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बड़ी खबर : टीईटी-2017 के परिणाम में हाईकोर्ट का हस्तक्षेप से इंकार
इलाहाबाद : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने टीईटी 2017 में ओएमआर सीट में परिणाम घोषित होने के बाद त्रुटि दुरूस्त करने की मांग को लेकर दाखिल याचिकाओं पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है।
कोर्ट ने कहा है कि भूल सुधार की अनुमति देने से पूरे चयन प्रक्रिया की सुचिता पर सवाल खड़े होंगे। जब ओएमआर सीट सही व सावधानी पूर्वक भरने का निर्देश दिया गया था तो इसका पालन न करने वालों को मानवीय भूल या त्रुटि सुधार की अनुमति न देना मनमाना पूर्ण व अवैधानिक नहीं है।
कोर्ट के फैसले से ओएमआर सीट भरने में लापरवाही बरतने वाले सैकड़ों अभ्यर्थियों को निराशा हाथ लगी है। याचिकाओं में सीट की त्रुटियां दुरूस्त कर परिणाम घोषित करने की मांग की गयी थी। कोर्ट ने सभी याचिकाएं खारिज कर दी है और बोर्ड के फैसले की पुष्टि कर दी है।
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यह आदेश न्यायमूर्ति एम.सी त्रिपाठी ने कंचनबाला व 172 अन्य सहित दर्जनों याचिकाओं पर दिया है। याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक खरे व राज्य सरकार के अपर महाधिवक्ता एम.सी.चतुर्वेदी, डा.राजेश्वर त्रिपाठी व बेसिक शिक्षा परिषद् इलाहाबाद के अधिवक्ता अशोक कुमार यादव ने बहस की।
याचिकाओं में टीईटी 2017 के परिणाम को रद्द करने की मांग की गयी थी। घोषित परिणाम में याचियों द्वारा ओएमआर शीट में पंजीकरण संख्या, अनुक्रमांक संख्या, बुकलेट सिरीज या भाषा द्वितीय प्रयास आदि भरने में गलती की गयी थी। घोषित परिणाम में न्यूनतम अंक से अधिक अंक पाने के बावजूद इन्हें सफल घोषित नहीं किया गया। याचियों का कहना था कि मानवीय भूल सुधार का मौका दिया जाय। किन्तु बेसिक शिक्षा परिषद् ने इनकी मांग अस्वीकार कर दी तो यह याचिकाएं दाखिल की गयी। याचियों ने मांग की थी कि मैनुअल मूल्यांकन किया जाय।
कोर्ट ने कहा कि ओएमआर सीट का मूल्यांकन कम्प्यूटर से करने पर गलती कम होगी। कम समय व कम खर्च में परिणाम घोषित किया जा सकेगा। मशीन प्रयोग से प्रक्रिया के दुरूपयोग के अवसर कम हैं। जिन्होंने गलती की है, उन्हें इसका लाभ नहीं दिया जा सकता है। मानवीय भूल को दुरूस्त करने की अनुमति से गंभीर परिणाम हो सकते हैं। कोर्ट ने बोर्ड के निर्णय को सही करार दिया है।
अधिगृहीत भूमि पर कब्जा व मुआवजा में देरी से अधिग्रहण होगा समाप्त
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अधिगृहीत जमीन का मुआवजा देने में पांच साल की देरी व भौतिक कब्जा न लेने के कारण धारा 24 (2) के तहत अधिग्रहण स्वतः समाप्त हो जायेगा। कोर्ट ने कहा है कि सरकार चाहे तो उस भूमि का नये सिरे से नियमानुसार अधिग्रहण कर सकती है। कोर्ट ने 1987 में मेरठ विकास प्राधिकरण की रिहायशी कालोनी व वाणिज्यिक तथा औद्योगिक विकास के लिए रिठानी गांव की अधिगृहीत जमीन की नीलामी कार्रवाई को रद्द कर दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता व न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी की खण्डपीठ ने अजय गुप्ता व अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। 14 अगस्त 1987 को रिठानी गांव की 1830.65 एकड़ जमीन अधिगृहीत कर मेरठ विकास प्राधिकरण को दी गयी। याचिका में तीन प्लाटों का मुआवजा न देने व भौतिक कब्जा न लेने के आधार पर अधिग्रहण रद्द करने की मांग की गयी थी।
याची का कहना था कि 2013 के नये अधिग्रहण कानून की धारा 24 (2) के तहत यदि पांच साल तक जमीन का कब्जा नहीं लिया जाता व मुआवजा भुगतान नहीं किया जाता तो अधिग्रहण स्वतः समाप्त हो जायेगा। प्राधिकरण का कहना था कि याची ने मुआवजा नहीं लिया तो ट्रेजरी में जमा करा दिया गया। एक जनवरी 2014 से पहले याची को मुआवजे का भुगतान नहीं किया गया न ही जमीन का कब्जा लिया गया। इसी दिन 2013 का कानून लागू किया गया है। कोर्ट ने सरकार को नये सिरे से अधिग्रहण की छूट देते हुए 19 जुलाई 14 को जारी नीलामी नोटिस रद्द कर दी है।