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UP में मुस्लिम वोटों की राजनीति तेज: कांग्रेस ने इमरान प्रतापगढ़ी तो बीएसपी ने गुड्डू जमाली को आगे बढ़ाकर सपा की चिंता बढ़ाई

UP Politics: मुलायम सिंह को तीन बार और अखिलेश यादव को एक बार सीएम बनाने में इनकी बड़ी भूमिका रही है।

Raj Kumar Singh
Written By Raj Kumar SinghPublished By Dharmendra Singh
Published on: 3 Jun 2021 5:19 PM GMT
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गुड्डू जमाली, अखिलेश यादव और इमरान प्रतापगढ़ी (काॅन्सेप्ट फोटो: सोशल मीडिया)

UP Politics: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दलों ने गोटियां बिछानी शुरू कर दी हैं। खासतौर से मुस्लिम वोटों के लिए कांग्रेस और बीएसपी ने अपनी चाल चल दी है। कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश के रहने वाले तेज तर्रार शायर इमरान प्रतापगढ़ी को अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर अपने तेवर साफ कर दिए हैं। उधर बीएसपी ने भी शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को बीएसपी विधानमंडल दल का नेता बनाकर आने वाली राजनीति के संकेत दे दिए हैं। इन दोनों ही विपक्षी दलों के इन फैसलों से यूपी की प्रमुख विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी थोड़ा असहज हो सकती है।

विगत कई वर्षों से यूपी में मुसलिम वोटों का बड़ा हिस्सा सपा के हिस्से आता रहा है। माना जा रहा है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में भी ज्यादातर मुसलिम वोटर सपा के साथ रहेंगे। हाल ही में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की जीत के बाद यह संभावना और प्रबल हुई है कि यूपी में बीजेपी को हटाने के लिए मुसलमान एकमुश्त समाजवादी पार्टी को वोट कर सकते हैं। यही वजह है कि कांग्रेस और बीएसपी के मुसलमान नेतृत्व को आगे करने के फैसले से सपा चिंतित हो सकती है और बीजेपी इससे खुश।

समाजवादी पार्टी

उत्तर प्रदेश में 1991 से बड़े पैमाने पर मुसलमान वोटर समाजवादी पार्टी के साथ रहे हैं। मुलायम सिंह को तीन बार और अखिलेश यादव को एक बार सीएम बनाने में इनकी बड़ी भूमिका रही है। मुसलमान और यादव सपा के कोर वोटर हैं। समाजवादी पार्टी की तैयारी इस कोर वोट बैंक के साथ पिछड़े व अति पिछड़े मतदाताओं और ब्राह्मण मतदाताओं को जोड़ने की है। संभावना है कि 2022 में ममता बनर्जी भी जोर शोर से समाजवादी पार्टी के प्रचार में उतरेंगी।

समाजवादी पार्टी झंडा (फाइल फोटो: सोशल मीडिया)

बहुजन समाज पार्टी
उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी बीते कुछ वर्षों से हाशिए पर जा रही है। समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने और तोड़ने से पार्टी की साख को धक्का लगा है। पार्टी के कई बड़े नेता बाहर हो चुके हैं। बीएसपी में नसीमुद्दीन सिद्दीकी मुसलिम चेहरा हुआ करते थे, वे अब कांग्रेस में हैं। बीएसपी पर बीजेपी के साथ नरम होने का आरोप भी लग रहा है। माना जा रहा है कि पार्टी आने वाले विधानसभा चुनाव में मुसलमान नेताओं को बड़ी संख्या में विधायक का टिकट देगी। बीएसपी की कोशिश समाजवादी पार्टी को नुकसान पहुंचाने की ज्यादा रहेगी।

बहुजन समाज पार्टी का झंडा (फाइल फोटो: सोशल मीडिया)

कांग्रेस
अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद यूपी में कांग्रेस खड़ी नहीं हो पा रही है। 1989 के बाद से पार्टी सत्ता से बाहर है। कांग्रेस ने 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर की सेवाएं भी ली थीं, लेकिन प्रशांत किशोर भी असफल साबित हुए। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश को प्रियंका गांधी वाड्रा के हवाले किया गया पर वह भी कुछ करने में सफल नहीं हुईं। ऐसे में 2022 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए करो या मरो की तरह है। राष्ट्रीय स्तर पर मुसलिम वोट कई जगह कांग्रेस के साथ गया है, लेकिन उत्तर प्रदेश में ऐसा नहीं हुआ है। इस बार कांग्रेस की कोशिश मुसलमानों को फिर से जोड़ने की है। कांग्रेस के पास इमरान मसूद, इमरान प्रतापगढ़ी और नसीमुद्दीन सिद्दीकी जैसे नेता हैं। अब ये नेता कितने वोट कांग्रेस के साथ जोड़ पाएंगे ये तो समय ही बताएगा।

कांग्रेस का झंडा (फाइल फोटो: सोशल मीडिया)
कट्टर मुस्लिम की पहचान हैं इमरान प्रतापगढ़ी
बीते तीन दशक के दौरान सेकुलर सिद्धांत की छवि गढ़ते हुए कांग्रेस ने हिंदू व मुस्लिम के बीच सेतु बनने का प्रयास किया है। कांग्रेस के नेता भी मानते रहे हैं कि वह समावेशी राजनीति के पक्षधर हैं। केवल हिंदू या केवल मुस्लिम की बात नहीं करेंगे, लेकिन लोकसभा चुनाव में अमेठी की हार और अन्य सीटों पर खराब प्रदर्शन ने कांग्रेस को भी मुस्लिम कट्टरता की ओर धकेल दिया है। कांग्रेस में अब समाजवादी पार्टी का उदाहरण दिया जाता है जिसने पिछले तीन दशक के दौरान केवल मुस्लिम समर्थक होने के दम पर सत्ता का बार-बार स्वाद चखा है। कांग्रेसियों का कहना है कि जब तक सपा के आजम खां की तर्ज पर कांग्रेस में फायरब्रांड मुस्लिम लीडर नहीं होगा तब तक मुसलमानों को सपा से वापस लाना मुमकिन नहीं है। मुसलमानों को समावेशी या सेकुलर राजनीति के बजाय कट्टरता ज्यादा रास आ रही है। कांग्रेस ने इसी थ्योरी को मानते हुए एक साल पहले रिहाई मंच से मशहूर हुए शाहनवाज को प्रदेश अल्पसंख्यक विभाग का चेयरमैन बनाया और अब इमरान प्रतापगढ़ी को नई कुर्सी सौंपी है। विधानसभा उपचुनाव और पांच राज्यों के चुनाव में भी इमरान का इस्तेमाल किया गया है। इमरान प्रतापगढ़ी की छवि मुस्लिम कट्टरता के समर्थक शायर की है। मुसलमानों की दुखती रग पर हाथ रखने वाले नारे गढ़ने में वह माहिर हैं। कांग्रेस ने उन्हें मुरादाबाद लोकसभा सीट पर भी आजमाया था। कांग्रेस नेतृत्व यह मान रहा है कि इमरान प्रतापगढ़ी के हुनर का इस्तेमाल कर वह मुसलमानों का दिल जीतने में कामयाब होगी। इस तरह सपा की गोद में बैठा मुसलमान वापस लौट आएगा और कांग्रेस की यूपी में वापसी आसान कर देगा।


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