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हादसे के बाद भी हालात में बदलाव नहीं
पूर्णिमा श्रीवास्तव
गोरखपुर: 12 महीने पहले गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से 72 से अधिक बच्चों की मौत के बाद प्रदेश सरकार के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी हो गयी थी। पिछले वर्ष 10 और 11 अगस्त को जिन कमियों के चलते मासूमों की मौतें हुई थीं, उसमें कोई खास बदलाव नहीं दिख रहा है। बदलाव के दावों के बीच बच्चों की मौतें वैसे ही हो रही हैं, जैसे 40 साल पहले हुआ करती थीं। बदलाव के नाम पर इंसेफेलाइटिस वार्ड में रंग रोगन तो हो गया है। कागजों में कुछ संसाधन बढ़ गए हैं। लेकिन मौतों का सिलसिला बदस्तूर जारी है। यूं कहें, मरने वाले मासूमों का नाम-पता भले ही बदल गया हो, लेकिन ‘सिस्टम’ में सुधार नहीं है।
बीआरडी प्रशासन ने बच्चों की मौतों को रोकने के लिए भले ही कुछ नहीं किया हो लेकिन मौत पर देशव्यापी चर्चाओं पर अंकुश के लिए इंसेफेलाइटिस वार्ड में मीडिया के प्रवेश पर रोक के साथ ही आंकड़ा देने पर सेंसर अवश्य लगा दिया गया है। बीआरडी के सूत्रों के मुताबिक इंसेफेलाइटिस से होने वाली मौतों पर प्रभावी अंकुश के लिए तमाम दावों के बीच इस वर्ष के सात महीने (जनवरी से जुलाई) में इंसेफेलाइटिस से 92 मासूमों की मौत हो चुकी है। पिछले दो वर्षों की तुलना में इन सात महीनों में इंसेफेलाइटिस के मरीजों की संख्या और मौत में कमी आई है, लेकिन मृत्यु दर काफी ऊंची यानी 32.24 फीसदी तक पहुंच गई है।
92 मृतकों में अधिकतर बेटियां हैं। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि लड़कियों में कुपोषण की समस्या अधिक होने से उनके मृत्यु की दर लडक़ों की तुलना में अधिक है। दरअसल, सरकार ने घटना के बाद जो बदलाव की कोशिश की थी, वह स्थायी नहीं दिख रही है। प्रदेश सरकार ने घटना के बाद मेडिकल कॉलेज में विभिन्न चिकित्सकीय संस्थानों सेे डाक्टरों की फौज बीआरडी भेजी गई थी, लेकिन वे डॉक्टर धीरे-धीरे लौट चुके हैं। घटना के बाद बीआरडी को 16 रेजीडेंट डॉक्टर और 4 विशेषज्ञ डॉक्टर मिले थे, लेकिन एक बार फिर डॉक्टरों का टोटा है।
चिकित्सकों की आपसी लड़ाई
पिछले एक वर्ष में बीआरडी मेडिकल कॉलेज चिकित्सकों की आपसी लड़ाई के चलते विवादों में रहा है। जेम पोर्टल पर खरीद को लेकर शुरू हुए विवाद के बाद इसके प्रभारी डॉ.राजेश राय 6 अगस्त को इस्तीफा दे चुके हैं। बीआरडी मेडिकल कालेज में जेम पोर्टल पर खरीदारी में अनियमितता का आरोप कैंसर रोग के विभागाध्यक्ष डॉ. एम.क्यू. बेग ने लगाया था। इस प्रकरण को लेकर उनकी प्राचार्य डॉ.गणेश कुमार से तनातनी चल रही थी जिसे देखते हुए गणेश कुमार ने डॉ. बेग पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा उन्हें झांसी मेडिकल कॉलेज भिजवा दिया। डॉ. बेग को प्राचार्य पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने का खामियाजा भुगतना पड़ा।
सुविधाएं बढऩे के बाद भी नहीं थमीं मौतें
बीआरडी में ऑक्सीजन कांड के बाद प्रदेश सरकार ने सुविधाओं के नाम पर बहुत कुछ देने का दावा किया है। कागजों में कोशिशों होती दिख भी रही है। घटना के बाद बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 79 बेड का फैब्रिक्रेटेड वार्ड का निर्माण हुआ। नेत्र विभाग के रोगियों के लिए बने वार्ड नंबर 11 को बच्चों के लिए परिवर्तित कर दिया गया। बीआरडी में एक साल पहले जब घटना हुई थी तब 16 वार्मर थे, हालांकि इनमें से 4 खराब थे। वर्तमान में वार्मर की संख्या बढक़र 48 हो गई है। बच्चों के तीमारदारों के लिए रैन बसेरा का निर्माण हुआ है। हालांकि मुख्यमंत्री या बड़े मंत्री के इंतजार के चलते रैन बसेरा का अभी तक लोकार्पण नहीं हो सका है। संक्रमण पर अंकुश के लिए भी विशेष इंतजाम किए गए हैं। अंदर की खबरें बाहर आने से रोकने के लिए मीडिया के प्रवेश पर अघोषित रोक भी लागू है।
