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काशी विश्वनाथ कॉरिडोर: बिल्डिंगों में छिपे मंदिर, धर्म की बात करने वालों का कारनामा

बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में धर्म की बात करने वालों ने मंदिरों को भी नहीं बख्शा। सैकड़ों-हजारों बरस पुराने मंदिरों को घेर कर मकान, दुकान, होटल बना लिए। जहां मंदिर का शीर्ष हुआ करता था वहां टॉयलेट तक बनाए गए।

raghvendra
Published on: 7 Dec 2018 8:20 AM GMT
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर: बिल्डिंगों में छिपे मंदिर, धर्म की बात करने वालों का कारनामा
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आशुतोष सिंह

वाराणसी: बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में धर्म की बात करने वालों ने मंदिरों को भी नहीं बख्शा। सैकड़ों-हजारों बरस पुराने मंदिरों को घेर कर मकान, दुकान, होटल बना लिए। जहां मंदिर का शीर्ष हुआ करता था वहां टॉयलेट तक बनाए गए। ऐसे दर्जनों मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरीडोर निर्माण के दौरान बिल्डिंगों को गिराए जाने के क्रम में सामने आए हैं। इन नए मंदिरों का पता लगने से हर कोई हैरत में है। ऐसे-ऐसे मंदिरों के बारे में पता चला है जिनके बारे में आम लोगों को जानकारी तक नहीं थी। अभी तक ऐसे 45 मंदिरों का पता लग चुका है।

इनमें से कई ऐसे मंदिर हैं जो अति प्राचीन हैं और भारतीय स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण भी हैं। धर्म व आस्था की नगरी में तमाम लोगों ने इन मंदिरों को घेरने के बाद घर बना लिया था। देश में मंदिरों को काफी पवित्र स्थान माना जाता है मगर इन लोगों ने यह भी नहीं सोचा कि मंदिर के इर्द-गिर्द घर व टॉयलेट आदि से मंदिर की पवित्रता प्रभावित होगी। अब सवाल यह है कि क्या कब्जे की नीयत से लोगों ने इन मंदिरों को चहारदीवारी में घेरकर मकानों का निर्माण कर लिया था? हद तो यह है कि इन लोगों ने मंदिरों पर कब्जा करने के बावजूद कॉरिडोर निर्माण के दौरान मिलने वाला भारी-भरकम मुआवजा भी ले लिया है।

दूर होगी श्रद्धालुओं की दिक्कत

650 करोड़ रुपये के विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर प्रोजेक्ट से श्रद्धालुओं को यह सुविधा मिलने वाली है कि वे गंगा जल लेकर सीधे बाबा विश्वनाथ तक पहुंचकर जल चढ़ा सकते हैं। बाबा विश्वनाथ के महात्म्य के कारण भारी संख्या में श्रद्धालु रोजाना देश भर से बाबा के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। यह इलाका काफी संकरा होने के कारण श्रद्धालुओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इन दिक्कतों को दूर करने के लिए ही इस प्रोजेक्ट की संकल्पना की गयी है।

प्रोजेक्ट विरोधियों का अफसरों पर आरोप

एक वर्ग इस प्रोजेक्ट का विरोध भी कर रहा है और उसका कहना है कि मंदिर प्रशासन से जुड़े अफसर घरों में मंदिर मिलने की खबरों को हवा दे रहे हैं। उनका मकसद यह है कि कॉरिडोर के विवाद को दूसरी ओर मोड़ा जाए और आंदोलनकारियों के खिलाफ एक माहौल बनाया जाए। हालांकि विरोधियों को तब बड़ा झटका लगा जब सर्वोच्च अदालत ने कॉरिडोर निर्माण रोकने के संबंध में दायर याचिका खारिज कर दी।

