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जीआई के साथ विश्व बाजार की ओर बढ़ते शिल्पियों के कदम

Mayank Sharma
Published on: 1 Jan 2020 7:39 PM IST
जीआई के साथ विश्व बाजार की ओर बढ़ते शिल्पियों के कदम
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पद्मश्री डॉ रजनीकांत से एक संवाद

पिछले दिनों बनारस प्रवास के दौरान डॉ रजनीकांत से मुलाकात हुई, वे वाराणसी में 1991 से कमजोर दलितों, ओबीसी, अल्पसंख्यक समुदाय, महिलाओं एवं बच्चों के लिए अपनी संस्था ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन के माध्यम से कार्य कर रहे हैं. हैंडीक्राफ्ट, हथकरघा एवं एसएमई इकाइयों के लिए उन्होंने अपनी संस्था के माध्यम से उन्होंने वाराणसी के आस पास के ग्रामीण क्षेत्रों में अभूतपूर्व कार्य किया है. उनके समाज के प्रति अभूतपूर्व योगदान को देखते हुए 26 जनवरी, 2019 को उन्हें पद्मश्री सम्मान से भी सम्मानित किया गया.

पूर्वांचल का कारीगर होगा वर्ल्ड मैप पर : डॉ रजनीकांत

हथकरघा शिल्पियों के बीच कार्य करते हुए उन्होंने जिऑग्रफिकल इंडिकेशन्स जीआई के क्षेत्र में जबरदस्त काम किया है. जीआई के संदर्भ में उन्होंने बताया कि जीआई एक प्रकार का इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट जिसके माध्यम से स्थानीय अथवा क्षेत्रीय परंपरागत पहचान को कायम रखा जा सकता है. जैसे बनारस की साड़ी, भदोही की हैंडमेड कारपेट्स इत्यादि एक क्षेत्रीय उत्पाद हैं जिन्हें जीआई के अंतर्गत पंजीकृत कराया गया अब जिऑग्रफिकल इंडिकेशन के जरिये इन उत्पादों की नक़ल बनाने पर नकेल कसी जा सकती है. जैसे पहले देखा जा रहा था कि नकली चायनीज फैब्रिक्स के जरिये सस्ते और घटिया नक्कली उत्पाद बनारसी साड़ियों के नाम पर बेचे जा रहे थे, इसी प्रकार भदोही के हैंडमेड कारपेट्स के डिज़ाइन की कॉपी करके मशीन के जरिये सस्ते और नक्कली कारपेट्स बाजार में उपलब्ध करा दिए जाये जा रहे थे.

जीआई पंजीकरण के जरिये नकली हथकरघा उत्पादों पर कसी नकेल

डॉ रजनीकांत बताते हैं, हमने जिऑग्रफिकल इंडिकेशन अथवा जीआई पंजीकरण के जरिये इस प्रकार के नकली हथकरघा उत्पादों के निर्माण पर नकेल लगायी जिसका फायदा अब कारीगरों, शिल्पियों एवं स्थानीय परंपरागत पहचान को प्राप्त हो रहा है. हमारे प्रयासों के जरिये अब तब प्रदेश के १० उत्पाद जिऑग्रफिकल इंडिकेशन प्राप्त कर चुके हैं इसके अतिरिक्त सात और उत्पादों के जीआई पंजीकरण के लिए आवेदन किया जा चुका है.

बनारस की साड़ी, भदोही की हैंडमेड कारपेट, मिर्जापुर की हैंड मेड दरी, मेटल रेपोसी क्राफ्ट, गुलाबी मीनाकारी, बनारस ग्लास बीट्स इत्यादि के जीआई पंजीकरण में डॉ रजनीकांत के ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन ने महती भूमिका निभाई है. चुनार के बलुआ पत्थरों, गोरखपुर टेराकोटा के अतिरिक्त अन्य बहुत से उत्पादों जो कि बलिया, मऊ, देवरिया तथा गोरखपुर से सम्बंधित हैं के जीआई पंजीकरण के लिए भी हम प्रयासरत हैं. यह सब कुछ प्रधानमंत्री मोदी के दिल के करीब कार्यक्रम मेक इन इंडिया के तहत ही आगे बढ़ाये जा रहे हैं.

ओडीओपी में सहयोग

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ द्वारा “वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट” ओडीओपी योजना के अंतर्गत आने वाले उत्पादों को भी हम जीआई के अंतर्गत लाने के लिए प्रयासरत हैं. हम देश के बहुत से उत्पादों के लिए अंतराष्ट्रीय जीआई प्राप्त करने के लिए भी प्रयासरत हैं, बनारसी साड़ी के लिए इस दिशा में किये गए प्रयास काफी आगे पहुँच चुके हैं और जल्द ही बनारसी साड़ी अंतरष्ट्रीय जीआई मानकों से परिपूर्ण होगी.

ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन के बढ़ते कदम

ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन लगातार कारीगरों, शिल्पियों, हथकरघा उद्योगों और उनके परिवारों की स्थिति के उन्नयन हेतु कार्य करता रहा है और रहेगा. अभी हाल ही प्रधानमंत्री मोदी जब बनारस के दौरे पर थे तो हमारी संस्था से संबद्ध स्टेट अवार्डी कारीगर प्यारेलाल मौर्या द्वारा पंजेदारी ज़रदोजी में स्वयं अपने हाथों से बनाया प्रधानमंत्री मोदी का चित्र स्वयं अपने हाथों से उन्हें सौंपा. अन्य गणमान्यों द्वारा दिए गए हस्तनिर्मित तोहफे भी अधिकतर हमारी संस्था के शिल्पियों द्वारा ही बनाये जाते रहे हैं.

मोदी सरकार की बदली नीतियों ने इस क्षेत्र को सम्मान दिलाया है, मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रम से इस क्षेत्र को जोड़कर इस क्षेत्र के ब्रांडिंग स्थिति में आमूल चूल रूपांतरण ला दिया. खादी के साथ साथ वे कारीगरों, शिल्पियों, हथकरघा के खुद ही ब्रांड अम्बेस्डर बन गए हैं जिसने इस क्षेत्र के प्रति लोगों में जागरूकता आई है, अब इस क्षेत्र के उत्पाद खरीदते समय उपभोक्ता जीआई टैग्स की मांग कर रहे हैं और वे ओरिजिनल ही खरीदना चाहते हैं. इस सबसे इस क्षेत्र में तेजी आई है डिमांड के तेजी से बढ़ने के कारण सप्लाई बाधित हो रही है, बहुत से कारीगर इस क्षेत्र की दुर्दशा की वजह से यह क्षेत्र ही छोड़ कर चले गए थे उनके लौटने का समय आ गया है, आइये वापस चलें परम्पराओं की ओर अपने ही लोगों द्वारा बनाये गए दिल से अपने हाँथ से बनाये उत्पाद. शामिल कीजिये इन्हें अपनी जिंदगी में खादी की ही तरह क्योंकि यही हमारी असल इकोनॉमी हैं, ग्रामीण भारत.



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Mayank Sharma

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