लाखों खर्च पर कम नहीं हुए मच्छर
प्रदेश सरकार के निर्देश पर सूबे के मच्छरों के आतंक को कम करने और शहर से लेकर गांव तक स्वच्छता को लेकर दो चरण में दस्तक अभियान चलाया गया। लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी दस्तक अभियान का कोई असर नहीं दिख रहा है। जुलाई महीने में चला दस्तक अभियान कागजों में सिमटकर रह गया है। शुभारंभ के मौके पर मच्छरों को मारने वाली फांगिंग मशीनें जिस साइकिल पर रखी गई थीं वह पंचर थीं।
कोरम पूर्ति के बाद सभी साइकिलें नगर निगम में खड़ी कर दी गयीं। कागजों में ही स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम के अफसरों ने मच्छरों को मारने के लिए आए डीजल और केमिकल के रुपयों की बंदरबांट कर ली। इंसेफेलाइटिस प्रभावित जिलों में सुअरबाड़ों को हटाने की योजना भी कागजों में ही चल रही है। गोरखपुर नगर निगम में भाजपा पार्षद दल के नेता ऋषि मोहन वर्मा अपने वार्ड में सुअरबाड़ों को हटाने के लिए पिछले 10 साल में 135 पत्र लिख चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।
सवा लाख मोबाइल एप से मिला एक मरीज
कमिश्नर अनिल कुमार ने इंसेफेलाइटिस मरीजों की सहूलियत के लिए सवा लाख रुपये खर्च कर स्टॉप जेई-एईएस नाम से मोबाइल एप लांच किया था। दावा किया गया कि गांव स्तर पर काम करने वाली आशा बहुएं, एएनएम और अन्य स्वास्थ्य कर्मी बुखार से पीडि़त बच्चों का ब्योरा मोबाइल एप पर अपलोड करेंगी ताकि समय रहते उनका इलाज सुनिश्चित किया जा सके। लेकिन कमिश्नर भूल गए चंद हजार रुपये मानदेय पाने वाली स्वास्थ्य कर्मियों के पास शायद ही स्मार्ट फोन हो।
मोबाइल एप को लांच हुए एक महीने से अधिक का वक्त गुजर चुका है। इस पर अभी तक 60 कालें आई हैं, जिनमें से 45 फेक हैं। अभी तक खोराबार का एक मरीज एप के जरिये मेडिकल कॉलेज पहुंचा है। इसके साथ ही इंसेफेलाइटिस के मरीजों को तत्काल लाभ के लिए 4 मोबाइल बैन का दावा भी हवाई दिख रहा है। दावा किया जा रहा है कि इन गाडिय़ों में एलईडी, वेंटिलेटर तथा मेडिकल स्टाफ सब मौजूद है, लेकिन पिपरौली ब्लाक में चार मोबाइल वैन कागजों में ही दौड़ रही हैं।
चार्जशीट कमजोर, पांच को मिली जमानत
ऑक्सीजन कांड में विवेचना अधिकारी अभिषेक सिंह ने सभी नौ अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। उनमें से पांच जमानत पर रिहा हो चुके हैं। जमानत पाने वालों में पूर्व प्राचार्य डॉ.राजीव मिश्रा, उनकी पत्नी डॉ. पूूर्णिमा शुक्ल, डॉ.सतीश कुमार, डॉ.कफील और मनीष भंडारी शामिल हैं। वहीं सुधीर कुमार पांडेय, संजय कुमार त्रिपाटी, गजानन्द जायसवाल और उदय प्रताप शर्मा की जमानत नहीं हो सकी है। घटना के बाद से निलंबित चल रहे डॉ.कफील और उनके परिवार के सदस्यों ने योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। विरोधी पार्टियां उन्हें औजार के रूप में भी इस्तेमाल कर रही हैं। डॉ.कफील ने मेडिकल कॉलेज में स्वास्थ्य व्यवस्था से लेकर तत्कालीन डीएम राजीव रौतेला पर गम्भीर आरोप लगाए हैं। अपने भाई पर हुए जानलेवा हमले के बाद उन्होंने भाजपा सांसद कमलेश पासवान पर भी आरोप मढ़ा है। प्रकरण को सियासी रंग देने के लिए जमात-ए-इस्लाम से लेकर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का छात्रसंघ तक डॉ. कफील के पक्ष में प्रदर्शन तक कर चुके हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन भी डा.कफील समेत अन्य डॉक्टरों के समर्थन में है।