मंदिरों का होगा संरक्षण

जिन स्थानों पर मंदिर मिले हैं वहां प्रशासन फिलहाल ध्वस्तीकरण का काम रोक कर उनकी वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी कराकर उन्हें संरक्षित करने के काम में लग गया है। यहां कंसल्टेंट कंपनी ने एक दर्जन विशेषज्ञों की टीम लगाई है, जो मंदिर प्रशासन के साथ काम कर रही है। ध्वस्तीकरण कार्य में मिले मंदिरों के अध्ययन की जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग को दी जाएगी।

मंदिरों की प्राचीनता का पता लगाने के लिए शासन अब कार्बन डेटिंग भी कराने जा रहा है। इस संबंध में कमिश्नर दीपक अग्रवाल ने बताया कि मकानों को तोडऩे पर निकले मंदिरों की कार्बन डेटिंग कराई जाएगी ताकि उनकी स्थापना का वास्तविक काल पता चल सके। उन्होंने कहा कि जब ये सारे मंदिर सामने आ जाएंगे तो खुद-ब-खुद एक प्राचीन मंदिरों का संकुल निकलकर सामने आएगा जो अपने आप में अद्भुत होगा।

घरों में निकले मंदिर

धर्म और आस्था की नगरी काशी में विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर के लिए चल रहे ध्वस्तीकरण में एक चौंकाने वाली बात उजागर हुई है। इस दौरान कई ऐसे मंदिरों का पता चला है जिनके बारे में अभी तक आम तौर पर लोगों को जानकारी ही नहीं थी। लोगों ने इन मंदिरों को घरों की चहारदीवारी में कैद कर रखा था। कॉरिडोर की राह में पडऩे वाले मकानों के ध्वस्तीकरण के दौरान अब तक 45 छोटे-बड़े मंदिर प्रकट हो चुके हैं। इनमें से कई ऐसे मंदिर हैं जो अति प्राचीन हैं और भारतीय स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण भी हैं। अधिकांश मंदिर भगवान शिव के हैं। धार्मिक दृष्टि से इन मंदिरों को लेकर बहस का दौर शुरू हो चुका है। लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि घनी आबादी के बीच इतने भव्य और प्राचीन मंदिर किसने बनवाए, ये मंदिर किस काल के हैं, आखिर कैसे इतने सालों तक ये मंदिर लोगों की आंखों से ओझल रहे। सवाल ये है कि क्या कब्जे की नीयत से लोगों ने इन मंदिरों के आसपास मकानों का निर्माण कर लिया था? यही नहीं लोग अब यह भी पूछ रहे हैं कि क्या कॉरिडोर के लिए इन मंदिरों को तोड़ा जाएगा या फिर इन्हें संरक्षित करने का काम होगा।

शुरुआती स्तर पर ये माना जा रहा था कि 40 फुट चौड़े कॉरिडोर की राह में पडऩे वाले सभी मकानों और मंदिरों को ध्वस्त कर दिया जाएगा। इसे लेकर पक्का महाल (चौक,गोदौलिया) के लोगों ने बड़ा अभियान चलाया। धरोहर बचाओ समिति के बैनर तले इस अभियान की अगुवाई द्वारिकापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती के प्रतिनिधि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद कर रहे थे। उन्होंने मंदिरों के तोड़े जाने के खिलाफ शहर में विरोध का बिगुल फूंक दिया। काशी विश्वनाथ परिक्षेत्र के आसपास बने मंदिरों को बचाने के लिए उन्होंने देशभर के संतों की एक संसद तक बुला ली।

