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बढ़ते प्रदूषण से ताज की खूबसूरती पर फिर मुसीबत, बार-बार मड पैक ट्रीटमेंट नहीं सही उपाय

ताजनगरी आगरा में लगातार बढ़ता प्रदूषण अब विश्वदाय ईमारत ताज के लिए फिर से एक बार बड़ा खतरा बनता जा रहा है। ताज की खूबसूरती कायम रहे इसलिए लिए जरूरी है की समय समय पर दी गई विभिन्न गाइड लाइन पर कम करके आगरा में प्रदूषण का स्तर कम से कम किया जाए। यह कहना है भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रासायनिक शाखा के अधिकारियों का।

tiwarishalini
Published on: 31 Jan 2018 10:06 AM IST
बढ़ते प्रदूषण से ताज की खूबसूरती पर फिर मुसीबत, बार-बार मड पैक ट्रीटमेंट नहीं सही उपाय
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आगरा: ताजनगरी आगरा में लगातार बढ़ता प्रदूषण अब विश्वदाय ईमारत ताज के लिए फिर से एक बार बड़ा खतरा बनता जा रहा है। ताज की खूबसूरती कायम रहे इसलिए लिए जरूरी है की समय समय पर दी गई विभिन्न गाइड लाइन पर कम करके आगरा में प्रदूषण का स्तर कम से कम किया जाए। यह कहना है भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रासायनिक शाखा के अधिकारियों का।

उनके अनुसार आगरा शहर में बढ़ता प्रदूषण ताज की खूबसूरती को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रहा है। और बार बार मड पैक ट्रीटमेंट ताज की खूबसूरती कायम रखने का उपचार नहीं है। मड पैक ट्रीटमेंट की अधिकता भी ताज के संगमरमर को नुक्सान पहुँचा सकती है।

ताजमहल के वातावरण में सस्पेंडेड पार्टिक्यूलेट मैटर (एसपीएम) पर एएसआई केमिकल ब्रांच द्वारा प्रारंभिक जांच के दौरान यह खुलासा हुआ। इस जांच में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि बार बार किये जाने वाले मड पैक उपचार से संगमरमर को नुक्सान पहुंच सकता है।

साल 2016 और 2017 के आंकड़ों के अनुसार सस्पेंडेड पार्टिक्यूलेट मैटर (एसपीएम) की मात्र काफी अधिक थी, इसलिए इसके स्तर को कम करने के लिए अतिरिक्त कदम उठाना आवश्यक है। विशेषज्ञों का कहना है कि धूल और धुएं जैसे कणों के कारण संगमरमर पर की गई मुगलकालीन पच्चीकारी को नुकसान पहुंचा है।

अधीक्षक डॉ एमके भटनागर ने बताया कि वर्षों से कम बारिश और वर्षा की अवधि में बड़े अंतर में वातावरण में एसपीएम की मात्रा बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि जांच में आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि ताज ट्रिपिजियम क्षेत्र में बारिश सितंबर के शुरुआती दिनो और मध्य के दिनो में होती है, इसलिए एसपीएम की मात्रा अप्रैल और नवंबर के महीनों में काफी अधिक थी।

उन्होंने कहा कि जांच से पता चलता है कि विभिन्न स्थानीय स्रोतों से वायु प्रदूषण जैसे उत्सर्जन, जीवाश्म ईंधन और बायोमास जलाने, स्थानीय वाहन से धुआं जहाँ एस पी एम बढ़ने प्रमुख कारण है वहीँ सड़क और भवन निर्माण के दौरान उड़ने वाले धूल कण भी इसके लिए जिम्मेदार है।

रसायन विद एम के भटनागर ने बताया कि जांच के वर्तमान चरण में डेटाबेस विश्लेषण शामिल है। जबकि दूसरे चरण में, हवा की दिशा की पहचान और एसपीएम के घटकों की पहचान की जाएगी।

इससे पहले, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), कानपुर, एएसआई और यूएस स्थित जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (अटलांटा) और विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय (मैडिसन) द्वारा विश्व विरासत स्थल ताजमहल के पीला पड़ने के पीछे कारणों पर गौर करने के लिए एक संयुक्त अध्ययन किया गया था। इस से पता चला कि वायु प्रदूषण से ही स्मारक को नुकसान पहुँच रहा है।

दिसंबर 2014 में पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी जर्नल में इस जांच को प्रकाशित किया गया था। वर्ष 2015 में संसदीय स्थायी समिति की सिफारिश के अनुसार, विज्ञान शाखा ने वैज्ञानिक तरीके से मीनारों सहित ताजमहल के पूरे मुख्य मकबरे पर मड पैक थेरेपी का उपयोग किया गया।ताजमहल को अभी तक चार बार मड -पैक उपचार दिया गया है। 1 99 4 में पहली बार मड पैक ट्रीटमेंट दिया गया था जबकि 2001 और 2008 में दूसरी और तीसरी बार ताजमहल को यह ट्रीटमेंट दिया गया था।

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Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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