महंगी दर पर लिक्विड ऑक्सीजन की आपूर्ति
ऑक्सीजन की आपूर्ति ठप होने की घटना के समय पुष्पा सेल्स नाम की फर्म बीआरडी मेडिकल कॉलेज में लिक्विड ऑक्सीजन की सप्लाई कर रही थी। तब पुष्पा सेल्स बीआरडी को 16 रुपये 25 पैसे प्रति लीटर की दर से ऑक्सीजन की सप्लाई कर रही थी। पुष्पा सेल्स के ऑक्सीजन की सप्लाई रोकने के पांच दिनों के अंदर 72 से अधिक लोगों की मौत हो गई। पूर्ववर्ती व्यवस्था में तमाम आरोपों के बाद अब बीआरडी प्रशासन 19 रुपये प्रति लीटर की दर से लिक्विड ऑक्सीजन की सप्लाई ले रहा है। आक्सीजन की सप्लाई का जिम्मा आईनाक्स कंपनी के पास है। यह वहीं आईनाक्स कंपनी है जिससे लिक्विड ऑक्सीजन की सप्लाई लेकर पुष्पा सेल्स का मनीष भंडारी बीआरडी को सप्लाई करता था। अब सवाल उठता है कि जब पुष्पा सेल्स 16 रुपये में ऑक्सीजन की सप्लाई करती थी तो आखिर आईनाक्स कंपनी से क्यों 19 रुपये से अधिक की दर से खरीद की जा रही है। वहीं लखनऊ की केजीएमयू में ऑक्सीजन की सप्लाई महज 11 रुपये 21 पैसे की दर से हो रही है।
ऑक्सीजन के कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है कि लखनऊ से गोरखपुर के बीच अंतर बमुश्किल एक रुपये का होना चाहिए। पिछले दिनों सपा के जिलाध्यक्ष प्रहलाद यादव ने मीडिया के समक्ष कागजात प्रस्तुत करते हुए पूरे प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच की मांग की थी। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ.गणेश कुमार ने आरोपों को तत्काल खारिज कर दलील पेश कर दी कि ई-टेंडर के जरिये मिले कोटेशन के आधार पर ऑक्सीजन सप्लाई का जिम्मा आईनाक्स को सौंपा गया है।
स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाने का दावा भी हवाई
जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) और एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) पर अंकुश के लिए जिला अस्पताल से लेकर सामुदायिक केन्द्रों पर बने पेडियाट्रिक और आईसीयू का बुरा हाल है। जिला अस्पताल में पेडियाट्रिक आईसीयू में 5 बिस्तरों का इजाफा तो हुआ, लेकिन सुविधाएं जस की तस हैं। गोरखपुर के 19 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर बने इंसेफेलाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर भी सफेद हाथी साबित हो रहे हैं। इसके साथ ही चौरीचौरा, पिपरौली और गगहा सामुदायिक केन्द्रों पर भी सुविधाएं देकर दो बाल चिकित्सा विशेषज्ञों और तीन प्रशिक्षित नर्सों की तैनाती का दावा किया गया।
सीएमओ डॉ.श्रीकांत तिवारी का रोना है कि जिले की 13 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर एक-एक पेडियाट्रिशन की जरुरत है। साथ ही हर बच्चों के आईसीयू में दो पेडियाट्रिशन चाहिए, लेकिन जिले में कुल 7-8 पेडियाट्रिशन ही हैं। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ.गणेश कुमार का कहना है कि सीएचसी और पीएचसी पर सुविधाएं तो बढ़ीं,लेकिन डॉक्टर लापरवाही कर रहे हैं। उनका कहना है कि स्वास्थ्य केन्द्रों से चिकित्सक मरीज को बुखार आते ही डिस्चार्ज करके मेडिकल कॉलेज भेज देते हैं। बीआरडी में 79 बिस्तरों का एक नया वार्ड बनाया गया है। हाई डेन्सिटी यूनिट में 6 से बढ़ाकर 37 बिस्तर कर दिए गए हैं। इंसेफेलाइटिस और अगस्त से पहले दवाइयाँ, दस्ताने और दूसरे सभी जरूरी सामान सब स्टॉक कर लिए गए हैं मगर शहर में गंदगी कम नहीं हो रही। बच्चों को जरूरी पोषण नहीं मिल रहा।