अब तक मिले 45 मंदिर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लिए ध्वस्तीकरण का काम कुछ लोगों के विरोध के बावजूद चल रहा है। काशी विश्वनाथ की गलियों में मकानों के ध्वस्तीकरण से चौंका देने वाली तस्वीरें सामने आ रही हैं। प्रस्तावित कॉरिडोर क्षेत्र में ध्वस्तीकरण के कार्य में अब तक 45 मंदिर और काफी विग्रह मिल चुके हैं। इनमें कई मंदिर तो काफी प्राचीन बताए जा रहे हैं। एक मंदिर को देखकर तो लोग हैरान हैं। ये मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर के जैसा ही दिखता है। मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी विशाल सिंह ने बताया कि विश्वनाथ मंदिर के विस्तारीकरण के तहत अब तक निर्धारित कुल 296 भवनों में से 175 को खरीद लिया गया है और विस्तारीकरण के तहत हो रहे ध्वस्तीकरण में अति प्राचीन मंदिर निकलकर सामने आए हैं। उन्होंने बताया कि चंद्रगुप्त काल से लेकर साढ़े तीन हजार साल पुराने मंदिर भी हमें मिले हैं। दरअसल इन मंदिरों को भवन स्वामियों ने चहारदीवारी के अंदर निजी वजहों से छिपाकर रखा था।

इस कारण ये मंदिर अबतक देश-दुनिया की नजरों से दूर थे। जिन स्थानों पर मंदिर मिले हैं वहां प्रशासन फिलहाल ध्वस्तीकरण का काम रोककर उनकी वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी कराकर उन्हें संरक्षित करने के काम में लग गया है। यहां कंसल्टेंट कंपनी ने एक दर्जन विशेषज्ञों की टीम लगाई है, जो मंदिर प्रशासन के साथ काम कर रही है। ध्वस्तीकरण कार्य में मिले मंदिरों के अध्ययन की जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग को दी जायेगी। ध्वस्तीकरण के बाद जो मंदिर सामने आएंगे, उनका संकुल बनाया जायेगा। मंदिरों के मिलने से लोगों में खुशी भी है कि जो प्राचीन मंदिर इतिहास के पन्नों में अब तक दबे हुए थे, वे अब सामने आ रहे हैं और अब इसका रखरखाव बेहतर ढंग से प्रशासन करेगा। साथ ही काशी आने वाले श्रद्धालुओं को भी इन मंदिरों के बारे में विस्तार से जानने को मिलेगा।

कार्बन डेटिंग से पता चलेगी प्राचीनता

मंदिरों की प्राचीनता को मापने के लिए शासन अब कार्बन डेटिंग भी कराने जा रहा है। इस संबंध में कमिश्नर दीपक अग्रवाल ने बताया कि मकानों को तोडऩे पर निकले मंदिरों की कार्बन डेटिंग कराई जाएगी ताकि उनकी स्थापना का वास्तविक काल पता चल सके। उन्होंने कहा कि जब ये सारे मंदिर सामने आ जाएंगे तो खुद-ब-खुद एक प्राचीन मंदिरों का संकुल निकलकर सामने आएगा जो अपने आप में अद्भुत होगा। फिलहाल मंदिरों की प्राचीनता को जानने के लिए कंस्लटेंट कंपनी के एक दर्जन विशेषज्ञों की टीम भी लग चुकी है जो ड्रोन कैमरे और गूगल इमेज के जरिये शुरुआती काम में जुट गई है। अभी फिलहाल अति प्राचीन मंदिरों का डाटा बेस तैयार किया जा रहा है। इस सम्बन्ध में प्रोजेक्ट असिस्टेंट बिंदू नायर ने बताया कि हमारी टीम मंदिर प्रशासन की टीम के साथ मिलकर कार्य कर रही है। हम अभी डेटा बेस इक_ा कर रहे हैं। इस के बाद हम दूसरे चरण का कार्य शुरू करेंगे।

