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Durga Pooja: कोलकाता शहर के बाद अगर दुर्गापूजा देखनी हो तो यहां आइये, दशहरा के बाद होता है माँ के दिव्य दरबार का दर्शन
Durga Pooja of Sultanpur: साल 1959 में नगर के ठठेरी बाजार मुहल्ले में भिखारी लाल सोनी द्वारा पहली बार आदि दुर्गा प्रतिमा की स्थापना से इसकी शुरुआत हुई। वर्ष 72 में प्रतिमाओं की संख्या में बढोत्तरी हुई और तब से धीरे-धीरे प्रतिमाओं की संख्या बढती गई।
Sultanpur News: मंदिरों का रूप लिये जगह-जगह बन रहे पंडाल और पंडालों में स्थापित अलग-अलग रूपों की प्रतिमायें बरबस आपको अपनी ओर खींच लेंगी। शहर की कोई गली कोई कोना बाकी नही जहां इस ऐतिहासिक उत्सव के लिये तैयारियां न चल रही हों।
64 साल पहले शुरू हुई थी शहर में दुर्गा पूजा की शुरूवात
साल 1959 में नगर के ठठेरी बाजार मुहल्ले में भिखारी लाल सोनी द्वारा पहली बार आदि दुर्गा प्रतिमा की स्थापना से इसकी शुरुआत हुई। वर्ष 72 में प्रतिमाओं की संख्या में बढोत्तरी हुई और तब से धीरे-धीरे प्रतिमाओं की संख्या बढती गई। आज शहर में तकरीबन डेढ़ सौ प्रतिमाएं स्थापित होती हैं। साल दर साल बढ़ रही समारोह की भव्यता को देखते हुए जिम्मेदारों ने इसे विधिवत आयोजित करने की आवश्यकता महसूस की लिहाजा सर्वदेवी पूजा समिति के नाम से संगठन बना कर इसका आयोजन किया जाने लगा बाद में कुछ विवादों के चलते केन्द्रीय संगठन का नाम बदलकर केन्द्रीय पूजा व्यवस्था समिति कर दिया गया। इस ऐतिहासिक समारोह के भव्यतम बनाने के लिये महीनों पहले से तैयारियां की जाती हैं।
बाहर प्रदेशों के कारीगरों को बुलाकर उनसे विशालकाय और मंदिरनुमा पंडाल बनवाये जाते हैं। उनमें जबरदस्त सजावट की जाती है। बांस की खपच्ची और रंगीन कपड़ों से तैयार पंडाल देखकर असली और नकली का अंदाजा लगाना मुश्किल होता है। जिला प्रशासन की देखरेख में एक पखवारे तक चलने वाली दुर्गापूजा की तैयारियां अब अंतिम दौर में हैं। देश के दूसरे हिस्सों में दशमी को विसर्जन हो जाता है जबकि यहां उसी दिन से यह महोत्सव परवान चढता है। रावण दहन के बाद जो मेले की शुरुआत होती है तो फिर विसर्जन के बाद ही समाप्त होता है।
यहां पूर्णिमा को होता है विसर्जन
पांच दिनों तक चलने वाले समारोह के बाद पूर्णिमा को विसर्जन शुरू होता है। नगर की ठठेरी बाजार में बड़ी दुर्गा प्रतिमा के पीछे एक एक करके नगर की सारी प्रतिमायें लगती हैं। फिर परम्परागत रूप से जिलाधिकारी विसर्जन के लिये हरी झंडी दिखाकर पहली प्रतिमा को रवाना करते हैं। यह प्रतिमायें नगर के विभिन्न मार्गों से होती हुई सीताकुंड घाट पर गोमती तट पर बने विसर्जन स्थल तक पहुंचती हैं।
तकरीबन डेढ़ सौ से ज्यादा मूर्तियों के विसर्जन में करीब 36 घंटे का वक्त लगता है। यही विसर्जन शोभा यात्रा यहां का आकर्षण है। इस समारोह में दूर दराज से लाखों श्रद्धालु शिरकत करते हैं। नगर की पूजा समितियां उनके खाने पीने का पूरा प्रबंध करती हैं। जगह-जगह भंडारे चलते हैं। केन्द्रीय पूजा व्यवस्था समिति के लोग हर पल नजर बनाये रखते हैं। यातायात को सुगम बनाने और शांतिव्यवस्था बनाये रखने के लिये जिला प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद रहता है। महीनों पहले से ही जिला प्रशासन भी तैयारियों का जायजा लेना शुरू कर देता है। शोभा यात्रा रूट और विसर्जन स्थल पर पूरी नजर रखी जाती है।
छह दशकों से चला आ रहा यह समारोह केवल हिन्दुओं का पर्व न होकर सुलतानपुर का महापर्व बन चुका है। प्रशासन भी यहां की गंगा जमुनी तहजीब को देखकर पूरी तरह आश्वस्त रहता है। यहां रहने वाले किसी भी मजहब के लोग जिस तरह इस महापर्व में बढ चढ़कर हिस्सा लेते हैं वह एक मिसाल है।