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यहां आज भी छिपी हैं पीटी उषा और हिमा दास जैसी प्रतिभाएं

जिलाधिकारी शेषमणि पांडेय का इस विषय पर कहना है कि ग्रामीण इलाको में प्रतिभाओं की भरमार है बस उसे तराशने की जरूरत है ।जिला प्रशासन द्वारा समय समय प्रतियोगिताओ के माध्यम से प्रयास किये जा रहे हैं और आगे भी किये जायेंगे।

Shivakant Shukla
Published on: 2 Dec 2019 3:58 PM GMT
यहां आज भी छिपी हैं पीटी उषा और हिमा दास जैसी प्रतिभाएं
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चित्रकूट: मौका था एशियाई खेलों का और स्थान था दक्षिण कोरिया जब 1986 में सियोल में खेल हुआ । उस वक्त भारत की 'उड़न परी' पीटी ऊषा का करिश्मा दुनिया ने देखा था। बावजूद इसके की भारत का ओवरऑल फीका ही रहा था। वैसे तो, पीटी ऊषा सियोल एशियाई खेल से पहले जकार्ता में हुए एशियन ट्रैक एंड फील्ड टूर्नामेंट में सनसनी बन गई थीं। पर सियोल में उन्होंने पूरे एशिया का दिल जीत लिया।

देश की पहली खिलाड़ी बनीं ऊषा

उन्होंने तीन स्वर्ण के अलावा रिले में एक स्वर्ण व रजत पदक जीता। वह यह कारनामा करने वाली देश की पहली खिलाड़ी बनीं। ऊषा ने 200 मीटर, 400 मीटर और 400 मीटर बाधा दौड़ में स्वर्ण जीता। इसके बाद तो मानो हर लड़की पीटी उषा बनने की चाहत रखने लगी। लेकिन कहते हैं कि सिर्फ चाहत रखने से कहाँ कोई महान बनता है । बल्कि उसे वैसी ही परिस्थितियां और स्पोर्ट भी मिले। ऐसा ही कुछ हुआ हमारे देश मे जहां लड़कियों में फिर कोई पीटी उषा नही दिखी।

पिछले कुछ वर्षों में हिमा दास ने एकबार फिर उम्मीद जगाई है। एथेलेटिक्स की दुनिया मे भारत का सिक्का चमक सकता है। लेकिन सरकारों को फुर्सत ही कहाँ है इन खेलों की तरफ ध्यान देने का। अगर सरकारें ग्रामीण इलाकों की तरफ ध्यान दे और सरकारी स्कूलों के टैलेंट को बाहर निकाले तो भारत एक नही बल्कि कई पीटी उषा पैदा कर सकता है। लेकिन ऐसा कुछ नामुमकिन ही लगता है एकदम सपने जैसा।

पाठा के इलाकों में एक से बढ़कर एक प्रतिभाएं हैं

ऐसे ही हालात हैं धर्मनगरी चित्रकूट के पाठा इलाके के जहां ग्रामीण इलाकों में एक से बढ़कर एक प्रतिभाएं हैं । लेकिन स्थानीय प्रशासन को फुर्सत ही कहाँ हैं कि टैलेंट बाहर आये। आपने अमूमन देखा होगा कि जब सरकारी विद्यालयों की वार्षिक क्रीड़ा प्रतियोगिता होती है तो उसमें विभिन्न ग्रामीण इलाकों से बच्चे प्रतिभाग करने आते हैं । खासकर जब ट्रैक पर लड़कियां दौड़ती हैं तो एक पल को ऐसा लगता है मानो कोई उड़न परी दौड़ रही हो। लेकिन ये प्रतिभा सिर्फ इसलिए दम तोड़ देती है क्योंकि वो सरकारी होती है। चित्रकूट का पाठा इलाका असीम सम्भवनाओ से भरा पड़ा है ऐसे में अगर प्रशासन ध्यान दे तो यहां से कई पीटी उषा बाहर आ सकती हैं।

ये बहुत बड़ा चौंकाने वाला तथ्य है कि सरकारें ग्रामीण इलाकों की प्रतिभाओं को बाहर क्यों नही लाती। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि धर्मनगरी चित्रकूट में फिलहाल कोई क्रीड़ा अधिकारी नियुक्त नही है । अगर ये नियुक्ति हो जाये तो क्रीड़ा विभाग ऐसी प्रतिभाओं को आगे ले सकता है । हर खेल में ग्रामीण इलाकों से प्रतिभाएं निकल सकती हैं लेकिन उसके लिए सरकार को स्थानीय स्तर पर बड़ा ग्राउंड प्लान बनाना होगा ।

प्रतिभाओं की भरमार है, बस उसे तराशने की जरूरत

जिलाधिकारी शेषमणि पांडेय का इस विषय पर कहना है कि ग्रामीण इलाको में प्रतिभाओं की भरमार है बस उसे तराशने की जरूरत है ।जिला प्रशासन द्वारा समय समय प्रतियोगिताओ के माध्यम से प्रयास किये जा रहे हैं और आगे भी किये जायेंगे। पाठा में असीम सम्भवनाये हैं जिसके लिए हम प्रयासरत है की यहां से ऐसी प्रतिभाएं निकलकर देश के सामने पहुंचे ।

वहीं जब इस विषय पर हमने बेसिक शिक्षा अधिकारी प्रकाश सिंह से बात की तो उन्होंने बताया कि बेसिक शिक्षा विभाग लगातार ऐसी प्रतिभाओं को उभारने का प्रयास कर रह है। प्रत्येक वर्ष क्रीड़ा प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं जिसमे कई बच्चे राज्य से लेकर राष्ट्रीय पटल तक जाते हैं। बस चिंता का विषय ये है कि इन बच्चों को आगे सही मार्गदर्शन नही मिल पाता । हम उन तमाम बच्चों को पुरस्कृत भी करते हैं जिससे उनकी हौसला अफजाई हो।

Shivakant Shukla

Shivakant Shukla

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