पुरातत्व विभाग को सौंपी जिम्मेदारी

ध्वस्तीकरण के बाद सामने आए कई मंदिरों के विग्रहों के मंदिर प्रशासन ने जांच के लिए पुरातत्व विभाग को दे दिया है। वैसे पुरातत्व विभाग की प्रारंभिक जांच के दौरान ये बात सामने आई है कि ये मंदिर मध्यकालीन हैं। गहरवार, प्रतिहार व अन्य राजवंशों ने इस शैली के निर्माण पर जोर दिया। बताया जा रहा है कि इन मंदिरों का निर्माण नागर शैली में हुआ है। दरअसल नागर शैली का प्रसार हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत माला तक देखा जा सकता है। हालांकि कई इतिहासविद् इन मंदिरों को लेकर अपनी अलग राय रखते हैं। प्रोफेसर मारुति नंदन प्रसाद तिवारी के मुताबिक मंदिर कॉरिडोर में देखे गए डेढ़ दर्जन मंदिरों में सभी 17वीं-18वीं शताब्दी के बीच के हैं। इस लिहाज से सभी मंदिर 300-350 साल पुराने हैं। संभवत: काशी विश्वनाथ मंदिर से प्रेरित होकर इन मंदिरों का निर्माण कराया गया था। हालांकि ये मंदिर शिल्पकला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। मणिकर्णिका घाट के किनारे दक्षिण भारतीय शैली में रथ पर बना मंदिर मिला है, जिसमें समुद्र मंथन से लेकर कई पौराणिक गाथाएं उकेरी गई हैं। अब जांच के बाद ही पता चलेगा कि यह मंदिर कितना पुराना है। हालांकि उसकी वास्तुकला को देखने से ऐसा लग रहा है कि यह भी मुख्य मंदिर के आसपास ही बनाया गया होगा।

मंदिरों के साथ एक शिवलिंग भी मिला

कॉरिडोर क्षेत्र में ध्वस्तीकरण व खुदाई के दौरान लाहौरी टोला स्थित एक भवन के नीचे शिवलिंग निकलने से हडक़म्प मच गया। मजदूरों ने काम रोककर मंदिर प्रशासन को अवगत कराया। मंदिर के अधिकारी के निर्देश पर शिवलिंग को धोकर पूजन किया गया। अधिकारियों के मुताबिक परिसर में शिवलिंग को स्थापित किया जाएगा। मलबा हटाने के दौरान भवन संख्या सीके 34/6 के नीचे शिवलिंग की आकृति दिखाई दी। मजदूरों ने आसपास की मिट्टी हटाई तो शिवलिंग सामने आया। मंदिर के सीईओ विशाल सिंह के निर्देश पर तहसीलदार अविनाश कुमार पुजारियों के साथ मौके पर पहुंचे। उन्होंने काम रोकवाकर पूजन-अर्चन कराया। अविनाश कुमार ने बताया कि आसपास के लोगों का कहना था कि इसी स्थल पर तुलसीदास जी भजन करने आते थे। घटनास्थल से थोड़ी दूर पर पुराना संकटमोचन हनुमान मंदिर भी है जहां तुलसीदास हमेशा आया करते थे। तहसीलदार ने बताया कि अधिकारियों के निर्देश पर शिवलिंग को विधि-विधान के साथ मंदिर परिसर में स्थापित किया जाएगा।

