बुटीक शॉप खोल ली। दिन रात की मेहनत से बुटीक शॉप चल निकली तो कल्पना अपने परिवार वालों को भी पैसे भेजने लगी।
बचत के पैसों से कल्पना ने एक फर्नीचर स्टोर और साथ ही ब्यूटी पार्लर भी खोला। साथ में रहने वाली लड़कियों को काम भी सिखाया। उसके बाद कल्पना ने दोबारा शादी की लेकिन पति का साथ लंबे समय तक नहीं मिल सका। दो बच्चों की जिम्मेदारी कल्पना पर छोड़ बीमारी से उनके पति की मौत हो गई।
कल्पना के संघर्ष और मेहनत के जरिये उन्हें मुंबई में पहचान मिलने लगी। इसी जान-पहचान के बल पर कल्पना को 17 साल से बंद पड़ी 'कमानी ट्यूब्स' को सुप्रीम कोर्ट ने उसके कामगारों से शुरू करने को कहा है। कंपनी के कामगार कल्पना से मिले और कंपनी को फिर से शुरू करने में मदद की अपील की। ये कंपनी कई विवादों के चलते 1988 से बंद पड़ी थी। कल्पना ने वर्करों के साथ मिलकर 17 सालों से बंद पड़ी कंपनी में जान फूंक दी।
कल्पना ने सारे विवादों को सुलझाते हुए, फिर से इस कंपनी में काम करना शुरू कर दिया जिससे कई सालों तक यहां के वर्कर्स को सैलरी नही मिली थी। फिर भी सभी लोगों की मेहनत रंग लाई। आज 'कमानी ट्यूब्स' करोड़ों का टर्नओवर दे रही है। कल्पना बताती हैं कि उन्हें ट्यूब बनाने के बारे में रत्तीभर की जानकारी नहीं थी और मैनेजमेंट उन्हें आता नहीं, लेकिन वर्करों के सहयोग और सीखने की ललक ने आज एक दिवालिया हो चुकी कंपनी को सफल बना दिया।
तो इस तरह से कल्पना अपनी जिंदगी के हर दुखों का सामना करते हुए सफलता की ऊंचाईयों पर हैं।