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Swami Prasad Resignation: राज्यसभा ना भेजने की नाराजगी या पार्टी में ही खत्म होता समर्थन, जानें क्या हैं कारण
Swami Prasad Resignation: राजनीतिक जानकारों की मानें तो स्वामी प्रसाद मौर्य पार्टी से उम्मीद लगा रहे थे कि उन्हें राज्यसभा भेजा जाएगा। वे अंतिम समय तक इसकी उम्मीद में थे, लेकिन उनकी इस उम्मीद पर पानी फिर गया और शायद इसी वजह से वे नाराज हो गए और इस्तीफा दे दिया।
Swami Prasad Resignation: स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के बाद कई सवाल भी उठ रहे हैं। क्या वे राज्यसभा जाना चाहते थे? इस्तीफा आज क्यों दिया जब सपा ने राज्यसभा के लिए अपने तीन उम्मीदवारों की घोषणा की। कारण जो भी इस्तीफे का हो लेकिन राजनीतिक जानकारों की मानें तो उनका इस्तीफा इस कारण भी हो सकता है कि वे राज्यसभा जाना चाह रहे थे और पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया।
मौर्य ने पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा दिया है। यह इस्तीफा उन्होंने पार्टी फोरम में राष्ट्रीय अध्यक्ष को निजी तौर पर ना देकर सोशल मीडिया में शेयर किया। इस पत्र में उन्होंने दलितों, पिछड़ों की आवाज बनने की कोशिश करने की बात कही है। साथ ही उन्होंने पार्टी के व्यवहार पर नाखुशी जताई है। उनके इस्तीफे के पत्र की भाषा में एक नाराजगी भी दिख रही है। इसकी दो कारण माने जा रहे हैं।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो स्वामी प्रसाद मौर्य को पार्टी से उम्मीद थी कि उन्हें राज्यसभा भेजा जाएगा। वह अंतिम समय तक इसकी आस में थे। मंगलवार को राज्यसभा के लिए सपा के उम्मीदवारों के नामांकन हो जाने के बाद प्रतिक्रिया स्वरूप उन्होंने इस्तीफा दिया। वहीं दूसरी बड़ी वजह यह है कि उनके बयानों की पार्टी में ही होने वाली प्रतिक्रिया है। स्वामी प्रसाद मौर्य लगातार हिंदू धर्म, उसके देवी-देवताओं और कर्मकांड पर टिप्पणी करते रहते हैं। उनके इस बयानों पर पार्टी में अंदर से उन्हें किसी प्रकार का सहयोग नहीं मिलता है। पार्टी के वरिष्ठ नेता जिसमें खुद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव हैं उनके बयानों पर नाखुशी जाहिर करते रहे हैं।
मेरे आने के बाद 110 सीटें हुईं
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को भेजे गए इस्तीफा पत्र में उन्होंने कहा कि जब से मैं सपा में शामिल हुआ तब से ही पार्टी का जनाधार बढ़ाने की कोशिश की है। यही कारण है कि जिस सपा के पास पहले केवल 45 विधायक थे वहीं 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद यह संख्या 110 हो गई।
उन्होंने कहा कि मैंने सपा का जनाधार बढ़ाने के लिए अपने तरीके से प्रयास किए। इसी क्रम में मैंने आदिवासियों, दलितों और पिछड़ों को जो जाने-अनजाने भाजपा के मकड़जाल में फंसकर भाजपामय हो गए उनके सम्मान व स्वाभिमान को जगाकर व सावधान कर वापस लाने की कोशिश की।
जबकि मेरा बयान निजी हो जाता है
उन्होंने इस्तीफे में जिक्र किया है कि इस पर पार्टी के कुछ छुटभईये नेताओं ने इसे मौर्य जी का निजी बयान कहकर धार कुंद करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा, मुझे हैरानी तब हुई जब पार्टी के वरिष्ठतम नेता इस पर चुप रहे। कहा कि पार्टी के कुछ राष्ट्रीय महासचिव का बयान पार्टी का होता है जबकि मेरा बयान निजी हो जाता है। ऐसे में इस भेदभावपूर्ण और महत्वहीन पद पर रहने का कोई औचित्य नहीं। मैं पार्टी महासचिव के पद से इस्तीफा दे रहा हूं। कृपया इसे स्वीकार करें।
स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे में उनकी नाराजगी भी दिख रही है। अब उन्होंने इस्तीफा क्यों दिया यह तो वही बता सकते हैं।