जिला प्रशासन ने बनाया मंदिरों का संरक्षण प्लान

इन प्राचीन मंदिरों के मिलने के कारण अब स्थानीय प्रशासन ने कॉरिडोर निर्माण के प्लान में कुछ बदलाव किए हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर के लिए जारी ध्वस्तीकरण प्रोजेक्ट अब संरक्षण कार्यक्रम में बदल रहा है। ध्वस्तीकरण के दौरान बड़ी संख्या में मिल रहे प्राचीन मंदिरों और शिवलिंग की वजह से यह बदलाव किया जा रहा है। मंदिर प्रशासन की ओर से कुछ नामों का प्रस्ताव पीएमओ को भेजा जाएगा। नाम का फैसला पीएमओ से ही होगा। काशी विश्वनाथ मंदिर के सीईओ विशाल सिंह कहते हैं कि कि यह प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट है। इसे नया नाम दिया जाएगा। इसके लिए पीएमओ को कुछ नाम प्रस्तावित भी किए जाएंगे। मंदिर प्रशासन का कहना है कि धरोहर शब्द सिर्फ पुरानी चीज का बोध कराता है, यहां जो मंदिर विग्रह मिल रहे हैं वह सनातन संस्कृति का हिस्सा है। पिछले दिनों पुरातत्व विभाग की टीम ने इन मंदिरों का जायजा लिया और अब इसे संरक्षित करने की कवायद शुरू हो चुकी है। जानकार बताते हैं कि कॉरिडोर के लिए बीजेपी सरकार किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहती है। मंदिर ध्वस्तीकरण से न सिर्फ लोगों की आस्था को ठेस पहुंचती बल्कि समाज में एक गलत संदेश जाता है। लिहाजा चुनावी साल को देखते हुए सरकार ने अपना प्लान बदल दिया है। अब कॉरिडोर के साथ उन मंदिरों को संरक्षित किया जाएगा जो सालों बाद सामने आए हैं। पुरातत्व विभाग के अधीक्षक नीरज सिन्हा के अनुसार मंदिरों के संरक्षण के लिए एक टीम बनाई गई है। जांच के बाद मंदिरों के बारे में सटीक जानकारी मिल सकती है।

मंदिरों को लेकर शुरू हुई बहस

ध्वस्तीकरण के दौरान सामने आ रहे प्राचीन मंदिरों को लेकर बहस शुरू हो गई है। मकानों के बीच में आखिर मंदिर कैसे बनें? क्या लोगों ने कब्जे की नीयत से मंदिरों के आसपास मकानों का निर्माण कराया था या फिर इसके पीछे की कहानी कुछ और है। स्थानीय निवासी और वरिष्ठ पत्रकार राजनाथ तिवारी कहते हैं कि आज से 450 साल पहले देश में मुस्लिम आक्रमणकारियों का प्रभाव बढ़ता जा रहा था। मुस्लिम राजाओं ने देश के अन्य हिस्सों की तरह काशी में भी मंदिरों को तोडऩा शुरू किया। ऐसे में मंदिरों को बचाने के लिए यहां के लोगों ने नया तरीका अपनाया। लोगों ने मंदिरों के चारों ओर दीवार खड़ी कर दी जो बाद के सालों में मकान का रूप लेते गए। वहीं दूसरी ओर काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत परिवार के मुखिया कुलपति तिवारी कहते हैं कि ध्वस्तीकरण के दौरान सामने आ रहे मंदिरों को लेकर बहस बेकार है। काशी पुरातन नगरी है। यहां के कण-कण में शिव का वास होता है। गंगा किनारे अधिकांश हिस्सों में बने मकानों में आपको छोटे या फिर बड़े शिवलिंग या फिर मंदिर देखने को मिल जाएंगे। सिर्फ विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र ही नहीं बल्कि दूसरे हिस्सों में भी यही तस्वीर देखने को मिल सकती है। जहां तक इन मंदिरों के धार्मिक पक्ष का सवाल है तो क्या गंगा में सीवर नहीं गिरता है। इस बात से कौन इनकार कर सकता है।

नाकामियां छिपाने की कोशिश तो नहीं

दूसरी ओर कुछ लोग ये कह रहे हैं कि अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए मंदिर प्रशासन से जुड़े अफसर इस तरह की बातों को हवा दे रहे हैं। उनका मकसद ये है कि कॉरिडोर के विवाद को दूसरी ओर मोड़ा जाए और आंदोलनकारियों के खिलाफ एक माहौल बनाया जाए। अन्नपूर्णा मंदिर के महंत श्री रामेश्वपुरी जी कहते हैं कि काशी के कंकड़-कंकड़ में शंकर हैं। ऐसे में अगर ये मंदिर निकलकर सामने आ रहे हैं तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। हां, इतना जरूर है कि इतने प्राचीन मंदिरों की भनक लोगों को नहीं लगी। इन मंदिरों के कब्जेदारों के खिलाफ प्रशासन को कार्रवाई करनी चाहिए। सनातन धर्म की रक्षा के साथ अगर विकास होता है तो हम इसका स्वागत करते हैं।

