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तानसेन परिवार के आखिरी चिराग का निधन, नहीं रहे पद्म विभूषण राशिद खान

Admin
Published on: 18 Feb 2016 6:57 PM IST
तानसेन परिवार के आखिरी चिराग का निधन, नहीं रहे पद्म विभूषण राशिद खान
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लखनऊ: उस्ताद अब्दुल राशिद खान ,ये नाम सुनते ही तानसेन का नाम जेहन में आता है जो अपने आवाज की जादूगरी से बरसात करा देते थे। उसी कड़ी को आगे बढ़ाया उनके परिवार के उस्ताद अब्‍दुल राशिद खान ने। उनका गुरुवार की सुबह 8:20 पर कोलकाता में 108 साल की उम्र में इंतकाल हो गया। शुक्रवार दोपहर को उन्हें रायबरेली के सलोन सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा। तानसेन यदि अकबर के दरबार के नौरत्नों में एक थे तो राशिद खान पूरे देश के रत्न थे।

देखिए, जब 102 साल की उम्र में किया था उन्होंने परफॉर्म...

बचपन से उन्होंने रियाज शुरू किया जो ताउम्र जारी रहा। पूरे 75 साल तक स्टेज उनके नाम पर सजता और रौनक पाता रहा। वे जिस कार्यक्रम में जाते उसमें चार चांद लग जाते। वे गुरुवार की सुबह तक देश के सबसे उम्र दराज पद्मभूषण से सम्मानित क्लासिकल सिंगर थे।

तीन हजार से ज्यादा कंसर्ट में लिया हिस्सा

राशिद खान ने अपने जीवन में तीन हजार से ज्यादा कंसर्ट में हिस्सा लिया और दो हजार से ज्यादा बंदिशों से स्टेज को संवारा और उसे शोहरत दी। शायद लंबी आयु जीना उनकी जीन में था। पिछले साल एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा मैं राशिद खान 107 साल का युवा हूं। मेरे परिवार में कुछ लोग 110 साल और उससे भी ज्यादा जिंदा रहे। रायबरेली के सलोन में 1908 में राशिद ग्वालियर घराने के उस्ताद छोटे यूसुफ खान के घर पैदा हुए। राशिद तानसेन परिवार की 23 वीं पीढ़ी में आते हैं जो अब गायिकी के साथ खत्म हो गई। राशिद ने पिछले साल एक इंटरव्यू में कहा था कि पिता छोटे युसूफ खान और ताउ बड़े युसूफ खान उन्हें रोज दस घंटे रियाज कराते थे। ये सिलसिला 22 साल तक चलता रहा। जब मैं 30 साल का हुआ तो मुझे स्टेज पर जाने की इजाजत अब्बा और ताउ ने दी। उस्ताद जाकिर हुसैन जब 16 साल के थे तब उन्होंने राशिद खाने के साथ तबले पर संगत की थी। उस्ताद जाकिर के तबले ने बड़ी खूबसूरती के साथ उनकी आवाज का पीछा किया।

22 से ज्यादा राजाओं के दरबार में की गायिकी

इलाहाबाद यूनीवर्सिटी से डिग्री लेने के बाद राशिद रायबरेली आ गए और पूरे देश में कंसर्ट में हिस्सा लेने लगे। आजादी के पहले उन्होंने 22 से ज्यादा राजाओं के दरबार में अपनी गायिकी का जलवा बिखेरा। किसी भी दरबार में उनसे एक खास राग गाने की फरमाईश होती थी। राशिद खान को 1991 में कोलकाता में आईटीसी संगीत रिसर्च अकादमी में विशेष गुरू का पद लेने के लिए आमंत्रित किया गया। वे इस अकादमी में 25 साल तक संगीत की शिक्षा दे चुके थे। उनके परम्परागत कंपोजीशन को बीबीसी और इराक रेडियो ने रिकार्ड किया। यूपी संगीत नाटक अकादमी और आईटीसी संगीत अकादमी के पास उनका 1500 से ज्यादा कंपोजीशन है।

60 साल की उम्र में क्या हुआ था राशिद खान के साथ

राशिद खान के साथ तबले पर संगत करने वाले उनके पौत्र उस्ताद बिलाल खान ने गुरुवार को कोलकाता से newztrack.com को कहा कि जुगलबंदी में उनके साथ के उस्ताद दादा राशिद के आसपास ठहर भी नहीं पाते थे। ऐसे ही एक कार्यक्रम के पहले उन्हे होटल के कमरे में बेयरे को रिश्वत दे उनके खाने में पारा :मरकरी: दे दी गई। नतीजा यह हुआ कि उनकी हालत बहुत खराब हो गई। बड़े जीवट के थे दादा राशिद। ज्यादा कुछ नहीं हुआ दो तीन महीने अस्पताल में रहे और धीरे धीरे चंगे हो गए लेकिन मरकरी का इफेक्ट उन पर ताउम्र रहा। बिलाल कहते हैं कि दादा जब तक स्वस्थ रहे पांचों वक्त नमाजी रहे।

क्या थी राशिद खान की हसरत

बिलाल कहते हैं कि दादा भले ही कोलकाता में रहे लेकिन उनकी हसरत थी कि मरने के बाद उन्हें सुपुर्द-ए-खाक सलोन में ही किया जाए। उनका पार्थिव शरीर कल सुबह लखनऊ के चौधरी चरण सिंह एयरपोर्ट लाया जाएगा। राशिद खान को शुक्रवार को सलोन में सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा। आज पूरा देश उन्हें याद कर रहा है लेकिन वह अब शरीर से दिखाई नहीं देंगे। हां उनकी आवाज हमेशा जिंदा रहेगी ।



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