काशी विश्वनाथ मंदिर के लिए क्यों जरूरी है कॉरिडोर

इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे अधिकारियों का मानना है कि मंदिर का विस्तारीकरण समय की मांग है। उनके मुताबिक ऐसा यहां लगातार बढ़ रही श्रद्धालुओं की संख्या के कारण जरूरी हो गया है। प्रोजेक्ट के मुताबिक कॉरिडोर में नक्काशीदार पिलर्स के अलावा दीवारों पर भी देवी देवताओं की आकृतियां उकेरी जाएंगी। कॉरिडोर के दोनों तरफ देव प्रतिमाओं के विग्रह स्थापित किए जाने की भी योजना है। साथ ही कॉरिडोर में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की ऋचाएं, उपनिषद और 18 पुराणों के मंत्र भी लगातार गूंजेंगे। जानकारी के मुताबिक कॉरिडोर में एक बार में एक साथ दो हजार श्रद्धालुओं खड़े होने की व्यवस्था की जाएगी। साथ ही यहां आरती पूजा के लिए टिकट काउंटर, पीने का पानी और श्रद्धालुओं के लिए शौचालय भी बनाया जाएगा। इसके अलावा श्रद्धालुओं के प्रसाद का काउंटर भी खोला जाएगा।कॉरिडोर के रास्ते में पडऩे वाले 300 मकानों को तोडऩे का काम तेजी से हो रहा है। काशी विश्वनाथ मंदिर के सीईओ विशाल सिंह ने कहा कि श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर नागर शैली में बना है। इसलिए कॉरिडोर के होने वाले सभी निर्माण कार्य उसी शैली में कराए जाएंगे। नागर शैली के लिए राजस्थान से पत्थर मंगाए जाएंगे। कॉरिडोर के भव्य प्रवेश द्वार, यज्ञशाला, भोजशाला, विग्रहों की फिर से स्थापना, सभागार आदि का निर्माण इसी शैली में होगा।

प्रोजेक्ट पर खर्च होगा 650 करोड़

गंगा तट से काशी विश्वनाथ मंदिर तक बनने वाले कॉरिडोर को पीएम नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट बताया जा रहा है। साल 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छा के अनुसार काशी विश्वनाथ मंदिर का विस्तार सोमनाथ मंदिर की तर्ज पर करने की योजना को मंजूरी दी गई। इसके लिए यूपी और केंद्र सरकार ने मिलकर श्रीकाशी विश्वनाथ कॉरिडोर प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई। बीते साल इस प्रोजेक्ट के लांच होते ही मंदिर से ललिता घाट तक गंगा पाथवे बनाने का काम शुरू हुआ। यह पाथवे लगभग 700 मीटर लम्बा होगा। इस प्रोजेक्ट पर लगभग 650 करोड़ का खर्च आना है। तर्क यह दिया गया कि इस रास्ते के चौड़े हो जाने से श्रद्धालु मंदिर में दर्शन करने के बाद आसानी से गंगा के किनारे पहुंच सकेंगे। इसके लिए रास्ते में पडऩे वाले मकानों और छोटे-छोटे मंदिरों को तोडऩे का काम शुरू हुआ। इस कॉरिडोर के निर्माण के बाद काशी के इस प्राचीन मंदिर में दर्शन करने को आ रहे लोग सीधे गंगा के तट पर जा सकते हैं।

विरोध के कारण ठंडे बस्ते में था प्रोजेक्ट

इस कॉरिडोर परियोजना की नींव साल 2009 में मायावती सरकार के कार्यकाल में रखी गई थी, लेकिन स्थानीय विरोध के चलते इस परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। साल 2018 के शुरू होते-होते मौजूदा प्रदेश सरकार ने इस परियोजना को फिर से जिंदा किया है। शुरुआत में इस परियोजना में 166 भवनों का अधिग्रहण होना था, लेकिन धीरे-धीरे यह संख्या 300 के आसपास पहुंच चुकी है। अब तक कुल 190 भवनों का अधिग्रहण हो चुका है। इस दौरान जिला प्रशासन ने भवन मालिकों को 26 हजार रुपए प्रति स्क्वायर फीट के हिसाब से मुआवजा दिया है। वहीं दुकानदारों को मुआवजा देने के साथ ही कॉरिडोर बनने पर दुकान आवंटित करने का भरोसा दिया है। आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को रोजगार भी देने का वादा किया गया है।

चार चरणों में होगा कॉरिडोर का काम

प्रस्तावित काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर का नक्शा अहमदाबाद की कंसलटेंट कंपनी ने मंदिर प्रशासन को सौंप दिया। प्रस्तावित रूपरेखा के अनुसार कुल चार चरणों में निर्माण कार्य होगा। प्रथम और तीसरे चरण का काम पहले शुरू होगा। पहले चरण में मंदिर और आसपास का इलाका, जबकि तीसरे चरण में गंगा घाट के किनारा शामिल है। इसमें पहले चरण का काम इसलिए शुरू किया जाएगा ताकि श्रद्धालुओं को सुविधा मिलनी शुरू हो जाए जबकि तीसरे चरण के काम से गंगा की ओर से कॉरिडोर दिखने लगेगा। दूसरे और चौथे चरण का निर्माण जहां होना है, वहां घनी अबादी क्षेत्र है और यहां भवनों की खरीद और ध्वस्तीकरण का काम अभी होना है। इसलिए दूसरे और चौथे चरण का काम बाद में शुरू किया जाएगा। इस ब्लूप्रिंट से कॉरिडोर की स्थिति काफी हद तक साफ हो गई है।

प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं

इस सम्बन्ध में मणिकर्णिका घाट स्थित सतुआ बाबा आश्रम के महंत संतोष दास ने कहा कि विश्व की सबसे प्राचीन नगरी है काशी। अगर अध्यात्म, मान्यताओं और वैदिक ऋचाओं के साथ किसी शहर की प्रमाणिकता मिलती है तो वो है काशी, जिसका किसी को प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं है। महंत संतोष दास का कहना है कि मकानों को तोडऩे के बाद ऐसे प्राचीन मंदिर निकल रहे हैं कि कुछ कहा नहीं जा सकता। हमने तो चन्द्रगुप्त काल को ही पढ़ा है, लेकिन काशी की स्थापना गंगा से पहले की है और पृथ्वी के अनादिकाल से काशी बसी है जो पृथ्वी से अलग है। उन्होंने बताया कि यहां चार से पांच हजार वर्ष पुराने मंदिर घरों के अंदर छिपे हुए मिल रहे हैं। इन मंदिरों का मिलना हमारे लिए बहुत शुभ संकेत हैं क्योंकि आने वाली पीढ़ी इन मंदिरों में पूजा करने के साथ ही इनके महत्व व काशी की प्राचीनता जान पाएगी।

कॉरिडोर परिसर में लगा वेस्ट टू क्रश प्लांट

बाबा विश्वनाथ मंदिर में बाबा को चढऩे वाली फूलमालाओं को तत्काल नष्ट कर करने वाली मशीन को कॉरिडोर क्षेत्र में लगा दिया गया है। इसका उद्घाटन करते हुए मंडलायुक्त दीपक अग्रवाल ने बताया कि मशीन में फूल डालते ही कट-पिट कर सब फूल बाहर आ जाएगा। इसके बाद इसे बोरे में भरकर खाद के लिए आसानी से भेजा जा सकेगा। स्वच्छ भारत मिशन के तहत बॉम्बे की कम्पनी आइकोर्न इंटरनेशनल लिमिटेड मशीन लगवा रही है। कम्पनी मंदिरों को कचरा मुक्त करेगी। मुख्य कार्यपालक विशाल सिंह ने बताया कि अभी दो मशीनें लगाई गई हैं।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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